ऋतु बसंती ज्ञान उत्सव, मन मधुर मधुमास आया l
ज्ञानदा की छवि सुशोभित, वर सभी के मन समाया ll
जग सुशोभित नव मुखर सुन्दर सरल मन गा रहा है l
वादिनी वीणा सरलतम ज्ञान सुख तन छा रहा है ll
मन प्रफुल्लित साधना में, सृष्टि प्रतिपल सज रही है l
छवि मनोहर पद्मनिलया, दृष्टि प्रतिपल सज रही है ll
आ गया ऋतुराज मोहक, गीत पिक ने मधुर गाया l
ऋतु बसंती ज्ञान उत्सव, मन मधुर मधुमास आया ll
नव गगन है, नव मही है, नव प्रकृति है, नव दिशाएं l
बुद्धि लौकिक हो प्रखर अब, श्रीप्रदा स्थान पाएं ll
शरद ऋतु के अंक शोभित, मुग्ध-ऋतु उन्माद होता l
ज्ञान दम्भी, बुद्धि कुंठित, लोक जीवन मान खोता ll
वन्दना कर शारदा की, हम सभी ने ज्ञान पाया l
ऋतु बसंती ज्ञान उत्सव, मन मधुर मधुमास आया ll
रूप यौवन भी खिला है, तन हुआ मकरंद भासित l
श्वेत वस्त्रों से सुशोभित, मन हुआ सानंद भासित ll
दे रहे ऋतुराज ऋतु को, प्रेम रस के कुम्भ भर-भर l
दे रही हैं ज्ञानदा भी, ज्ञान के अवलम्ब भर-भर ll
ज्ञान मोहक इस प्रकृति में, स्वर नया मन-मुग्ध छाया l
ऋतु बसंती ज्ञान उत्सव, मन मधुर मधुमास आया ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'