जीवन है अनमोल निरंतर इसकी रक्षा करनी है l
प्रश्न जटिल है मानव सम्मुख, इसकी विपदा हरनी है ll
हैं असभ्य नादान वही सब, जो अस्वच्छ रह जाते हैं l
ईश्वर का आवास स्वच्छता, संत यही कह जाते हैं ll
रोग मुक्त काया जीवन में, धन से अधिक प्रबलतम है l
निर्धनता में स्वस्थ रहे तो, धन से अधिक अधिकतम है ll
कलाकार के चित्रण जैसी तन की कला संवरनी है l
जीवन है अनमोल निरंतर इसकी रक्षा करनी है ll
वायु प्रदूषित जल अस्वच्छ है, साँसों पर भी पहरा है l
आँखों में भी दृष्टि नहीं है, कानों से वह बहरा है ll
शिक्षित हैं सब, सभ्य नहीं हैं, दिखते कितने उत्तम हैं l
घर के बाहर जो असभ्य हैं, घर में क्यों सर्वोत्तम हैं?
यही बुद्धि यदि बनी रही तो जग की दशा बिखरनी है l
जीवन है अनमोल निरंतर इसकी रक्षा करनी है ll
मन सुन्दर तन व्याधि मुक्त हो जिजीविषा है मानव की l
योग सम्मिलित दिनचर्या में प्राण तत्व है इस भव की ll
करें परिश्रम स्वेद बहाऐें, नियमित अपना हो आहार l
प्रात साधना, संध्या वंदन, मन को अपने हो स्वीकार ll
मुख पर चमके तेज सूर्य का ऐसी छटा निखरनी है l
जीवन है अनमोल निरंतर इसकी रक्षा करनी है ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'