बिटिया
दूजे घर है जानी
समय पंख लगाकर उड़ता चला जाता है | कल एक फुट की नन्ही
सी कली गोद में दी डॉक्टर ने तब सब कुछ जानते हुए भी सोचा नहीं था कि कभी इसे पराए
घर भी जाना होगा... जो सत्य है जीवन का... बेटियाँ योग्य पति के साथ विवाह करके
अपनी स्वयं की गृहस्थी बसाएँ और प्रसन्न एवं सुखी रहे यही हर माता पिता की कामना
होती है... लेकिन फिर भी बिटिया में ऐसा कुछ तो होता है कि उसकी विदाई असहनीय हो
जाती है... और तब याद आता है अपने विदा होते समय अपने माँ पापा का वो उदास
चेहरा... जितनी बार भी मायके से वापस आना होता, माँ पापा कार के
साथ साथ काफी दूर तक चले आते... कहीं खोए खोए से... बाद में घर के दूसरे लोगों से
पता चलता, उनकी भूख प्यास कुछ दिनों के लिए जैसे ग़ायब सी हो
जाती थी... और जब उन लोगों से बात करते तो पापा माँ के लिए बोल देते “अरे नहीं भई, हम तो मस्त रहते हैं, आपकी माँ ही आपकी यादों में
खोई रहती हैं...” और माँ यही सब पापा के लिए बोल देतीं “पूनम तुम्हारे पापा सारी
बात हम पर डाल रहे हैं, पर सच तो ये है कि यही तुम्हारी
यादों में खोए रहते हैं...” और उन दोनों की बातें सुनकर उन दोनों पर प्यार आता और
अपने आपको धन्य मानते कि ऐसे माता पिता के यहाँ जन्म लिया... बहरहाल, बिटिया की विदाई के समय कैसा लगता होगा, यही सारे
भाव हैं प्रस्तुत पंक्तियों में...
तू जब गोद में आई बिटिया, मन मेरा कविता बन
बैठा
तेरी भोली मुस्कानों से मन गीतों की धुन बन बैठा ||
तेरी बन्द हथेली में मेरे जीवन का सार छिपा था |
मेरे साँसों की डोरी को तेरा ही अवलम्ब मिला था ||
हँसती तू, तो लगता कोई चन्द्रकिरण हो ज्यों मुसकाई |
नन्हे पैरों चलती, लगता कोई सोनचिरैया आई ||
तुतलाहट में तेरी मिश्री की मिठास थी पाई मैंने |
और मुखड़े में तेरे पुष्पों की सुन्दरता पाई मैंने ||
संग तेरे जब दौड़ी भागी, अपना बचपन फिर से
पाया |
अपने छोटे से आँगन में संग तेरे हर खेल रचाया ||
लोरी गाकर तुझे सुलाया जीवन का हर कण सरसाया |
और लखकर तेरी मस्ती को, अपना यौवन याद है आया ||
ओ मेरी प्यारी सी गुड़िया, पंछी बन उड़ गई आज तू |
मेरे इस छोटे आँगन को सूना ही कर गई आज तू ||
इस सूने आँगन में अब मैं कैसे गीत गुँजा पाऊँगी |
नैनों से जब नीर बहेगा, कैसे धीर धरा पाऊँगी ||
बदरा छाएँ मन में मेरे, सूना अँगना पीर
जगाए |
लेकिन सच से कौन है जीता, मन कितनी ही हूक
उठाए ||
पर बिटिया है यही कहानी, बिटिया दूजे घर है जानी |
सुखी रहे तू, स्वस्थ रहे तू,
यही आज है मन ने मानी ||
नभ के सारे चाँद सितारे मग तेरा उजियाला कर दें |
और तेरे मन की सुगन्ध दूजे घर को मदमस्त बना दे ||
प्यार और सम्मान मिले तुझको इतना, ना अंक समाए |
और तेरी स्नेहिल बातों से सबका मन पुलकित हो जाए ||
______________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा...