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इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022

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“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा”

“ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है”

“हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?”

“कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे”

“ग़ुसल-ख़ाने में तो हर शरीफ़ आदमी अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ गाता है इस लिए कि वहां कोई सुनने वाला नहीं होता मेरा ख़याल है तुम्हें मेरी आवाज़ पसंद नहीं आती”

“आप की आवाज़ तो माशा अल्लाह बड़ी अच्छी है”

“मुझे बना रही हो मुझे इस का इल्म है कि मैं कुन सुरा हूँ मेरी आवाज़ में कोई कशिश नहीं कोई भी इसे फटे बांस की आवाज़ कह सकता है”

“मुझे तो आप की आवाज़ बड़ी सुरीली मालूम होती है बाक़ी अल्लाह बेहतर जानता है लेकिन मैं पूछती हूँ हर वक़्त ये पंजाबी बोली विरद-ए-ज़बान क्यों रहती है”

“मुझे अच्छी लगती है बेगम तुम को अगर अदब और शेअर से ज़रा सा भी शग़फ़ हो ”

“ये शग़फ़ क्या बला है आप हमेशा ऐसे अल्फ़ाज़ में गुफ़्तुगू करते हैं जिसे कोई समझ ही नहीं सकता।”

“शग़फ़ का मतलब बस तुम ये समझ लो कि इस का मतलब लगाओ है”

“मुझे शायरी से लगाओ क्यों हो ऐसी वाहियात चीज़ है”

“यानी शायरी भी इक चीज़ हो गई ये तुम्हारी बड़ी ज़्यादती है फ़ुर्सत के लम्हात में अपने अंदर ज़ौक़ पैदा किया करो”

“छः बच्चे पैदा कर चुकी हूँ अब मैं और कोई चीज़ पैदा नहीं कर सकती”

“मैंने तुम से कई मर्तबा कहा कि मुआमला ख़त्म होना चाहिए पर तुम ही नहीं मानीं छः बच्चे पैदा कर के तुम थक गई हो तुम्हारे पड़ोस में मिसिज़ क़य्यूम रहती हैं उस के ग्यारह बच्चे हैं”

“इस का मतलब है कि मैं भी ग्यारह ही पैदा करूं”

“मैंने ये कब कहा है मैं तो एक का भी क़ाइल नहीं था।”

“मैं अच्छी तरह जानती हूँ जब मेरे बच्चा न होता तो आप इसी बहाने से दूसरी शादी कर लेते”

“मैं तो एक ही शादी से भर पाया हूँ तुम सारी ज़िंदगी के लिए काफ़ी हो मैं दूसरी शादी के मुतअल्लिक़ सोच ही नहीं सकता”

“और ये पंजाबी बोली किस लिए गाई जा रही थी”

“भई मैं कह चुका हूँ कि मुझे ये पसंद है तुम्हें ना-पसंद हो तो मैं क्या कह सकता हूँ मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा”

“इस बोली में आप को क्या लज़्ज़त महसूस होती है”

“मैं इस के मुतअल्लिक़ वसूक़ से कुछ नहीं कह सकता”

“आप ने अब तक कोई बात वक़ूस से नहीं कही”

“वक़ूस नहीं वसूक़ यानी यक़ीन के साथ”

“आप ने अभी तक कोई बात ऐसी नहीं की जिस में यक़ीन पाया जाता हो”

“लो आज ये नई बात सुनी मेरी बातों पर आप को यक़ीन क्यों नहीं आता।”

“मर्दों की बातों का एतबार ही क्या है?”

“औरतों की बातों का एतबार ही क्या घड़ी में तोला घड़ी में माशा आप ही फाड़ती हैं आप ही रफू करती हैं समझ में नहीं आता ये आज की ब्रहमी किस बात पर है।”

“आप ऐसे वाहियात गीत गाते रहें और मैं चुप रहूं अब से दूर क़ुरआन दरमयान आप ने हमेशा मुझ से बे-एतिनाई की मेरी समझ में नहीं आता कि आप को ग़ज़लों और गीतों से इतनी दिलचस्पी क्यों है अभी पिछले दिनों आप मुसलसल ये शेअर गुनगुनाते रहे:

सुना है मह जबीनों को भी कुछ कुछ

मुरव्वत के क़रीने आ रहे हैं

मुझे इस पर सख़्त एतराज़ है कोई शरीफ़ आदमी ऐसे शेअर नहीं गाता आप:

तेरी ज़ात है अकबरी सरवरी

मेरी बार क्यों देर इतनी करी

नहीं गाते”

“लाहौल वला तुम भी कैसी ऊटपटांग बातें करती हो”

“ये बातें गोया आप के नज़दीक ऊटपटांग हैं? इस लिए कि पाकीज़ा हैं?”

“दुनिया में हर चीज़ पाकीज़ा है”

“आप भी?”

“मैं तो हमेशा साफ़ सुथरा रहता हूँ तुम ने कई मर्तबा इस की तारीफ़ की है दिन में दो मर्तबा कपड़े बदलता हूँ सख़्त सर्दी भी हो ग़ुसल करता हूँ तुम तो तीन चार दिन छोड़ के नहाती हो तुम्हें पानी से नफ़रत है”

“अजी वाह मैं तो हर हफ़्ते बाक़ायदा नहाती हूँ”

“हर हफ़्ते का नहाना तो सफ़ैद झूट है क़ुरआन की क़सम खा के बताओ तुम्हें नहाए हुए कितने दिन हो गए हैं”

“मैं क़ुरआन की क़सम खाने के लिए तैय्यार नहीं आप बताईए कब ग़ुसल किया था”

“आज सुबह”

“झूट आप का अव्वल झूट, आख़िर झूट आज सुबह तो नल में पानी ही नहीं था मैंने साढ़े नौ बजे के क़रीब दो मशकें मंगवाई थीं”

“मैं भूल गया वाक़ई आज मैंने ग़ुसल नहीं किया”

“आप को भूल जाने का मर्ज़ है”

“भूलना इंसान की फ़ित्रत है इस पर तुम्हें एतराज़ करने का कोई हक़ नहीं चंद रोज़ हुए तुम दस का नोट कहीं रख के भूल गई थीं और मुझ पर इल्ज़ाम लगाया कि मैंने चोरी कर लिया है ये कितनी बड़ी ज़्यादती थी”

“जैसे आप ने मेरे रुपय कभी नहीं चुराए पिछले महीने मेरी अलमारी से आप ने सौ रुपय निकाले और ग़ायब कर गए”

“हो सकता है वो किसी और ने चुराए हों अगर तुम्हें मुझ पर शक था तो बता दिया होता ये भी मुम्किन है कि तुम ने वो सौ रुपय का नोट किसी महफ़ूज़ जगह रखा हो और बाद में भूल गई हो कई मर्तबा ऐसा हुआ है ”

“कब?”

“पिछले साल इसी महीने तुम ने पाँच सौ रुपय के नोट अपने पलंग के बिस्तर के नीचे छुपा रक्खे थे और तुम उन के मुतअल्लिक़ बिलकुल भूल गई थीं मुझ पर ये इल्ज़ाम लगाया गया था कि मैंने चुराए हैं आख़िर मैंने ही तलाश कर के निकाले और तुम्हारे हवाले कर दिए”

“क्या पता है कि आप ने चुराए हूँ और बाद में मेरे शोर मचाने पर अपनी जेब से निकाल कर बिस्तर के नीचे रख दिए हूँ।”

“मेरी समझ में तुम्हारी ये मंतिक़ नहीं आती”

“आप की समझ में तो कोई चीज़ भी नहीं आती कल मैंने आप से कहा था कि दही खाना आप के लिए मुफ़ीद है, लेकिन आप ने मुझे एक लक्चर पिला दिया कि दही फ़ुज़ूल चीज़ है”

“दही तो मैं हर रोज़ खाता हूँ”

“कितना खाते हैं”

“यही, कोई आध सेर”

“मैं हर रोज़ सेर मंगवाती हूँ बाक़ी पड़ा झक मारता रहता है”

“दही को झक मारने की क्या ज़रूरत है जो बच जाता है उस की तुम कढ़ी बना लेती हो”

“मैं दही के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती कढ़ी बनाती हूँ तो ये इस बात का सबूत है कि मैं सलीक़ा शिआर औरत हूँ मैंने आप से सिर्फ़ इतना पूछा था कि आप आजकल एक ख़ास पंजाबी बोली क्यों हर वक़्त गाते रहते हैं।”

“इस लिए कि मुझे पसंद है”

“क्यों पसंद है? इस की वजह भी तो होनी चाहिए”

“तुम्हें काला रंग क्यों पसंद है उस की वजह बताओ। तुम्हें भिंडियां मर्ग़ूब हैं क्यों?”

“तुम्हें सिनेमा देखने का शौक़ है। इस का जवाज़ पेश करो तुम लट्ठे की बजाय रेशम की शलवारें पहनती हो उस की क्या वजह है?”

“आप को कोई हक़ हासिल नहीं कि मुझ से इस क़िस्म के सवाल करें मैं अपनी मर्ज़ी की मालिक हूँ।”

“अपनी मर्ज़ी का मालिक मैं भी हूँ क्या मुझे ये हक़ हासिल नहीं कि जो शेअर भी मुझे पसंद हो, अपनी भोंडी आवाज़ में दिन रात गाता रहूं।”

“मुझे इस पर कोई एतराज़ नहीं लेकिन मैं समझती हूँ........ ”

“रुक क्यों गईं।”

“देखिए। आप मेरी ज़बान न खुलवाईए मैंने आज तक आप से कुछ नहीं कहा हालाँकि मैं सब कुछ जानती हूँ।”

“तुम मेरे मुतअल्लिक़ क्या जानती हो”

“सब कुछ”

“कुछ मुझे भी बता दो, ताकि मैं अपने मुतअल्लिक़ कुछ जान सकूं मैं तो सालहा-साल के ग़ौर-ओ-फ़िक्र के बाद भी अपने मुतअल्लिक़ कुछ जान न सका”

“आप को इस पंजाबी बोली में जो आप मुसलसल गुनगुनाते रहते हैं सब कुछ जान सकते हैं।”

“तुम इस क़दर शकी क्यों हो”

“हर मर्द बे-वफ़ा होता है”

“मैंने तुम से किया बे-वफाई की है असल में औरतें जा-ओ-बेजा अपने शौहरों पर शक करती रहती हैं।”

“ठहरिए दरवाज़े पर दस्तक हुई है मेरा ख़याल है डाकिया है”

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“ये ख़त मेरा है लाओ इधर”

“मैं खोलती हूँ पढ़ के आप के हवाले कर दूँगी”

“तुम्हें मेरे ख़त पढ़ने का कोई हक़ हासिल नहीं”

“मैं हमेशा आप के ख़त पढ़ती रही हूँ ये हक़ आप ने कब से छीन लिया?”

“अच्छा ये बता दो कि ख़त किस का है”

“आप ही का है?”

“किस ने लिखा है?”

“आप की एक सहेली है जिस का नाम अज़्रा है वो पंजाबी बोली जो आप गाते फिरते हैं इस काग़ज़ की पेशानी पर लिखी है

मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा

ये टूट ही जाये तो बेहतर है।”

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
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सोने कि अंगूठी

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बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

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अब्जी डूडू

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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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इफ़्शा-ए-राज़

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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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8 अप्रैल 2022
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मिसेज़ डी सिल्वा

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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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