कर्म है प्रारब्ध जन का, कर्म का उन्मान गीता l
कर्म है पावन त्रिपथगा, व्यक्ति का उत्थान गीता ll
यदि विरथ हों जायं राघव, हो दशानन रथ सहित l
कर्म से ही हो विजय पथ, वह रथी होगा रहित ll
नित्य ही तो कर्म संचित जन सुलभ रवि व्यस्त है l
दौड़ता रहता गगन में, साँझ को ही अस्त है ll
प्रात संध्या मध्य शोभित, कर्म का सम्मान गीता l
कर्म है पावन त्रिपथगा, व्यक्ति का उत्थान गीता ll
कर्म नित निष्काम साधक, साधना में जो रहे l
टूट कर टूटे नहीं वह, कर्म पथ पर वो रहे ll
कर्म फल उसके लिए ही, नत रहे प्रत्येक पल l
व्यर्थ तो होता नहीं पुरुषार्थ का प्रत्येक फल ll
कर्म के अनुसार ही है कर्म का प्रतिमान गीता l
कर्म है पावन त्रिपथगा, व्यक्ति का उत्थान गीता ll
कुछ नहीं अपना यहाँ पर, त्यागकर जाना हमें l
आत्मा ही सत्य जीवित, कुछ नहीं पाना हमें ll
आत्मा करती प्रकाशित, चेतना वह तत्व है l
व्यक्त हो ब्रम्हांड उज्ज्वल, सूक्ष्म ही अस्तित्व है ll
धर्म चेतन मोक्ष संयम व्यक्ति का दिनमान गीता l
कर्म है पावन त्रिपथगा, व्यक्ति का उत्थान गीता ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल