ध्यान के कुछ
अन्य आसन :
ध्यान के लिए
उपयुक्त आसनों पर वार्ता के क्रम में हमने मैत्री आसन, सुखासन, स्वस्तिकासन और सिद्धासन पर बात की | कुछ
अन्य आसन भी ध्यान में बैठने के लिए अनुकूल हो सकते हैं | जैसे:
वज्रासन : कुछ लोग जिनके कूल्हों
अथवा घुटनों में किसी प्रकार की समस्या हो वे ऐसे किसी भी आसन में बैठने में
कठिनाई का अनुभव कर सकते हैं जिनमें टाँगों को एक दूसरे के आर पार करना पड़ता हो |
वे लोग टखनों के ऊपर घुटनों को रखकर भी ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं | इसे “वज्रासन”
कहा जाता है |
सीधे ज़मीन पर
इस आसन में यदि बैठेंगे तो पैरों और टखनों पर अधिक ज़ोर पड़ेगा जिसके कारण
माँसपेशियों में कोई समस्या हो सकती है | यदि आप इस आसन में बैठना अधिक पसन्द करते
हैं तो आपको बता दें आजकल बाज़ार में इसके लिए लकड़ी की बेंच भी उपलब्ध है | आप एक
बेंच ख़रीद कर ला सकते हैं | इस बेंच पर सीधे बैठ सकते हैं जिससे आपके पैरों और
टखनों पर कम जोर पड़ेगा | इस आसन से लाभ एक सीमा तक ही सम्भव है | जैसे : लम्बी
अवधि के ध्यान में इस आसन पर बैठने में शरीर में स्थिरता का अभाव रहता है और शरीर
एक ओर को झुकने अथवा झूलने लगता है | फिर भी जिन साधकों को शारीरिक समस्याएँ इस
प्रकार की हैं उनके लिए यही आसन उचित रहेगा |
सिद्धासन : इसकी चर्चा पहले भी की
है | यह कुछ ऐसे साधकों को सिखाया जाता है जो ध्यान के अन्य आसनों के अभ्यस्त हो
चुके हैं, साधारण
साधकों के लिए यह आसन न तो उपयोगी ही है और न ही वे इसे सरलता से लगा सकते हैं |
क्योंकि पद्मासन की भाँति ही इस आसन के लिए भी शरीर को एक विशेष स्थिति में रखने
की आवश्यकता होती है | और यह तभी सहायक हो सकता है जब इसे नियमबद्ध और उचित रीति
से किया जाए | यदि आप इस आसन में उचित और सुविधाजनक रीति से नहीं बैठ पाते तो आपको
इससे लाभ होने की अपेक्षा समस्याएँ ही अधिक उत्पन्न होंगी | ध्यान के प्रारम्भिक
साधकों के लिए अथवा संसारी लोगों के लिए सिद्धासन का सुझाव देना उचित नहीं होगा |
जो लोग ध्यान
में पारंगत हैं अथवा ध्यान को जिन्होंने अपने जीवन में प्राथमिकता दी है वे धीरे
धीरे इस आसन में बैठना सीख सकते हैं | हाँ जो लोग समाधि की अवस्था को प्राप्त होना
चाहते हैं उन्हें निश्चित रूप से ध्यान के समय इस आसन का अभ्यास करना चाहिए |
ध्यान में पारंगत साधक अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस आसन में बैठने का अभ्यास
डाल सकते हैं | जब एक कुशल छात्र बिना किसी कष्ट के एक ही समय में तीन घंटे से
अधिक अवधि के लिए बैठने लगता है तब “आसनसिद्धि” हो जाती है | लेकिन प्रारम्भिक
विद्यार्थी जो अभी तक इस आसन के लिए तैयार नहीं हैं वे इस आसन में असुविधा का ही
अनुभव करेंगे | जिस आसन का अभ्यास आपने नहीं किया है ऐसे आसन में बैठने के प्रयास
में माँसपेशियों और नसों में खिंचाव जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं |
सिद्धासन में
बैठने के लिए मूलबन्ध – जिसमें गुदा की माँसपेशियों को सँकुचित करके भीतर की ओर
खींचा जाता है – लगाते हुए बाएँ पैर की एड़ी को मूलाधार – अंडकोष – पर रखिये | अब
दूसरे पैर की एड़ी को जननेन्द्रिय के ऊपर प्यूबिक बोन (Pubic Bone) यानी जँघा के ऊपर की
अस्थि पर रखिये | पैरों और टाँगों को इस तरह रखिये कि टखने एक सीध में अथवा एक
दूसरे को स्पर्श कर सकें | दाहिने पैर की अँगुलियों को बाँयी जँघा और पिण्डली के
बीच में कुछ इस भाँति रखिये कि केवल बड़ी अँगुली दिखाई दे | अब बाँए पैर की
अँगुलियों को उठाकर दाहिनी जँघा और पिण्डली के बीच में इस प्रकार रखें कि केवल बड़ी
अंगुलि दिखाई दे | दोनों हाथ दोनों घुटनों पर रखिये |
ध्यान रहे, हम इस आसन
की सलाह नहीं देते – उन लोगों को छोड़कर जो किसी योग्य प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में
इसे सीख रहे हैं | क्योंकि अगर इसे ठीक से नहीं किया गया तो जैसा ऊपर कहा गया है –
साधकों को किसी प्रकार की शारीरिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है | परम्परा से
तो ये आसन उन व्यक्तियों को सिखाया जाता है जो सन्यासी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं
| लेकिन यह सोचना भी उचित नहीं होगा कि केवल पुरुष ही इस आसन को लगा सकते हैं, कम
सुविधाजनक होते हुए भी महिला साधिकाएँ और नन्स इस आसन के अभ्यास करती हैं |
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/12/09/meditation-and-its-practices-24/