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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022

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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।]

मैं आहों का ब्योपारी हूँ,

लहू की शायरी मेरा काम है,

चमन की मांदा हवाओ!

अपने दामन समेट लो कि

मेरे आतिशीं गीत,

दबे हुए सीनों में एक तलातुम बरपा करने वाले हैं,

ये बेबाक नग़्मा दर्द की तरह उठा, और बाग़ की फ़िज़ा में चंद लम्हे थरथरा कर डूब गया। आवाज़ में एक क़िस्म की दीवानगी थी ना-क़ाबिल-ए-बयान, मेरे जिस्म पर कपकपी तारी हो गई। मैंने आवाज़ की जुस्तुजू में इधर उधर निगाहें उठाएं। सामने चबूतरे के क़रीब घास के तख़्ते पर चंद बच्चे अपनी मामाओं के साथ खेल कूद में मह्व थे, पास ही दो तीन गंवार बैठे हुए थे। बाएं तरफ़ नीम के दरख़्तों के नीचे माली ज़मीन खोदने में मसरूफ़ था। मैं अभी इसी जुस्तुजू में ही था कि वही दर्द में डूबी हुई आवाज़ फिर बुलंद हुई।

मैं उन लाशों का गीत गाता हूँ,

जिन की सर्दी दिसंबर मुस्तआर लेता है।

मेरे सीने से निकली आह

वो लू है जो जून के महीने में चलती है।

मैं आहों का ब्योपारी हूँ।

लहू की शायरी मेरा काम है.......

आवाज़ कुवें के अक़्ब से आ रही थी। मुझ पर एक रिक़्क़त सी तारी हो गई। मैं ऐसा महसूस करने लगा। कि सर्द और गर्म लहरें ब-यक-वक़्त मेरे जिस्म से लिपट रही हैं। इस ख़याल ने मुझे किसी क़दर ख़ौफ़ज़दा कर दिया कि आवाज़ उस कुवें के क़रीब से बुलंद हो रही है। जिस में आज से कुछ साल पहले लाशों का अंबार लगा हुआ था। इस ख़याल के साथ ही मेरे दिमाग़ में जलियांवाला बाग़ के ख़ूनी हादिसे की एक तस्वीर खिच गई। थोड़ी देर के लिए मुझे ऐसा महसूस हुआ कि बाग़ में फ़िज़ा गोलियों की सनसनाहट और भागते हुए लोगों की चीख़ पुकार से गूंज रही है। मैं लरज़ गया। अपने काँधों को ज़ोर से झटका दे कर और इस अमल से अपने ख़ौफ़ को दूर करते हुए मैं उठा। और कुवें का रुख़ किया।

सारे बाग़ पर एक पुर-इसरार ख़ामोशी छाई हुई थी। मेरे क़दमों के नीचे ख़ुश्क पत्तों की सरसराहट सूखी हुई हड्डियों के टूटने की आवाज़ पैदा कर रही थी। कोशिश के बावजूद मैं अपने दिल से वो नामालूम ख़ौफ़ दूर न कर सका। जो इस आवाज़ ने पैदा कर दिया था। हर क़दम पर मुझे यही मालूम होता था कि घास के सरसब्ज़ बिस्तर पर बेशुमार लाशें पड़ी हुई हैं जिन की बोसीदा हड्डियां मेरे पांव के नीचे टूट रही हैं। यकायक मैंने अपने क़दम तेज़ किए और धड़कते हुए दिल से उस चबूतरे पर बैठ गया। जो कुवें के इर्दगिर्द बना हुआ था।

मेरे दिमाग़ में बार बार ये अजीब सा शेर गूंज रहा था।

मैं आहों का ब्योपारी हूँ।

लहू की शायरी मेरा काम है।

कुवें के क़रीब कोई मुतनफ़्फ़िस मौजूद न था। मेरे सामने छोटे फाटक की साथ वाली दीवार पर गोलियों के निशान थे। चौकोर जाली मुंधी हुई थी। मैं इन निशानों को बीसियों मर्तबा देख चुका था। मगर अब वो निशान जो मेरी निगाहों के ऐन बिल-मुक़ाबिल थे। दो ख़ूनीं आँखें मालूम हो रहे थे। जो दूर बहुत दूर किसी ग़ैर मरई चीज़ को टिकटिकी लगाए देख रही हों। बिला इरादा मेरी निगाहें इन दो चश्म-नुमा सूराखों पर जम कर रह गईं। मैं उन की तरफ़ मुख़्तलिफ़ ख़यालात में खोया हुआ ख़ुदा मालूम कितने अर्से तक देखता रहा। कि दफ़अतन पास वाली रविष पर किसी के भारी क़दमों की चाप ने मुझे इस ख़्वाब से बेदार कर दिया। मैंने मुड़ कर देखा गुलाब की झाड़ियों से एक दराज़क़द आदमी सर झुकाए मेरी तरफ़ बढ़ रहा था। उस के दोनों हाथ उस के बड़े कोट की जेबों में ठुँसे हुए थे। चलते हुए वो ज़ेर-ए-लब कुछ गुनगुना रहा था। कुँवें के क़रीब पहुंच कर वो यकायक ठटका। और गर्दन उठा कर मेरी तरफ़ देखते हुए कहा।

“पानी पियूंगा”

मैं फ़ौरन चबूतरे पर से उठा और पंप का हैंडल हिलाते हुए उस अजनबी से कहा “आईए।”

अच्छी तरह पानी पी चुकने के बाद उस ने अपने कोट की मैली आसतीन से मुँह पोंछा। और वापिस चलने को ही था। कि मैंने धड़कते हूए दिल से दरयाफ़्त किया।

“क्या अभी अभी आप ही गा रहे थे?”

“हाँ मगर आप क्यों दरयाफ़्त कर रहे हैं?” ये कहते हुए उस ने अपना सर फिर उठाया। उस की आँखें जिन में सुर्ख़ डोरे ग़ैरमामूली तौर पर नुमायां थे। मेरी क़ल्बी वारदात का जायज़ा लेती हूई मालूम हो रही थीं। मैं घबरा गया।

“आप ऐसे गीत न गाया करें ये सख़्त ख़ौफ़नाक हैं।”

“ख़ौफ़नाक! नहीं, इन्हें हैबतनाक होना चाहिए। जब कि मेरे राग के हर सुर में रस्ते हूए ज़ख़्मों की जलन और रुकी हुई आहों की तपिश मामूर है। मालूम होता है कि मेरे शोलों की ज़बानें आप की बरफ़ाई हुई रूह को अच्छी तरह चाट नहीं सकीं” उस ने अपनी नोकीली ठोढ़ी को उंगलियों से खुजलाते हुए कहा। “ये अल्फ़ाज़ उस शोर के मुशाबेह थे। जो बर्फ़ के ढेले में तप्ती हुई सलाख गुज़ारने से पैदा होता है।”

“आप मुझे डरा रहे हैं।”

मेरे ये कहने पर उस मर्द-ए-अजीब के हलक़ से एक क़हक़हा नुमा शोर बुलंद हुआ। हा, हा, हा,......... आप डर रहे हैं। क्या आप को मालूम नहीं कि आप इस वक़्त उस मुंडेर पर खड़े हैं। जो आज से कुछ अर्सा पहले बेगुनाह इंसानों के ख़ून से लिथड़ी हुई थी। ये हक़ीक़त मेरी गुफ़्तुगू से ज़्यादा वहशत ख़ेज़ है ।

ये सुन कर मेरे क़दम डगमगा गए, मैं वाक़ई ख़ोनीन मुंडेर पर खड़ा था। मुझे ख़ौफ़ज़दा देख कर वो फिर बोला।

“थर्राई हुई रगों से बहा हुआ लहू कभी फ़ना नहीं होता इस ख़ाक के ज़र्रे ज़र्रे में मुझे सुर्ख़ बूंदें तड़पती नज़र आ रही हैं। आओ, तुम भी देखो!”

ये कहते हुए उस ने अपनी नज़रें ज़मीन में गाड़ दीं। मैं कुँवें पर से नीचे उतर आया। और उस के पास खड़ा हो गया। मेरा दिल धक-धक कर रहा था। दफ़्फ़ातन उस ने अपना हाथ मेरे कांधे पर रखा। और बड़े धीमे लहजे में कहा। “मगर तुम इसे नहीं समझ सकोगे ये बहुत मुश्किल है!”

मैं इस का मतलब बख़ूबी समझ रहा था। वो ग़ालिबन मुझे इस ख़ूनी हादिसे की याद दिला रहा था। जो आज से सोला साल क़ब्ल इस बाग़ में वाक़्य हुआ था। इस हादिसे के वक़्त मेरी उम्र क़रीबन पाँच साल की थी। इस लिए मेरे दिमाग़ में उस के बहुत धुनदले नुक़ूश बाक़ी थे। लेकिन मुझे इतना ज़रूर मालूम था कि इस बाग़ में अवाम के एक जलसे पर गोलियां बरसाई गई थीं। जिस का नतीजा क़रीबन दो हज़ार अम्वात थीं। मेरे दिल में उन लोगों का बहुत एहतिराम था जिन्हों ने अपनी मादर-ए-वतन और जज़्बा-ए-आज़ादी की ख़ातिर अपनी जानें क़ुर्बान कर दी थीं बस इस एहतिराम के इलावा मेरे दिल में हादिसे के मुतअल्लिक़ और कोई ख़ास जज़्बा न था। मगर आज इस मर्द की अजीब गुफ़्तुगू ने मेरे सीने में एक हैजान सा बरपा कर दिया। मैं ऐसा महसूस करने लगा कि गोलियां तड़ातड़ बरस रही हैं और बहुत से लोग वहशत के मारे इधर उधर भागते हुए एक दूसरे पर गिर कर मर रहे हैं। इस असर के तहत मैं चिल्ला उठा।

“मैं समझता हूँ मैं सब कुछ समझता हूँ। मौत भयानक है। मगर ज़ुल्म इस से कहीं ख़ौफ़नाक और भयानक है!!”

ये कहते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने सब कुछ कह डाला है। और मेरा सीना बिलकुल ख़ाली रह गया है। मुझ पर एक मुर्दनी सी छा गई। ग़ैर इरादी तौर पर मैंने उस शख़्स के कोट को पकड़ लिया और थराई हुई आवाज़ में कहा।

“आप कौन हैं? आप कौन हैं?”

“आहों का ब्योपारी एक दीवाना शायर”

“आहों का ब्योपारी! दीवाना शायर” उस के अल्फ़ाज़ ज़ेरे लब गुनगुनाते हुए मैं कुवें के चबूतरे पर बैठ गया। उस वक़्त मेरे दिमाग़ में इस दीवाने शायर का गीत गूंज रहा था। थोड़ी देर के बाद मैंने अपना झुका हुआ सर उठाया। सामने सपीदे के दो दरख़्त हैबतनाक देवओं की तरह अंगड़ाईआं ले रहे थे। पास ही चम्बेली और गुलाब की ख़ारदार झाड़ियों में हवा आहें बिखेर रही थी। दीवाना शायर ख़ामोश खड़ा सामने वाली दीवार की एक खिड़की पर निगाहें जमाए हुए था शाम के ख़ाकिसतरी धुँदलके में वो एक साया सा मालूम हो रहा था कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद वो अपने ख़ुश्क बालों को उंगलियों से कंघी करते हुए गुनगुनाया।

“आह! ये सब कुछ ख़ौफ़नाक हक़ीक़त है किसी सहरा में जंगली इंसान के पैरों के निशानात की तरह ख़ौफ़नाक!”

“क्या कहा?”

मैं इन अल्फ़ाज़ को अच्छी तरह सुन न सका था। जो उस ने मुँह ही मुँह में अदा किए थे।

“कुछ भी नहीं” ये कहते हुए वो मेरे पास आकर चबूतरे पर बैठ गया।

“मगर आप गुनगुना रहे थे”

इस पर उस ने अपनी आँखें एक अजीब अंदाज़ में सुकेड़ीं। और हाथों को आपस में ज़ोर ज़ोर से मलते हुए कहा “सीने में क़ैद किए हुए अल्फ़ाज़ बाहर निकलने के लिए मुज़्तरिब होते हैं। अपने आप से बोलना उस उलूहियत से गुफ़्तुगू करना है। जो हमारे दिल की पहनाइयों में मस्तूर होती है।” फिर साथ ही गुफ़्तुगू का रुख़ बदलते हुए “क्या आप ने इस खिड़की को देखा है?”

उस ने अपनी उंगली उस खिड़की की तरफ़ उठाई। जिसे वो चंद लम्हा पहले टिकटिकी बांधे देख रहा था। मैंने उस जानिब देखा। छोटी सी खिड़की थी। जो सामने दीवार की ख़स्ता ईंटों में सोई मालूम होती थी।

“ये खिड़की जिस का डंडा नीचे लटक रहा है?” मैंने उस से कहा,

“हाँ यही, जिस का एक डंडा नीचे लटक रहा है क्या तुम इस पर उस मासूम लड़की के ख़ून के छींटे नहीं देख रहे हो। जिस को सिर्फ़ इस लिए हलाक किया गया था कि तरकश-ए-इस्तिबदाद को अपने तीरों की क़ुव्वत-ए-परवाज़ का इम्तिहान लेना था मेरे अज़ीज़! तुम्हारी इस बहन का ख़ून ज़रूर रंग लाएगा मेरे गीतों के ज़ीर-ओ-बम में इस कमसिन रूह की फड़फड़ाहट और उस की दिलदोज़ चीख़ें हैं। ये सुकून के दामन को तार तार करेंगे। एक हंगामा होगा। सीना-ए-गीती शक़ हो जाएगा। मेरी बे-लगाम आवाज़ बुलंद से बुलंदतर होती जाएगी फिर क्या होगा? फिर क्या होगा? ये मुझे मालूम नहीं आओ, देखो, इस सीने में कितनी आग सुलग रही है!”

ये कहते हुए उस ने मेरा हाथ पकड़ा। और उसे कोट के अंदर ले जा कर अपने सीने पर रख दिया। उस के हाथों की तरह उस का सीना भी ग़ैरमामूली तौर पर गर्म था। उस वक़्त उस की आँखों के डोरे बहुत उभरे हुए थे। मैंने अपना हाथ हटा लिया। और काँपती हुई आवाज़ में कहा,

“आप अलील हैं। क्या मैं आप को घर छोड़ आऊं?”

“नहीं मेरे अज़ीज़, मैं अलील नहीं हूँ।” उस ने ज़ोर से अपने सर को हिलाया। “ये इंतिक़ाम है जो मेरे अंदर गर्म सांस ले रहा है मैं इस दबी हुई आग को अपने गीतों के दामन से हवा दे रहा हूँ। कि ये शोलों में तबदील हो जाये।”

“ये दरुस्त है मगर आप की तबीयत वाक़ियातन ख़राब है। आप के हाथ बहुत गर्म हैं। इस सर्दी में आप को ज़्यादा बुख़ार हो जाने का अंदेशा है।”

उस के हाथों की ग़ैरमामूली गर्मी और आँखों में उभरे हुए सुरख़ डोरे साफ़ तौर पर ज़ाहिर कर रहे थे कि उसे काफ़ी बुख़ार है।

उस ने मेरे कहने की कोई पर्वा न की। और जेबों में हाथ ठोंस कर मेरी तरफ़ बड़े ग़ौर से देखते हुए कहा।

“ये मुम्किन हो सकता है कि लकड़ी जले और धूवां न दे मेरे अज़ीज़! इन आँखों ने ऐसा समां देखा है। कि उन्हें उबल कर बाहर आना चाहिए था। क्या कह रहे थे कि मैं अलील हूँ हा, हा, हा, अलालत काश कि सब लोग मेरी तरह अलील होते जाईए, आप ऐसे नाज़ुक मिज़ाज मेरी आहों के ख़रीदार नहीं हो सकते।”

“मगर........... ”

“मगर वगर कुछ नहीं।” वो दफ़अतन जोश में चिल्लाने लगा। “इंसानियत के बाज़ार में सिर्फ़ तुम लोग बाक़ी रह गए हो, जो खोखले क़हक़हों और फीके तबस्सुमों के ख़रीदार हो। एक ज़माने से तुम्हारे मज़लूम भाईयों और बहनों की फ़लक शिगाफ़ चीख़ें तुम्हारे कानों से टकरा रही हैं। मगर तुम्हारी ख़्वाबीदा समाअत में इर्तिआश पैदा नहीं हुआ। आओ: अपनी रूहों को मेरी आहों की आंच दो। ये उन्हें हस्सास बना देगी।”

मैं उस की गुफ़्तुगू को ग़ौर से सुन रहा था। मैं हैरान था, कि वो चाहता क्या है। और उस के ख़यालात इस क़दर परेशान व मुज़्तरिब क्यों हैं। बेशतर औक़ात एक अजीब क़िस्म की दीवानगी थी। उस की उम्र यही कोई पच्चीस बरस के क़रीब होगी दाढ़ी के बाल जो एक अर्सा से मूंडे न गए थे। कुछ इस अंदाज़ में उस के चेहरे पर उगे हुए थे। कि मालूम होता था, किसी ख़ुश्क रोटी पर बहुत सी च्यूंटियां चिम्टी हुई हैं गाल अंदर को पिचके हुए, माथा बाहर की तरफ़ उभरा हुआ।

नाक नोकीली। आँखें बड़ी जिन से वहशत टपकती थी। सर पर ख़ुश्क और ख़ाक-आलूदा बालों का एक हुजूम। बड़े से भूरे कोट में वो वाक़ई शायर मालूम हो रहा था एक दीवाना शायर, जैसा कि उस ने ख़ुद इस नाम से अपने आप को मुतआरिफ़ कराया था।

मैंने अक्सर औक़ात अख़बारों में एक जमात का हाल पढ़ा था। उस जमात के ख़यालात दीवाने शायर के ख़यालात से बहुत हद तक मिलते जुलते थे। मैंने ख़याल किया कि शायद वो भी उसी जमात का रुकन है।

“आप इन्क़िलाबी मालूम होते हैं।”

इस पर वो खिलखिला कर हंस पड़ा। “आप ने ये बहुत बड़ा इन्किशाफ़ किया है। मियां, मैं तो कोठों की छतों पर चढ़ चढ़ कर पुकारता हूँ। मैं इन्क़िलाबी हूँ। मैं इन्क़िलाबी हूँ मुझे रोक ले जिस से बन पड़ता है आप ने वाक़ई बहुत बड़ा इन्किशाफ़ किया है।”

ये कह कर हंसते हुए वो अचानक संजीदा हो गया।

“स्कूल के एक तालिब-ए-इल्म की तरह इन्क़िलाब के हक़ीक़ी मआनी से तुम भी ना-आश्ना हो, इन्क़िलाबी वो है जो हर ना-इंसाफ़ी और हर ग़लती पर चिल्ला उठे। इन्क़िलाबी वो है जो सब ज़मीनों, सब आसमानों, सब ज़बानों और सब वक़्तों का एक मुजस्सम गीत हो, इन्क़िलाबी, समाज के क़स्साब ख़ाने की एक बीमार और फ़ाक़ों मरी भीड़ नहीं वो एक मज़दूर है तनोमंद, जो अपने आहनी हथौड़े की एक ज़र्ब से ही अर्ज़ी-ए-जन्नत के दरवाज़े वा कर सकता है। मेरे अज़ीज़! ये मंतिक़, ख़्वाबों और नज़रियों का ज़माना नहीं, इन्क़िलाब एक ठोस हक़ीक़त है, ये यहां पर मौजूद है। उस की लहरें बढ़ रही हैं। कौन है जो अब इस को रोक सकता है। ये बंद बांधने पर न रुक सकेंगी!”

उस का हर लफ़्ज़ हथौड़े की उस ज़र्ब की मानिंद था जो सुर्ख़ लोहे पर पड़ कर उस की शक्ल तबदील कर रहा हो। मैंने महसूस किया कि मेरी रूह किसी ग़ैर मरई चीज़ को सजदा कर रही है।

शाम की तारीकी बतदरीज बढ़ रही थी, नीम के दरख़्त कपकपा रहे थे शायद मेरे सीने में एक नया जहां आबाद हो रहा था। अचानक मेरे दिल से कुछ अल्फ़ाज़ उठे और लबों से बाहर निकल गए।

“अगर इन्क़िलाब यही है, तो मैं भी इन्क़िलाबी हूँ!”

शायर ने अपना सर उठाया और मेरे कांधे पर हाथ रखते हुए कहा,

“तो फिर अपने ख़ून को किसी तश्तरी में निकाल कर रख छोड़ो, कि हमें आज़ादी के खेत के लिए इस सुर्ख़ खाद की बहुत ज़रूरत महसूस होगी आह! वो वक़्त किस क़दर ख़ुश-गवार होगा जब मेरी आहों की ज़र्दी तबस्सुम का रंग इख़्तियार करलेगी।”

ये कह कर वो कुवें की मुंडेर से उठा और मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर कहने लगा। इस दुनिया में ऐसे लोग मौजूद हैं जो हाल से मुतमइन हैं। अगर तुम्हें अपनी रूह की बालीदगी मंज़ूर है तो ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहने की सई करना। इन का एहसास पथरा गया है। मुस्तक़बिल के जां-बख़्श मनाज़िर उन की निगाहों से हमेशा ओझल रहेंगे।.............. अच्छा, अब मैं चलता हूँ।”

उस ने बड़े प्यार से मेरा हाथ दबाया, और पेशतर इस के कि मैं उस से कोई और बात करता वो लंबे क़दम उठाता हुआ झाड़ियों के झुंड में ग़ायब हो गया।

बाग़ की फ़िज़ा पर ख़ामोशी तारी थी। मैं सर झुकाए हुए ख़ुदा मालूम कितना अर्सा अपने ख़यालात में ग़र्क़ रहा। कि अचानक उस शायर की आवाज़ रात की रानी की दिल-नवाज़ ख़ुशबू में घुली हुई मेरे कानों तक पहुंची। वो बाग़ के दूसरे गोशे में गा रहा था।

ज़मीन सितारों की तरफ़ ललचाई हुई नज़रों से देख रही है।

उठो और इन नगीनों को उस के नंगे सीने पर जड़ दो।

ढाओ, खोदो, चपरो, मारवा।

मैं आहों का ब्योपारी हूँ।

नई दुनिया के मेमारो! क्या तुम्हारे बाज़ुओं में क़ुव्वत नहीं है।

लहू की शायरी मेरा काम है ।

गीत ख़त्म होने पर मैं बाग़ में कितने अर्से तक बैठा रहा। ये मुझे क़तअन याद नहीं। वालिद का बयान है। कि मैं उस रोज़ घर बहुत देर से आया था ।

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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

8 अप्रैल 2022
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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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