shabd-logo

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022

26 बार देखा गया 26

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की आँखें देखती नहीं थीं मगर ज़फ़र शाह ने यूं महसूस किया कि उस को एक नई बसारत मिल गई है।

ज़फ़र शाह ज़ईफ़-उल-एतिका़द था। उस को पीरों फ़क़ीरों से बड़ी अक़ीदत थी। जब हाफ़िज़ हुसैन दीन उस के पास आया तो उस ने उस को अपने फ़्लैट के नीचे मोटर गिरज में ठहराया...... उस को वो वाईट हाऊस कहता था।

ज़फ़र शाह सय्यद था। मगर उस को ऐसा मालूम होता था कि वो मुकम्मल सय्यद नहीं है। चुनांचे उस ने हाफ़िज़ हुसैन दीन की ख़िदमत में गुज़ारिश की कि वो उस की तकमील करदें। हाफ़िज़ साहिब ने थोड़ी देर बाद अपनी बे-नूर आँखें घुमा कर उस को जवाब दिया। “बेटा...... तू पूरा बनना चाहता है तो ग़ौस-ए-आज़म जीलानी से इजाज़त लेना पड़ेगी।”

हाफ़िज़ साहिब ने फिर अपनी बे-नूर आँखें घुमाईं। “उन के हुज़ूर में तो फ़रिश्तों के भी पर जलते हैं।”

ज़फ़र शाह को बड़ी ना-उम्मीदी हुई। “आप साहब-ए-कशफ़ हैं...... कोई मुदावा तो होगा।” हाफ़िज़ साहिब ने अपने सर को ख़फ़ीफ़ सी जुंबिश दी। “हाँ चिल्ला काटना पड़ेगा मुझे।”

“अगर आप को ज़हमत न हो तो अपने इस ख़ादिम के लिए काट लीजिए।”

“सोचूंगा।”

“हाफ़िज़ हुसैन दीन एक महीने तक सोचता रहा। इस दौरान ज़फ़र शाह ने उन की ख़ातिर-ओ-मुदारात में कोई कसर उठा न रखी। हाफ़िज़ साहब के लिए सुबह उठते ही डेढ़ पाओ बादाम तोड़ता। उन के मग़ज़ निकाल कर सरदाई तैय्यार करता। दोपहर को एक सैर गोश्त भुनवा के उस की ख़िदमत में पेश करता। शाम को बालाई मिली हुई चाय पिलाता। रात को एक मुर्ग़ मुसल्लम हाज़िर करता।

ये सिलसिला चलता रहा। आख़िर हाफ़िज़ हुसैन ने ज़फ़र शाह से कहा। “अब मुझे आवाज़ें आनी शुरू होगई हैं।”

ज़फ़र शाह ने पूछा। “कैसी आवाज़ें क़िबला।”

“तुम्हारे मुतअल्लिक़।”

“क्या कहती हैं।”

“तुम ऐसी बातों के मुतअल्लिक़ मत पूछा करो।”

“माफ़ी चाहता हूँ।”

हाफ़िज़ साहब ने टटोल टटोल कर मुर्ग़ की टांग उठाई और उसे दाँतों से काटते हुए कहा। “तुम असल में मुनकिर हो...... आज़माना चाहते हो तो किसी कुवें पर चलो।”

ज़फ़र शाह थरथरा गया। “हुज़ूर मैं आप को आज़माना नहीं चाहता...... आप का हर लफ़्ज़ सदाक़त से लबरेज़ है।”

हाफ़िज़ साहब ने सर को ज़ोर से जुंबिश दी। “नहीं ...... हम चाहते हैं कि तुम हमें आज़माओ...... खाना खालें तो हमें किसी भी कुवें पर ले चलो।”

“वहां क्या होगा क़िबला।”

“मेरा मामूल आवाज़ देगा...... वो कुँआं पानी से लबालब भर जाएगा और तुम्हारे पांव गीले हुए जाऐंगे...... डरोगे तो नहीं?”

ज़फ़र शाह डर गया था। हाफ़िज़ हुसैन दीन जिस लहजे में बातें कर रहा था बड़ा पुर-हैबत था...... लेकिन उस ने इस ख़ौफ़ पर क़ाबू पाकर हाफ़िज़ साहब से कहा। “जी नहीं...... आप की ज़ात-ए-अक़्दस मेरे साथ होगी तो डर का सवाल ही पैदा नहीं होता।”

जब सारा मुर्ग़ ख़त्म होगया तो हाफ़िज़ साहब ने ज़फ़र शाह से कहा। “मेरे हाथ धुलवाओ...... और किसी कुवें पर ले चलो।”

ज़फ़र शाह ने उस के हाथ धुलवाए तोलिए से पोंछे और उसे एक कुवें पर ले गया जो शहर से काफ़ी दूर था ज़फ़र शाह चादर लपेट कर उस की मुंडेर के पास बैठ गया। मगर हाफ़िज़ साहब ने चिल्ला कर कहा। “पाँच क़दम पीछे हट जाओ...... मैं पढ़ने वाला हूँ। कुवें का पानी लबालब भर जाएगा...... तुम डर जाओगे।”

ज़फ़र शाह डर कर दस क़दम पीछे हट गया। हाफ़िज़ साहिब ने पढ़ना शुरू कर दिया।

रमज़ान अली भी साथ था जिस ने ज़फ़र शाह से हाफ़िज़ साहब का तआरुफ़ कराया था...... वो दूर बैठा मूंगफली खा रहा था।

हाफ़िज़ साहब ने कुवें पर आने से पहले ज़फ़र शाह से कहा था कि दो सेर चावल, डेढ़ सेर शकर और पाओ भर काली मिर्चों की ज़रूरत है जो उस का मामूल खा जाएगा...... ये तमाम चीज़ें हाफ़िज़ साहब की चादर में बंधी थीं।

देर तक हाफ़िज़ हुसैन दीन मालूम नहीं किस ज़बान में पढ़ता रहा। मगर उस के मामूल की कोई आवाज़ न आई...... न कुवें का पानी ऊपर । हाफ़िज़ ने चावल, शकर और मिर्चें कुवें में फेंक दीं। फिर भी कुछ न हुआ...... चंद लमहात सुकूत तारी रहा। इस के बाद हाफ़िज़ पर जज़ब की सी कैफ़ियत तारी हुई और वो बुलंद आवाज़ में बोला। “ज़फ़र शाह को कराची ले जाओ...... उस से पाँच सौ रुपय लो और गुजरांवाला में ज़मीन अलॉट करालो।”

ज़फ़र शाह ने पाँच सौ रुपय हाफ़िज़ की ख़िदमत में पेश कर दिए। उस ने ये रुपय अपनी जेब में डाल कर उस से बड़े जलाल में कहा...... “ज़फ़र शाह...... तू ये रुपय दे कर समझता है मुझ पर कोई एहसान किया।”

ज़फ़र शाह ने सर-ता-पा उज्ज़ बन कर कहा। “नहीं हुज़ूर मैंने तो आप के इरशाद की तामील की है।” हाफ़िज़ हुसैन दीन का लहजा ज़रा नर्म होगया। “देखो सर्दियों का मौसम है, हमें एक धुस्से की ज़रूरत है।”

“चलिए अभी ख़रीद लेते हैं।”

“दो घोड़े की बोसकी की क़मीस और एक पंप शो।”

ज़फ़र शाह ने गुलामों की तरह कहा। “हुज़ूर आप के हुक्म की तामील हो जाएगी।”

हाफ़िज़ साहब के हुक्म की तामील होगई। पाँच सौ रुपय का धुस्सा। पच्चास रुपय की क़राक़ुली की टोपी। बीस रुपय का पंप शो...... ज़फ़र शाह ख़ुश था कि उस ने एक पहुंचे हुए बुज़ुर्ग की ख़िदमत की।

हाफ़िज़ साहिब वाईट हाऊस में सौ रहे थे कि अचानक बड़बड़ाने लगे। ज़फ़र शाह फ़र्श पर लेटा था। उस की आँख लगने ही वाली थी कि चौंक कर सुनने लगा। हाफ़िज़ साहिब कह रहे थे “हुक्म हुआ है...... अभी अभी हुक्म हुआ है कि हाफ़िज़ हुसैन दीन तुम दरिया रावी जाओ और वहां चिल्ला काटो ...... चिल्ला काटो...... वहां तुम अपने मामूल से बात कर सकोगे।”

ज़फ़र शाह, हाफ़िज़ को टैक्सी में दरयाए रावी पर ले गया। वहां हाफ़िज़ छियालीस घंटे मालूम नहीं क्या कुछ पढ़ता रहा। इस के बाद उस ने ऐसी आवाज़ में जो उस की अपनी नहीं थी कहा...... “ज़फ़र शाह से तीन सौ रुपया और लो...... अपने भाई की आँखों का ईलाज करो...... तुम इतने ग़ाफ़िल क्यों हो...... अगर तुम ने ईलाज न कराया तो वो भी तुम्हारी तरह अंधा होजाएगा।”

ज़फ़र शाह ने तीन सौ रुपय और दे दिए। हाफ़ित हुसैन दीन ने अपनी बे-नूर आँखें घुमाईं जिस में मुसर्रत की झलक नज़र आ सकती थी। और कहा “डाकखाने में मेरे बारह सौ रुपय जमा हैं...... तुम कुछ फ़िक्र न करो पहले पाँच सौ और ये तीन सौ ...... कुल आठ सौ हुए...... मैं तुम्हें अदा कर दूँगा।”

ज़फ़र शाह बहुत मुतअस्सिर हुआ। “जी नहीं...... अदायगी की क्या ज़रूरत है...... आप की ख़िदमत करना मेरा फ़र्ज़ है।”

ज़फ़र शाह देर तक हाफ़िज़ की ख़िदमत करता रहा। इस के इवज़ हाफ़िज़ ने चालीस दिन का चिल्ला काटा मगर कोई नतीजा बरामद न हुआ।

ज़फ़र शाह ने वैसे कई मर्तबा महसूस किया कि वो पूरा सय्यद बन गया है और उस की ततहीर होगई है मगर बाद में उस को मायूसी हुई क्योंकि वो अपने में कोई फ़र्क़ न देखता उस की तश्फ़्फी नहीं हुई थी।

उस ने समझा कि शायद उस ने हाफ़िज़ साहब की ख़िदमत पूरी तरह अदा नहीं की। जिस की वजह से उस की उम्मीद बर नहीं आई। चुनांचे उस ने हाफ़िज़ साहब को रोज़ाना एक मुर्ग़ खिलाना शुरू कर दिया। बादामों की तादाद बढ़ा दी। दूध की मिक़दार भी ज़्यादा कर दी।

एक दिन उस ने हाफ़िज़ साहब से कहा। “पीर साहब ...... मेरे हाल पर करम फ़रमाईए मेरी मुराद कभी तो पूरी होगी या नहीं।”

हाफ़िज़ हुसैन दीन ने बड़े पीराना अंदाज़ में जवाब दया “होगी...... ज़रूर होगी...... हम इतने चिल्ले काट चुके हैं ऐसा मालूम होता है कि अल्लाह तबारक-ओ-ताला तुम से नाराज़ हैं...... तुम ने ज़रूर अपनी ज़िंदगी में कोई गुनाह क्या होगा।”

ज़फ़र शाह ने कुछ देर सोचा। “हुज़ूर ...... मैंने ...... ऐसा कोई गुनाह नहीं किया जो...... ”

हाफ़िज़ साहिब ने उस की बात काट कर कहा। “नहीं ज़रूर क्या होगा...... ज़रा सोचो...... ”

ज़फ़र शाह ने कुछ देर सोचा। “एक मर्तबा अपने वालिद साहब के बटोई से आठ आने चुराए थे।”

“ये कोई इतना बड़ा गुनाह नहीं...... और सोचो...... कभी तुम ने किसी लड़की को बुरी निगाहों से देखा था?”

ज़फ़र शाह ने हिचकिचाहट के बाद जवाब दिया। “हाँ पीर-ओ-मुर्शिद...... सिर्फ़ एक मर्तबा।”

“कौन थी वो लड़की?”

“जी मेरे चचा की।”

“कहाँ रहती है?”

“जी उसी घर में।”

“हाफ़िज़ साहब ने हुक्म दिया। “बुलाओ उस को ...... क्या तुम इस से शादी करना चाहते हो?”

“जी हाँ ...... हमारी मंगनी क़रीब क़रीब तै हो चुकी है।”

हाफ़िज़ साहब ने बड़े पुर-जलाल लहजे में कहा। “ज़फ़र शाह...... बुलाओ उस को ...... तुम ने मुझ से पहले ही ये बात कह दी होती तो मुझे बेकार इतना वक़्त ज़ाए न करना पड़ता।”

ज़फ़र शाह शश-ओ-पंज में पड़ गया। वो हाफ़िज़ साहब का हुक्म टाल नहीं सकता था और फिर अपनी होने वाली मंगेतर से ये भी नहीं कह सकता था कि वो हाफ़िज़ साहब को मिले...... बादल-ए-नाख़्वास्ता ऊपर गया। बिलकीस बैठी नावेल पढ़ रही थी। ज़फ़र शाह को देख कर ज़रा सिमट गई और कहा...... “आप मेरे कमरे में कैसे आगए।”

ज़फ़र शाह ने दबे दबे लहजे में जवाब दिया। “वो ...... जो हाफ़िज़ साहब आए हुए हैं ना...... ”

बिलक़ीस ने नावेल एक तरफ़ रख दिया। “हाँ हाँ ...... मैंने उन्हें कई मर्तबा देखा है...... क्या बात है।”

“बात ये है कि तुम से मिलना चाहते हैं।”

बिलक़ीस ने हैरत का इज़हार किया। “वो मुझ से क्यों मिलना चाहते हैं...... उन की तो आँखें ही नहीं।”

“वो तुम से चंद बातें करना चाहते हैं...... बड़े साहब-ए-कशफ़ बुज़ुर्ग हैं...... उन की बात से मुम्किन है हम दोनों का भला हो जाये।”

बिलक़ीस मुस्कुराई। “मालूम नहीं...... आप इतने ज़ईफ़-उल-एतिका़द क्यों हैं...... लेकिन चलिए। अंधा ही तो है...... उस से क्या पर्दा है।”

बिलक़ीस ज़फ़र शाह के साथ वाईट हाऊस में गई। हाफ़िज़ हुसैन दीन बैठा चिलगोज़े खा रहा था। जब उस ने क़दमों की चाप सुनी तो बोला “आ गए ज़फ़र शाह।”

ज़फ़र शाह ने ताज़ीमन जवाब दिया “जी हाँ हुज़ूर।”

“लड़की आई है।?”

“जी हाँ”

हाफ़िज़ साहब ने अपनी बे-नूर आँखों से बिलक़ीस को देखने की कोशिश की और कहा। “बैठ जाओ मेरे सामने...... बिलक़ीस सामने स्टूल पर बैठ गई।”

हाफ़िज़ साहब ने ज़फ़र शाह से कहा। “अब तुम्हारी मुराद बर आऐगी...... हम लड़की को वज़ीफ़ा बताएंगे...... इंशाअल्लाह सब काम ठीक हो जाऐंगे।”

ज़फ़र शाह बहुत ख़ुश हुआ ...... उस ने फ़ौरन फल मंगवाए और बिलक़ीस से कहा...... “हाफ़िज़ साहब मालूम नहीं कितनी देर लगाऐं...... उन की ख़िदमत करना न भूलना।”

हाफ़िज़ साहब ने कहा। “देखो हम तुम से बहुत ख़ुश हैं। आज हमारी तबीयत चाहती है कि तुम्में भी ख़ुश करदें। जाओ बाज़ार से चार तोले नौशादर, एक तौला चूना, दस तोले शिंगरफ़ और एक मिट्टी का कूज़ा ले आओ...... जितना उस का वज़न है उतना ही सोना बन जाएगा।”

ज़फ़र शाह भागा भागा बाज़ार गया। और ये चीज़ें ले आया। जब अपने वाईट हाऊस पहुंचा तो किवाड़ खुले थे और इस में कोई नहीं था। ऊपर गया तो मालूम हुआ कि बीबी बिलक़ीस भी नहीं है।

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए