shabd-logo

फुंदने

8 अप्रैल 2022

17 बार देखा गया 17

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेरते रहते थे। उन को ज़हर दे दिया गया.......एक एक कर के सब मर गए थे। उन की माँ भी....... उन का बाप मालूम नहीं कहाँ था। वो होता तो उस की मौत भी यक़ीनी थी।

जाने कितने बरस गुज़र चुके थे। कोठी से मुल्हक़ा बाग़ की झाड़ियां सैंकड़ों हज़ारों मर्तबा कुतरी ब्योंती, काटी छांटी जा चुकी थीं। कई बिल्लियों और कुत्तियों ने उन के पीछे बच्चे दिए थे जिन का नाम-ओ-निशान भी न रहा था। उस की अक्सर बद-आदत मुर्ग़ियां वहाँ अंडे दे दिया करती थीं जिन को हर सुब्ह उठा कर वो अंदर ले जाती थी।

उसी बाग़ में किसी आदमी ने उन की नौजवान मुलाज़िमा को बड़ी बे-दर्दी से क़त्ल कर दिया था....... उस के गले में उस का फुंदनों वाला सुर्ख़ रेशमी इज़ार-बंद जो उस ने दो रोज़ पहले फेरी वाले से आठ आने में ख़रीदा था, फंसा हुआ था। इस ज़ोर से क़ातिल ने पेच दिए थे कि उस की आँखें बाहर निकल आई थीं।

इस को देख कर उस को इतना तेज़ बुख़ार चढ़ा था कि बे-होश हो गई थी....... और शायद अभी तक बे-होश थी। लेकिन नहीं, ऐसा क्यूँ कर हो सकता था, इस लिए कि इस क़त्ल के देर बाद मुर्ग़ियों ने अंडे, न ही बिल्लियों ने बच्चे दिए थे और एक शादी हुई थी.......कुतिया थी जिस के गले में लाल दुपट्टा था। मुकेशी.......झिलमिल झिलमिल करता। उस की आँखें बाहर निकली हुई नहीं थीं, अंदर धंसी हुई थीं।

बाग़ में बैंड बजा था.......सुर्ख़ वर्दियों वाले सिपाही आए थे जो रंग बिरंगी मश्कीं बग़्लों में दबा कर मुँह से अजीब अजीब आवाज़ें निकालते थे। उन की वर्दियों के साथ कई फुंदने लगे थे। जिन्हें उठा उठा कर लोग अपने इज़ार बंदों में लगाते जाते थे.......पर जब सुब्ह हुई थी तो उन का नाम-ओ-निशान तक नहीं था....... सब को ज़हर दे दिया गया था।

दुल्हन को जाने क्या सूझी, कम-बख़्त ने झाड़ियों के पीछे नहीं, अपने बिस्तर पर सिर्फ़ एक बच्चा दिया....... जो बड़ा गुल गोथना, लाल फुंदना था। उस की माँ मर गई.......बाप भी....... दोनों को बच्चे ने मारा.......उस का बाप मालूम नहीं कहाँ था। वो होता तो उस की मौत भी इन दोनों के साथ होती।

सुर्ख़ वर्दियों वाले सिपाही बड़े बड़े फुंदने लटकाए जाने कहाँ ग़ायब हुए कि फिर न आए। बाग़ में बिल्ले घूमते थे, जो उसे घूरते थे, उस को छेछड़ों की भरी हुई टोकरी समझते थे हालाँ कि टोकरी में नारंगियाँ थीं।

एक दिन उस ने अपनी दो नारंगियां निकाल कर आइने के सामने रख दीं। उस के पीछे होके उस ने उन को देखा मगर नज़र न आईँ। उस ने सोचा इस की वजह ये है कि छोटी हैं.......मगर वो उस के सोचते सोचते ही बड़ी हो गईं और उस ने रेशमी कपड़े में लपेट कर आतिश-दान पर रख दीं।

अब कुत्ते भौंकने लगे.......नारंगियाँ फ़र्श पर लुढ़कने लगीं। कोठी के फ़र्श पर उछलैं, हर कमरे में कूदैं और उछलती कूदती बड़े बड़े बाग़ों में भागने दौड़ने लगीं....... कुत्ते उन से खेलते और आपस में लड़ते झगड़ते रहते।

जाने क्या हुआ, उन कुत्तों में दो ज़हर खा के मर गए। जो बाक़ी बचे वो उन की अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा खा गई। ये उस नौजवान मुलाज़िमा की जगह आई थी, जिस को किसी आदमी ने क़त्ल कर दिया था, गले में उस के फुंदनों वाले इज़ार-बंद का फंदा डाल कर।

उस की माँ थी। अधेड़ उम्र की मुलाज़िमा से उम्र में छः सात बड़ी बड़ी। उस की तरह हट्टी कट्टी नहीं थी। हर रोज़ सुब्ह शाम मोटर में सैर को जाती थी। और बद-आदत मुर्ग़ियों की तरह दूर दराज़ बाग़ों में झाड़ियों के पीछे अंडे देती थी। उन को वो ख़ुद उठा कर लाती थी न ड्राईवर।

आमलेट बनाती थी। जिस के दाग़ कपड़ों पर पड़ जाते थे। सूख जाते तो उन को बाग़ में झाड़ियों के पीछे फेंक देती थी जहाँ से चीलें उठा कर ले जाती थीं।

एक दिन उस की सहेली आई....... पाकिस्तान मेल, मोटर नंबर 9612 पी एल बड़ी गर्मी थी। डैडी पहाड़ पर थे। मम्मी सैर करने गई हुई थीं.......पसीने छूट रहे थे। उस ने कमरे में दाख़िल होते ही अपना ब्लाउज़ उतारा और पंखे के नीचे खड़ी हो गई। उस के दूध उबले हुए थे जो आहिस्ता आहिस्ता ठंडे हो गए। उस के दूध ठंडे थे जो आहिस्ता आहिस्ता उबलने लगे। आख़िर दोनों दूध हिल हिल के गुंगुने हो गए और खट्टी लस्सी बन गई।

उस सहेली का बैंड बज गया। मगर वो वर्दी वाले सिपाही फुंदने नचाने न आए। उस की जगह पीतल के बर्तन थे, छोटे और बड़े, जिन से आवाज़ें निकलती थीं। गरज-दार और धीमी....... धीमी और गरज-दार।

ये सहेली जब फिर मिली तो उस ने बताया कि वो बदल गई है। सचमुच बदल गई थी। उस के अब दो पेट थे। एक पुराना, दूसरा नया। एक के ऊपर दूसरा चढ़ा हुआ था। उस के दूध फटे हुए थे।

फिर उस के भाई का बैंड बजा....... अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा बहुत रोई। उस के भाई ने उस को बहुत दिलासा दिया। बे-चारी को अपनी शादी याद आ गई थी।

रात भर उस के भाई और उस की दुल्हन की लड़ाई होती रही। वो रोती रही, वो हंसता रहा.......सुब्ह हुई तो अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा इस के भाई को दिलासा देने के लिए अपने साथ ले गई। दुल्हन को नहलाया गया....... उस की शलवार में उस का लाल फुंदनों वाला इज़ार-बंद पड़ा था....... मालूम नहीं ये दुल्हन के गले में क्यूँ न बांधा गया।

उस की आँखें बहुत मोटी थीं। अगर गला ज़ोर से घोंटा जाता तो वो ज़बह किए हुए बकरे की आँखों की तरह बाहर निकल आतीं....... और उस को बहुत तेज़ बुख़ार चढ़ता। मगर पहला तो अभी तक उतरा नहीं.......हो सकता है उतर गया हो और ये नया बुख़ार हो जिस में वो अभी तक बे-होश है।

उस की माँ मोटर ड्राइवरी सीख रही है.......बाप होटल में रहता है। कभी कभी आता है और अपने लड़के से मिल कर चला जाता है। लड़का कभी कभी अपनी बीवी को घर बुला लेता है। अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा को दो तीन रोज़ के बाद कोई याद सताती है तो रोना शुरू कर देती है। वो उसे दिलासा देता है, वो उसे पुचकारती है और दुल्हन चली जाती है।

अब वो और दुल्हन भाभी, दोनों सैर को जाती हैं.......सहेली भी, पाकिस्तान मेल। मोटर नंबर 9612 पी ईल....... सैर करते करते अजंता जा निकलती हैं, जहां तस्वीरें बनाने का काम सिखाया जाता है। तस्वीरें देख कर तीनों तस्वीर बन जाते हैं। रंग ही रंग, लाल, पीले, हरे, नीले.......सब के सब चीख़ने वाले हैं। उन को रंगों का ख़ालिक़ चुप कराता है। उस के लंबे लंबे बाल हैं।

सर्दियों और गर्मियों में ओवर कोट पहनता है। अच्छी शक्ल-ओ-सूरत का है। अंदर बाहर हमेशा खड़ाऊं इस्तेमाल करता है....... अपने रंगों को चुप कराने के बाद ख़ुद चीख़ना शुरू कर देता है। उस को ये तीनों चुप कराती हैं और बाद में ख़ुद चिल्लाने लगती हैं।

तीनों अजंत में मुजर्रिद आर्ट के सैंकड़ों नमूने बनाती रहीं। एक की हर तस्वीर में औरत के दो पेट होते हैं। मुख़्तलिफ़ रंगों के....... दूसरी की तस्वीरों में औरत अधेड़ उम्र की होती है। हट्टी कट्टी। तीसरी की तस्वीरों में फुंदने ही फुंदने। इज़ार-बंदों का गुच्छा।

मुजर्रिद तस्वीरें बनती रहीं। मगर तीनों के दूध सूखते रहे....... बड़ी गर्मी थी, इतनी कि तीनों पसीने में शराबोर थीं। ख़स लगे कमरे के अंदर दाख़िल होते ही उन्हों ने अपने ब्लाउज़ उतारे और पंखे के नीचे खड़ी हो गईं। पंखा चलता रहा। दूधों में ठंडक पैदा हुई न गर्मी।

उस की मम्मी दूसरे कमरे में थी। ड्राइवर उस के बदन से मोबिल ऑयल पोंछ रहा था।

डैडी होटल में था जहाँ उस की लेडी स्टेनोग्राफर उस के माथे पर यू-डी क्लोन मल रही थी।

एक दिन उस का भी बैंड बज गया। उजाड़ बाग़ फिर बा-रौनक हो गया। गम्लों और दरवाज़ों की आराइश अजंता स्टूडियो के मालिक ने की थी। बड़ी बड़ी गहरी लिप-स्टिकें उस के बिखरे हुए रंग देख कर उड़ गईं। एक जो ज़्यादा सियाही माइल थी, इतनी उड़ी कि वहीं गिर कर उस की शागिर्द हो गई।

उस के उरूसी लिबास का डिज़ाइन भी स ने तैय्यार किया था। उस ने उस की हज़ारों की सम्तें पैदा कर दी थीं। ऐन सामने से देखो तो वो मुख़्तलिफ़ रंग के इज़ार-बंदों का बंडल मालूम होती थी। ज़रा उधर हट जाओ तो फलों की टोकरी थी। एक तरफ़ हो जाओ तो खिड़की पर पड़ा हुआ फुलकारी का पर्दा। अक़ब में चले जाओ। कुचले हुए तरबूज़ों का ढेर.......ज़रा ज़ाविया बदल कर देखो टमाटो-सॉस से भरा हुआ मर्तबान.......ऊपर से देखो तो यगाना आर्ट। नीचे से देखो तो मीरा जी की मुबहम शायरी।

फ़न शनास निगाहें अश अश कर उठीं....... दूलहा इस क़दर मुतअस्सिर हुआ था कि शादी के दूसरे रोज़ ही उस ने तहय्या कर लिया कि वो भी मुजर्रिद आर्टिस्ट बन जाएगा। चुनांचे अपनी बीवी के साथ वो अजंता गया।

जहाँ उन्हें मालूम हुआ कि उस की शादी हो रही है और वो चंद रोज़ से अपनी होने वाली दुल्हन ही के पास रहता है।

उस की होने वाली दुल्हन वही गहरे रंग की लिप-स्टिक थी जो दूसरी लिप-स्टिकों के मुक़ाबले में ज़्यादा सियाही माइल थी। शुरू शुरू में चंद महीने तक उस के शौहर को स से और मुजर्रिद आर्ट से दिलचस्पी रही, लेकिन जब अजंता स्टूडियो बंद हो गया और उस के मालिक की कहीं से भी सुन-गुन न मिली तो उस ने नमक का कारोबार शुरू कर दिया। जो बहुत नफ़ा बख़्श था।

इस कारोबार के दौरान में उस की मुलाक़ात एक लड़की से हुई। जिस के दूध सूखे हुए नहीं थे। ये उस को पसंद आ गई। बैंड न बजा लेकिन शादी हो गई। पहली अपने बरश उठा कर ले गई और अलग रहने लगी।

ये नाचाक़ी पहले तो दोनों के लिए तल्ख़ी का मुअज्जिब हुई लेकिन बाद में एक अजीब-ओ-ग़रीब मिठास में तबदील हो गई। उस की सहेली ने जो दूसरा शौहर तबदील करने के बाद सारे यूरोप का चक्कर लगा कर आई थी और अब दिक़ की मरीज़ थी, इस मिठास को क्यूबिक-आर्ट में पेंट किया। साफ़ शफ़्फ़ाफ़ चीनी के बे-शुमार क्यूब थे जो थूहर के पौदों के दरमियान इस अंदाज़ से ऊपर तले रखे थे कि उन से दो शक्लें बन गईं थी। उस पर शहद की मक्खियाँ बैठी रस चूस रही थीं।

उस की दूसरी सहेली ने ज़हर खा कर ख़ुद-कुशी कर ली। जब उस को ये अल्म-नाक ख़बर मिली तो वो बे-होश हो गई। मालूम नहीं बे-होशी नई थी या वही पुरानी जो बड़े तेज़ बुख़ार के बाद ज़हूर में आई थी।

उस का बाप यू-डी क्लोन में था। जहाँ उस का होटल उस की लेडी स्टेनोग्राफर का सर सहलाता था। उस की मम्मी ने घर का सारा हिसाब किताब अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा के हवाले कर दिया था। अब उस को ड्राइविंग आ गई थी मगर बहुत बीमार हो गई थी। मगर फिर भी उस को ड्राइवर के बिन माँ के पिल्ले का बहुत ख़याल था। वो उस को अपना मोबिल ऑयल पिलाती थी।

उस की भाभी और उस के भाई की ज़िंदगी बहुत अधेड़ और हट्टी कट्टी हो गई थी। दोनों आपस में बड़े प्यार से मिलते थे कि अचानक एक रात जब कि मुलाज़िमा और उस का भाई घर का हिसाब किताब कर रहे थे, उस की भाभी नुमूदार हुई, वो मुजर्रिद थी....... उस के हाथ में क़लम था न बरश। लेकिन उस ने दोनों का हिसाब साफ़ कर दिया।

सुब्ह कमरे में से जमे हुए लहू के दो बड़े बड़े फुंदने निकले जो उस की भाभी के गले में लगा दिए गए।

अब वो क़दरे होश में आई। ख़ावंद से नाचाक़ी के बाइस उस की ज़िंदगी तल्ख़ हो कर बाद में अजीबओ-गरीब मिठास में तबदील हो गई थी। उस ने उस को थोड़ा सा तल्ख़ बनाने की कोशिश की और शराब पीना शुरू की, मगर ना-काम रही। इस लिए कि मिक़दार कम थी.......उस ने मिक़दार बढ़ा दी हत्ता कि वो उस में डुबकियाँ लेने लगी.......लोग समझते थे कि अब ग़र्क़ हुई मगर वो सतह पर उभर आती थी। मुँह से शराब पोंछती हुई और क़हक़हे लगाती हुई। सुब्ह को जब उठती तो उसे महसूस होता कि रात भर उस के जिस्म का ज़र्रा ज़र्रा धाड़ें मार मार कर रोता रहा है। उस के वो सब बच्चे जो पैदा हो सकते थे, उन क़ब्रों में जो उन के लिए बन सकती थीं, उस दूध के लिए जो उन का हो सकता था, बिलक बिलक कर रो रहे हैं। मगर उस के दूध कहाँ थे....... वो तो जंगली बिल्ले पी चुके थे।

वो ज़्यादा पीती कि अथाह समुंद्र में डूब जाये मगर उस की ख़्वाहिश पूरी नहीं हुई। ज़हीन थी। पढ़ी लिखी थी। जिन्सी मौज़ूआत पर बगै़र किसी तसन्नो के बे-तकल्लुफ़ गुफ़्तुगू करती थी। मर्दों के साथ जिस्मानी रिश्ता क़ाएम करने में कोई मज़ाएक़ा नहीं समझती थी, मगर फिर भी कभी कभी रात की तन्हाई में उस का जी चाहता था कि अपनी किसी बद-आदत मुर्ग़ी की तरह झाड़ियों के पीछे जाये और एक अंडा दे आए।

बिलकुल खोखली हो गई। सिर्फ़ हड्डियों का ढांचा बाक़ी रह गया तो उस से लोग दूर रहने लगे....... वो समझ गई, चुनांचे वो उन के पीछे न भागी और अकेली घर में रहने लगी। सिगरेट पर सिगरेट फूंकती, शराब पीती और जाने क्या सोचती रहती.......रात को बहुत कम सोती थी। कोठी के इर्द-गिर्द घूमती रहती थी।

सामने क्वार्टर में ड्राइवर का बिन माँ का बच्चा मोबिल ऑयल के लिए रोता रहता था मगर उस की माँ के पास ख़त्म हो गया था। ड्राइवर ने एक्सीडेंट कर दिया था।

मोटर गैराज में और उसकी माँ हस्पताल में पड़ी थी। जहां उस की एक टांग काटी जा चुकी थी, दूसरी काटी जाने वाली थी।

वो कभी कभी क्वार्टर के अंदर झांक कर देखती तो उस को महसूस होता कि उस के दूधों की तलछट में हल्की सी लरज़िश पैदा हुई है, मगर इस बद-ज़ाएक़ा से तो उस के बच्चे के होंट भी तर न होते।

उस के भाई ने कुछ अर्से से बाहर रहना शुरू कर दिया था। आख़िर एक दिन उस का ख़त स्वीटज़रलैंड से आया कि वो वहाँ अपना इलाज करा रहा है, नर्स बहुत अच्छी है। हस्पताल से निकलते ही वो उस से शादी करने वाला है।

अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा ने थोड़ा ज़ेवर, कुछ नक़्दी और बहुत से कपड़े जो उस की मम्मी के थे, चुराए और चंद रोज़ के बाद ग़ाएब हो गई। इस के बाद उस की माँ ऑप्रेशन ना-काम होने के बाइस हस्पताल में मर गई।

उस का बाप जनाज़े में शामिल हुआ। इस के बाद उस ने उस की सूरत न देखी।

अब वो बिलकुल तन्हा थी। जितने नौकर थे, उस ने अलाहदा कर दिए, ड्राइवर समेत। उस के बच्चे के लिए उस ने एक आया रख दी....... कोई बोझ सिवाए उस के ख़यालों के बाक़ी न रहा था। कभी कभार अगर कोई उस से मिलने आता तो वो अंदर से चिल्ला उठीती थी। “चले जाओ.......जो कोई भी तुम हो, चले जाओ.......मैं किसी से मिलना नहीं चाहती।”

सेफ में उस को अपनी माँ के बे-शुमार क़ीमती जे़वरात मिले थे। उस के अपने भी थे जिन से उन को कोई रग़्बत न थी। मगर अब वो रात को घंटों आइने के सामने नंगी बैठ कर ये तमाम ज़ेवर अपने बदन पर सजाती और शराब पी कर कुन सुरी आवाज़ में फ़हश गाने गाती थी। आस पास और कोई कोठी नहीं थी इस ले उसे मुकम्मल आज़ादी थी।

अपने जिस्म को तो वो कई तरीक़ों से नंगा कर चुकी थी। अब वो चाहती थी कि अपनी रूह को भी नंगा कर दे। मगर उस में वो ज़बरदस्त हिजाब महसूस करती थी। इस हिजाब को दबाने के लिए सिर्फ़ एक ही तरीक़ा उस की समझ में आया था कि पिए और ख़ूब पिए और इस हालत में अपने नंगे बदन से मदद ले....... मगर ये एक बहुत बड़ा अल्मिया था कि वो आख़िरी हद तक नंगा हो कर सतर-पोश हो गया था।

तस्वीरें बना बना कर वो दिखा चुकी थी.......एक अर्से से उस का पेंटिंग का सामान संदूकचे में बंद पड़ा था। लेकिन एक दिन उस ने सब रंग निकाले और बड़े बड़े प्यालों में घोले। तमाम बरश धो धा कर एक तरफ़ रखे और आइने के सामने नंगी खड़ी हो गई और अपने जिस्म पर नए नए ख़द-ओ-ख़ाल बनाने शुरू किए। उस की ये कोशिश अपने वजूद को मुकम्मल तौर पर उर्यां करने की थी।

वो अपना सामना हिस्सा ही पेंट कर सकती थी। दिन भर वो इस में मसरूफ़ रही। बिन खाए पिए, आइने के सामने खड़ी अपने बदन पर मुख़्तलिफ़ रंग जमाती और टेढ़े बंगे ख़ुतूत बनाती रही। उस के बरश में एतिमाद था....... आधी रात के क़रीब उस ने दूर हट कर अपना ब-ग़ौर जाएज़ा लेकर इत्मिनान का सांस लिया। इस के बाद उस ने तमाम जे़वरात एक एक करके अपने रंगों से लिथड़े हुए जिस्म पर सजाए और आइने में एक बार फिर ग़ौर से देखा कि एक दम आहट हुई।

उस ने पलट कर देखा.......एक आदमी छुरा हाथ में लिए, मुँह पर ढाटा बांधे खड़ा था जैसे हमला करना चाहता है। मगर जब वो मुड़ी तो हमला आवर के हलक़ से चीख़ बुलंद हुई। छुरा उस के हाथ से गिर पड़ा अफ़रा-तफ़री के आलम में कभी उधर का रुख़ क्या कभी इधर....... आख़िर जो रस्ता मिला, उस में से भाग निकला।

वो उस के पीछे भागी। चीख़ती, पुकारती। “ठहरो....... ठहरो में तुम से कुछ नहीं कहूँगी.......ठहरो!”

मगर चोर ने उस की एक न सुनी और दीवार फांद कर ग़ाएब हो गया। मायूस हो कर वापस आई। दरवाज़े की दहलीज़ के पास चोर का ख़ंजर पड़ा था। उस ने उठा लिया और अन्दर चली गई....... अचानक उस की नज़रें आइने से दो चार हुईं। जहाँ उस का दिल था, वहाँ उस ने मियान नुमा चमड़े के रंग का ख़ौल सा बनाया हुआ था। उस ने उस पर ख़ंजर रख कर देखा। ख़ौल बहुत छोटा था। उस ने ख़ंजर फेंक दिया और बोतल में से शराब के चार पाँच बड़े बड़े घूँट पी कर उधर टहलने लगी.......वो कई बोतलें ख़ाली कर चुकी थी। खाया कुछ भी नहीं था।

देर तक टहलने के बाद वो फिर आइने के सामने आई। उस के गले में इज़ार-बंद नुमा गुलू-बंद था जिस के बड़े बड़े फुंदने थे। ये उस ने बरश से बनाया था।

दफ़अतन उस को ऐसा महसूस हुआ कि ये गुलूबंद तंग होने लगा है। आहिस्ता आहिस्ता वो उस के गले के अंदर धंसता जा रहा है....... वो ख़ामोश खड़ी आइने में आँखें गाड़ी रही जो उसी रफ़्तार से बाहर निकल रही थीं....... थोड़ी देर के बाद उस के चेहरे की तमाम रंगें फूलने लगीं। फिर एक दम से उस ने चीख़ मारी और औंधे मुँह फ़र्श पर गिर पड़ी।

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए