तुम ह्रदय के कुंज में मुझको सदा भाया करो l
कुछ न हो फिर भी हमारे स्वप्न में आया करो ll
रेत के पथ चल रहे हैं, मैं अभी तो रिक्त हूँ l
तुम रसों के भाग्य हो और मैं कहां अभिसिक्त हूँ?
पुष्प सी कुसुमित रहो और भ्रमर सा पाया करो l
कुछ न हो फिर भी हमारे स्वप्न में आया करो ll
प्रेम वो भी था जिसे राधा ने अपना कह दिया l
उड़ गए घनश्याम तो घनश्याम को भी सह लिया ll
बांसुरी के राग में तुम भी कभी गाया करो l
कुछ न हो फिर भी हमारे स्वप्न में आया करो ll
प्यास धरती की बुझे अंबर पयोधर ला रहे l
भर गया आंचल धरा का इसलिए अब जा रहे ll
सूखते हैं बिंदु मन के आ कभी छाया करो l
कुछ न हो फिर भी हमारे स्वप्न में आया करो ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'