हम बात कर रहे हैं कि ध्यान के अभ्यास
के लिए स्वयं को किस प्रकार तैयार करना चाहिए | इसी क्रम में आगे :
पञ्चम चरण : ध्यान में बैठना :
श्वास के अभ्यासों के महत्त्व के विषय
में पिछले अध्याय में चर्चा की थी | श्वास के उन विशिष्ट अभ्यासों को करने के बाद
आप अब ध्यान के लिए तैयार हैं | ध्यान के आसन में बैठ जाइए (आगे ध्यान के लिए
कुछ आसनों का भी वर्णन करेंगे) और बस अपने मन्त्र के प्रति अथवा सार्वभौम
मन्त्र “सोSहम्” के प्रति मन को सावधान कीजिए
| ‘सोSहम्” की ध्वनि का श्वास के साथ विशेष रूप से सम्बन्ध
होता है | श्वास भीतर लेते समय मन ही मन में “सो” की ध्वनि को सुनने का प्रयास
करें और श्वास बाहर निकालते समय “हम्” की ध्वनि को सुनें |
श्वास को लम्बी और मृदुल होने दें |
स्थिरचित्त बैठकर मन को अपने मन्त्र में केन्द्रित करें | सुविधाजनक स्थिति में
ध्यान के आसन में बैठे हुए मन को स्थिर और केन्द्रित होने दें | जितनी देर तक आप
सुविधापूर्वक बैठ सकते हैं अथवा उस समय जितना समय आपके पास है उसके अनुसार जितनी
देर आप चाहें बैठ सकते हैं | जब आप ध्यान से बाहर आना चाहें तो सबसे पहले श्वास
प्रक्रिया पर ध्यान दें और फिर शरीर पर | अन्तःचेतना से बाह्य चेतना में धीरे धीरे
क्रम से आएँ | हाथों की हथेलियों को आधा मोड़कर आँखों को ढाँप लें | फिर आँखों को
खोलकर पहले हथेलियों को देखें फिर हाथों को | ध्यान की अवस्था में आपके मन के साथ
क्या होता है और आप मन के साथ किस प्रकार कार्य करते हैं इस विषय पर आगे चर्चा की
जाएगी |
तो इस प्रकार ध्यान के अभ्यास का क्रम
हुआ – सबसे पहले नहा धोकर अथवा केवल हाथ मुँह धोकर तैयार हो जाएँ, फिर शरीर को खींचने के और कुछ योग के आसन करें,
उसके बाद विश्राम के अभ्यास, फिर श्वास के अभ्यास और अन्त में ध्यान का अभ्यास |
अगले अध्याय में ध्यान पर भोजन के
प्रभाव के विषय में बात की जाएगी...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/11/15/meditation-and-its-practices-16/