वीरों से बढ़कर वीर व्रती, वह सिंह रूप बन आया l
मेवाड़ वीर अद्भुत विराट, रिपुदमन सिंह कहलाया ll
सिंहनाद कर उठा बजी रणभेरी युद्ध समर में l
तलवारों की खनक बीच, नभ चपला रहे भंवर में ll
कण-कण में रहा प्रताप, समर में केवल वही प्रतापी l
हल्दीघाटी की भूमि दौड़ कर, चेतक ने ही नापी ll
कवि सम्राटों के छंदों ने हमको यही सुनाया l
मेवाड़ वीर अद्भुत विराट, रिपुदमन सिंह कहलाया ll
सिंह कभी न हुआ पराजित, शौर्य प्रकट होता है l
अरि के सम्मुख काल प्रखर, विकराल विकट होता है ll
सुनकर जिसका नाम भुजाएं फड़क तुरत जाती हैं l
वीर प्रतापी भारत वैभव, मन में तुरत समाती हैं ll
रण की माटी ने उड़कर अब वही गीत दोहराया l
मेवाड़ वीर अद्भुत विराट, रिपुदमन सिंह कहलाया l
वह बलशाली, वह वीर प्रतापी, देशभक्त अपना था l
अकबर था भयभीत स्वयं ही, युद्ध भूमि सपना था ll
भेजा तब बहलोल दैत्य को, धूल चटाई रण में l
दो टुकड़े कर दिए तुरत, अस्तित्व मिटाया क्षण में ll
वीर भूमि की माटी ने ही, ऐसा वीर दिलाया l
मेवाड़ वीर अद्भुत विराट, रिपुदमन सिंह कहलाया ll
जीवन भर न सही दासता, वन-वन भटक रहे थे l
रोटी खर की खाकर कितने विप्लव कष्ट सहे थे ll
उनके जाने पर अकबर भी तार-तार रोया था l
शायद उस दिन भारत भी तो बार-बार रोया था ll
पन्नो पर इतिहास अमिट है, नाम वही लिखवाया l
मेवाड़ वीर अद्भुत विराट, रिपुदमन सिंह कहलाया ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'