मैं जीवन साकार करूँगा l
जब दिनकर के तीर चलेंगे l
वारिद भी जमकर बरसेंगें ll
प्रलय प्रकृति को अंक भरेगा l
निष्ठुरता में शरद रहेगा ll
रिक्त धरा के अंग भरूंगा l
मैं जीवन साकार करूँगा ll 1 ll
पर्वत बाधा बनकर टूटे l
दिनकर नदियों का जल लूटे ll
समय लौटकर फिर न आये l
पल-छिन, अवसर भी छिन जाए ll
तब मैं समय पार निकलूंगा l
मैं जीवन साकार करूँगा ll 2 ll
कोई पथ में साथ चले न l
हाथ पकड़कर हाथ चले न ll
वैरी पग में बंधन बांधे l
अपना हित केवल वह साधे ll
फिर भी मैं बचकर निकलूंगा l
मैं जीवन साकार करूँगा ll 3 ll
सूखी धरती बंजर वन हों l
अग्नि जले, जलते तन-मन हों ll
वन तम से आप्लावित होकर l
सघन भयातुर शापित होकर ll
दिव्य पुंज से तम हर लूंगा l
मैं जीवन साकार करूँगा ll 4 ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'