shabd-logo

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022

21 बार देखा गया 21

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है।

जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुरू में बैंक की मुलाज़मत करते हुए जब उसे ख़याल आया कि उस के पास भी दौलत के अंबार होने चाहिऐं तो उस के अज़ीज़-ओ-अका़रिब और दोस्तों ने इस ख़याल का मज़हका उड़ाया था मगर जब वो बैंक की मुलाज़मत छोड़ कर बंबई चला गया तो थोड़े ही अर्सा के बाद उस ने अपने दोस्तों और अज़ीज़ों की रुपय पैसे से मदद करना शुरू कर दी।

बंबई में उस के लिए कई मैदान थे मगर उस ने फ़िल्म के मैदान को मुंतख़ब किया। इस में दौलत थी। शौहरत थी। इस में चल फिर कर वो दोनों हाथों से दौलत समेट सकता था। और दोनों ही हाथों से लुटा भी सकता था। चुनांचे अभी तक इसी मैदान का सिपाही है।

लाखों नहीं करोड़ों रुपया उस ने कमाया और लुटा दिया। कमाने में इतनी देर न लगी। जितनी लुटाने में। एक फ़िल्म के लिए गीत लिखे। लाख रुपय धरवा लिए। लेकिन एक लाख रूपों को रन्डियों के कोठों पर, भड़वों की महफ़िलों में, घोड़ दौड़ के मैदानों और क़िमार ख़ानों में हारते हुए उसे काफ़ी देर लगी।

एक फ़िल्म बनाया। दस लाख का मुनाफ़ा हुआ। अब इस रक़म को इधर उधर लुटाने का सवाल पैदा हुआ। चुनांचे उस ने अपने हर क़दम में लग़्ज़िश पैदा कर ली। तीन मोटरें ख़रीद लीं। एक नई और दो पुरानी जिन के मुतअल्लिक़ उन्हें अच्छी तरह इल्म था कि बिलकुल ना-कारा हैं। ये उस के घर के बाहर गलने सड़ने के लिए रख दीं जो नई थी। उस को गैराज में बंद करा दिया। इस बहाने से कि पैट्रोल नहीं मिलता। उस के लिए टैक्सी ठीक थी। सुबह ली। एक मील के बाद रुकवा ली किसी क़िमार ख़ाने में चले गए। वो अढ़ाई हज़ार रुपय हार कर दूसरे रोज़ बाहर निकले टैक्सी खड़ी थी। उस में बैठे और घर चले गए और जान-बूझ कर किराया अदा करना भूल गए। शाम को बाहर निकले और टैक्सी खड़ी देख कर कहा। “अरे नाबकार, तू अभी तक यहीं खड़ा है.... चल मेरे साथ दफ़्तर। तुझे पैसे दिलवा दूं....” दफ़्तर पहुंच कर फिर किराया चुकाना भूल गए और....

ऊपर तले दो तीन फ़िल्म कामयाब हुए जितने रिकार्ड थे सब टूट गए। दौलत के अंबार लग गए। शौहरत आसमान तक जा पहुंची। झुँझला कर उस ने ऊपर तले दो तीन ऐसे फ़िल्म बनाए। जिन की नाकामी अपनी मिसाल आप हो के रह गई। अपनी तबाही के लिए कई दूसरों को भी तबाह कर दिया। लेकिन फ़ौरन ही आसतीनें चढ़ाईं जो तबाह हो गए। उन को हौसला दिया। और एक ऐसा फ़िल्म तैय्यार कर दिया जो सोने की कान साबित हुआ।

औरतों के मुआमले में भी उन की हार जीत का यही चक्कर कार-फ़रमा रहा है। किसी महफ़िल से या किसी कोठे पर से एक औरत उठाई। उस को बना संवार कर शौहरत की ऊंची गद्दी पर बैठा दिया और उस की सारी निस्वानियत मुसख़्ख़र करने के बाद उसे ऐसे मौक़े बहम पहुंचाए कि वो किसी दूसरे की र्गदन में अपनी बाहें हमायल कर दे।

बड़े बड़े सरमाया दारों और बड़े बड़े इश्क़-पेशा ख़ूबसूरत जवानों से मुक़ाबला हुआ। सर-धड़ की बाज़ियां लगीं। सियासत की बिसात बिछीं लेकिन वो इन तमाम ख़ार-दार झाड़ियों में हाथ डाल कर अपना पसंदीदा फूल नोच कर ले आया। दूसरे दिन ही उस को अपने कोट में लगाया और किसी रक़ीब को मौक़ा दे दिया कि वो झपटा मार कर ले जाये।

उन दिनों जब वो फ़ारस रोड के एक क़िमार ख़ाने में लगातार दस रोज़ से जा रहा था। उस पर हारने ही की धुन सवार थी। यूं तो उस ने ताज़ा ताज़ा एक बहुत ही ख़ूबसूरत ऐक्ट्रस हारी थी और दस लाख रुपय एक फ़िल्म में तबाह कर दिए थे। मगर इन दो हादिसों से उस की तबीयत सैर नहीं हुई थी। ये दो चीज़ें बहुत ही अचानक तौर पर उस के हाथ से निकल गई थीं। उस का अंदाज़ा इस दफ़ा ग़लत साबित हुआ था चुनांचे यही वजह है कि वो रोज़ फ़ारस रोड के क़िमार ख़ाने में नाप तौल कर एक मुक़र्ररा रक़म हार रहा था।

हर रोज़ शाम को अपनी जेब में दो सौ रुपय डाल कर वह पवन पिले का रुख़ करता। उस की टैक्सी टखाईओं की जंगला लगी दूकानों की क़तार के साथ साथ चलती और वो जा कर बिजली के एक खंबे के पास रुक जाती। अपनी नाक पर मोटे मोटे शीशों वाली ऐनक अच्छी तरह जमाता। धोती की लॉंग ठीक करता और एक नज़र दाएं जानिब देख कर जहां लोहे के जंगले के पीछे एक निहायत ही बद-शकल औरत टूटा हुआ आईना रखे सिंगार में मसरूफ़ होती ऊपर बैठक में चला जाता।

दस रोज़ से वो मुतवातिर फ़ारस रोड के इस क़िमार ख़ाने में दो सौ रुपया हारने के लिए आ रहा था। कभी तो ये रुपय दो तीन हाथों ही में ख़त्म हो जाये और कभी इन को हारते हारते सुबह हो जाती।

ग्यारहवें रोज़ बिजली के खंबे के पास जब टैक्सी रुकी तो उस ने अपनी नाक पर मोटे मोटे शीशों पर वाली ऐनक जमा कर और धोती की लॉंग ठीक कर के एक नज़र दाएं जानिब देखा तो उसे एक दम महसूस हुआ कि वो दस रोज़ से इस बद-शकल औरत को देख रहा है हस्ब-ए-दसतूर टूटा हुआ आईना सामने रखे लकड़ी के तख़्त पर बैठी सिंगार में मसरूफ़ थी।

लोहे के जंगले के पास आ कर उस ने ग़ौर से उस उधेड़ उम्र की औरत को देखा। रंग स्याह, जिल्द चिकनी, गालों और ठोढ़ी पर नीले रंग के छोटे छोटे सूई से गुँधे हुए दायरे जो चमड़ी की स्याही में क़रीब क़रीब जज़्ब हो गए थे। दाँत बहुत ही बद-नुमा, मसूड़े पान और तंबाकू से गले हुए। उस ने सोचा इस औरत के पास कौन आता होगा?।

लोहे के जंगले की तरफ़ जब उस ने एक क़दम और बढ़ाया तो वो बद-शकल औरत मुस्कुराई। आईना एक तरफ़ रख कर इस ने बड़े ही भोंडे पन से कहा। “क्यों सेठ रहेगा?”

उस ने और ज़्यादा ग़ौर से उस औरत की तरफ़ देखा जिसे इस उम्र में भी उम्मीद थी कि उस के गाहक मौजूद हैं। उस को बहुत हैरत हुई। चुनांचे उस ने पूछा “बाई तुम्हारी क्या उम्र होगी?”

ये सुन कर औरत के जज़्बात को धक्का सा लगा। मुँह बिसोर कर उस ने मराठी ज़बान में शायद गाली दी। उस को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। चुनांचे उस ने बड़े ख़ुलूस के साथ उस से कहा। “बाई मुझे माफ़ कर दो। मैं ने ऐसे ही पूछा था। लेकिन मेरे लिए बड़े अचंभे की बात है। हर रोज़ तुम सज धज कर यहां बैठती हो। क्या तुम्हारे पास कोई आता है?”

औरत ने कोई जवाब ना दिया। उस ने फिर अपनी ग़लती महसूस की और उस ने बग़ैर किसी तजस्सुस के पूछा। “तुम्हारा नाम क्या है?”

औरत जो पर्दा हटा कर अंदर जाने वाली थी रुक गई। “गंगूबाई।”

“गंगूबाई। तुम हर रोज़ कितना कमा लेती हो?”

उस के लहजे में हमदर्दी थी। गंगूबाई लोहे के सलाखों के पास आ गई। “छः सात रुपय.... कभी कुछ भी नहीं।”

“छः सात रुपय और कभी कुछ भी नहीं।” गंगूबाई के ये अल्फ़ाज़ दुहराते हुए उन दो सौ रूपयों का ख़याल आया जो उस की जेब में पड़े थे और जिन को वो सिर्फ़ हार देने के लिए अपने साथ लाया था। उसे मअन एक ख़याल आया। “देखो गंगूबाई। तुम रोज़ाना छः सात रुपय कमाती हो। मुझ से दस ले लिया करो।”

“रहने के?”

“नहीं.... लेकिन तुम यही समझ लेना कि मैं रहने के दे रहा हूँ।” ये कह कर उस ने जेब में हाथ डाला और दस रुपय का एक नोट निकाल कर सलाखों में से अंदर गुज़ार दिया। “ये लो।”

गंगूबाई ने नोट ले लिया। लेकिन उस का चेहरा सवाल बना हुआ था।

“देखो गंगूबाई, मैं तुम्हें हर रोज़ इसी वक़्त दस रुपय दे दिया करूंगा लेकिन एक शर्त पर”

“सरत?”

“शर्त ये है कि दस रुपय लेने के बाद तुम खाना वाना खा कर अंदर सौ जाया करो.... रात को मैं तुम्हारी बत्ती जलती ना देखूं।”

गंगूबाई के होंटों पर अजीब-ओ-ग़रीब मुस्कुराहट पैदा हुई।

“हंसो नहीं। मैं अपने वचन का पक्का रहूँगा।”

ये कह कर वो ऊपर क़िमार ख़ाने में चला गया। सीढ़ियों में उस ने सोचा मुझे तो ये रुपय हारने ही होते हैं। दो सौ ना सही एक सौ नव्वे सही।

कई दिन गुज़र गए। हर रोज़ हस्ब-ए-दस्तूर उस की टैक्सी शाम के वक़्त बिजली के खंबे के पास रुकती। दरवाज़ा खोल कर वह बाहर निकलता। मोटे शीशों वाली ऐनक में से दाएं जानिब गंगूबाई को आहनी सलाखों के पीछे तख़्त पर बैठी देखता। अपनी धोती की लॉंग ठीक करता जंगले के पास पहुंचता और दस रुपय का एक नोट निकाल कर गंगूबाई को दे देता। गंगूबाई उस नोट को माथे से छू कर सलाम करती और वो एक सौ नव्वे हारने के लिए ऊपर कोठे पर चला जाता। इस दौरान में दो तीन मर्तबा रुपया हारने के बाद जब वो रात को ग्यारह बजे या दो तीन बजे नीचे उतरा तो इस ने गंगूबाई की दुकान बंद पाई।

एक दिन हस्ब-ए-मामूल दस रुपय दे कर जब वो कोठे पर गया तो दस बजे ही फ़ारिग़ हो गया। ताश के पत्ते कुछ ऐसे पड़े कि चंद घंटों ही में एक सौ नव्वे रूपों का सफ़ाया हो गया। कोठे से नीचे उतर कर जब वो टैक्सी में बैठने लगा तो उस ने क्या देखा कि गंगूबाई की दुकान खुली है और वो लोहे के जंगले के पीछे तख़्त पर यूं बैठी है जैसे ग्राहकों का इंतिज़ार कर रही है टैक्सी में से बाहर निकल कर वह उस की दुकान की तरफ़ बढ़ा। गंगूबाई ने उसे देखा तो घबरा गई लेकिन वो पास पहुंच चुका था।

“गंगूबाई ये क्या?”

“गंगूबाई ने कोई जवाब न दिया।”

“बहुत अफ़्सोस है तुम ने अपना वचन पूरा न किया.... मैं ने तुम से कहा था.... रात को मैं तुम्हारी बत्ती जलती न देखूं........ लेकिन तुम यहां इस तरह बैठी हो।”

उस के लहजे में दुख था। गंगूबाई सोच में पड़ गई।

“तुम बहुत बुरी हो। ये कह कर वो वापस जाने लगा।”

गंगूबाई ने आवाज़ दी। “ठहरो सेठ।”

वो ठहर गया। गंगूबाई ने हौले-हौले एक एक लफ़्ज़ चबा कर अदा करते हुए कहा। “मैं बहुत बुरी हूँ। पर यहां चांगली भी कौन है?........ सेठ तुम दस रुपय दे कर एक की बत्ती बुझाते हो........ ज़रा देखो तो कितनी बत्तियां जल रही हैं।”

उस ने एक तरफ़ हट कर गली के साथ साथ दौड़ती होई जंगला लगी दुकानों की तरफ़ देखा। एक न ख़त्म होने वाली क़तार थी और बे-शुमार बत्तियां रात की कसीफ़ फ़िज़ा में सुलग रही थीं।

“क्या तुम ये सब बत्तियां बुझा सकते हो?”

उस ने अपनी ऐनक के मोटे मोटे शीशों में से पहले गंगूबाई के सर पर लटकते हुए रोशन बल्ब को देखा। फिर गंगूबाई के मटमैले चेहरे को और गर्दन झुका कर कहा। “नहीं। गंगूबाई। नहीं।”

जब वो टैक्सी में बैठा तो उस की जेब की तरह उस का दिल भी ख़ाली था।

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए