shabd-logo

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022

17 बार देखा गया 17

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से कहा:

“अब्बास कहता है कि घर जा कर अपनी “उन” की ख़िदमत में सलाम ज़रूर कहना।”

“वो तो पागल है......... अच्छा ख़ुदा-हाफ़िज़।” मैंने उन अलीगी दोस्तों से पीछा छुड़ाते हुए ये अलफ़ाज़ जल्दी में अदा किए और शहाब से हाथ मिला कर दरवाज़े बंद करने के बाद अपनी सीट पर बैठ गया।

अलीगढ़ और उस की हसीन इल्मी फ़िज़ा जिस में मैं इस से कुछ अर्सा पहले सांस ले रहा था, अब मुझ से एक तवील अर्सा के लिए दूर हो रही थी। मेरा दिल सख़्त मग़्मूम था। शहाब अगरचे कॉलिज में बहुत तन्ग करता था मगर उस से जुदा होने का मुझे अब एहसास हुआ, जब मैंने दफ़अतन ख़याल किया कि अमृतसर में मुझे इस ऐसा दिलचस्प दोस्त मयस्सर न आ सकेगा। इसी ख़याल के ग़म अफ़्ज़ा असर के तहत मैंने सर को जुंबिश देते हुए और इस अमल से गोया अपने ज़ेहन से इस तारीकी को झटकते हूए जेब में से सिगरेट की डिबिया निकाली और उस में से एक सिगरेट निकाल कर उस को सुलगाया और इत्मिनान से नशिस्त पर ठिकाने से बैठ कर अपने सामान का जायज़ा लिया और फिर अपने साथी की तरफ़ जो सीट के आख़िरी हिस्से पर बैठा था, पीठ कर के सिगरेट से धूएँ के छल्ले बनाने की बेसूद कोशिश में मसरूफ़ हो गया।

मैं बिलकुल ख़ालीउज़्ज़ेहन था। मालूम नहीं क्यों? सिगरेट का धुआँ जिस को मैं अपने मुँह से छल्लों की सूरत में निकालने की कोशिश करता था। हवा के तुंद झोंकों की ताब न ला कर खिड़की के रास्ते किसी थिरकती हुई रक़्क़ासा की तरह तड़प कर बाहर निकल रहा था। मैं बहुत अर्सा तक सिगरेट के इस लर्ज़ां धूएँ को बड़े ग़ौर से देखता रहा......... ये रक़्स की एक तकमील थी।

“रक़्स की तकमील।” ये अल्फ़ाज़ दफ़अतन मेरे दिमाग़ में पैदा हूए और मैं अपने इस अछूते ख़याल पर बहुत मसरूर हुआ।

“क्या मैं पागल हूँ?”

गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर खुले मैदानों में दौड़ रही थी। आहनी पटरियों का बिछा हुआ जाल बहुत पीछे रह गया था। पथरीली रविश के आस पास उगे हूए दरख़्त एक दूसरे का तआक़ुब करते मालूम होते थे। मैं रक़्स की तकमील और इन दरख़्तों की भाग दौड़ का मुशाहिदा कररहा था कि इन हैरान-कुन अल्फ़ाज़ ने मुझे चौंका दिया जो ग़ालिबन मेरे इस हम-सफ़र ने अदा किए थे जो सीट के आख़िरी हिस्से पर कोने में बैठा था। उस ने यक़ीनन ये अजीब सवाल मुझ से ही पूछा था।

“क्या आप मुझ से दरयाफ़्त फ़र्मा रहे हैं?”

“जी हाँ, क्या मैं पागल हूँ?” उस ने एक बार फिर मुझ से दरयाफ़्त किया।

ट्रेन की रवानगी पर जब मैंने शहाब से ये कहा था। “वो तो पागल है। अच्छा ख़ुदा-हाफ़िज़।” तो शायद इस शरीफ़ आदमी ने ये ख़याल कर लिया था कि मैंने उसी को पागल कहा है.... मैं खिलखिला कर हंस पड़ा और निहायत मोअद्दबाना लहजा में कहा:।

“आप को ग़लत-फ़हमी हूई है हज़रत, गाड़ी चलते वक़्त शायद मैंने अपने किसी दोस्त को पागल के नाम से पुकारा था......... वो तो है ही पागल। मैं माफ़ी चाहता हूँ कि आपको ख़्वाह-मख़्वाह तकलीफ़ हूई।”

ये माक़ूल दलील सुन कर मेरा हम-सफ़र जो ग़ालिबन कुछ और कहने के लिए ज़रा आगे सरक रहा था ख़ामोश हो गया। ये देख कर मुझे एक गूना इत्मिनान हुआ कि मुआमला नहीं बढ़ा। इत्तिफ़ाक़ से मेरी तबीयत कुछ इस क़िस्म की वाक़्य हुई है कि उमूमन निकम्मी से निकम्मी बातों पर तैश आ जाया करता है। चूँकि इस से क़ब्ल कई मर्तबा दौरान-ए-सफ़र में मेरा मुसाफ़िरों से झगड़ा हो चुका था। और मैं इस के तल्ख़ नताइज से अच्छी तरह वाक़िफ़ था इस लिए लाज़िमी तौर पर मैं इस मुआमला को इतनी जल्दी बख़ैर-ओ-ख़ूबी अंजाम पाते देख कर बहुत ख़ुश हुआ। चुनांचे मैंने उस मुसाफ़िर से ख़ुश-गवार तअल्लुक़ात पैदा करने के लिए उस से ऐसे ही गुफ़्तुगू शुरू की......... रस्मी गुफ़्तुगू जो आम तौर पर गाड़ियों में मुसाफ़िरों के साथ की जाती है।

“आप कहाँ तशरीफ़ ले जा रहे हैं? ” मैंने उस से दरयाफ़्त किया।

“मैं......... ” ये कहते हुए वो कोने से सरकता हुआ उठ कर मेरे मुक़ाबला वाली सीट पर बैठ गया। “मैं दिल्ली जा रहा हूँ......... आप कहाँ उतरेंगे?”

“मुझे काफ़ी तवील सफ़र करना है......... अमृतसर जा रहा हूँ।”

“अमृतसर......... ”

“जी हाँ।”

“मुझे ये शहर देखने का कई मर्तबा इत्तिफ़ाक़ हुआ है। अच्छी बारौनक जगह है। कपड़े की तिजारत का मर्कज़ है। क्या आप वहां कॉलिज में पढ़ते हैं?”

“जी हाँ।” मैंने झूट बोलते हुए कहा। क्योंकि इसका सवाल मेरे नज़दीक बहुत ग़ैर दिलचस्प था, इस के इलावा मुझे अंदेशा था कि अगर मैंने अपने हम-सफ़र से ये कहा होता कि मैं अलीगढ़ की यूनीवर्सिटी में पढ़ता हूँ तो वो कॉलिज की दिलचस्पियों, उसकी इमारत और उसके ख़ुदा मालूम किन किन हिस्सों और शोबों के मुतअल्लिक़ मुझ पर सवालात की बौछार शुरू कर देता। इस से क़ब्ल मेरे साथ इस क़िस्म का वाक़िया पेश आ चुका था। जब मेरे एक रफ़ीक़-ए-सफ़र ने सवाल पूछे पूछे रात की नींद मुझ पर हराम कर दी थी।

“कौन से कॉलिज में......... मेरे ख़याल में वहां कई कॉलिज हैं।” उस ने मुझ से दरयाफ़्त किया।

मैंने झट से जवाब दिया। “ख़ालिसा कॉलिज में।”

“अच्छा, वही जो एंडरसन ने तामीर कराया है।”

“अंडर सिंह ने, मगर वो सिखों का कॉलिज है हज़रत।” मैंने हैरान होते हुए कहा।

“मुझे मालूम है मिस्टर, ये एंडरसन सिख हो गया था ना......... आप ने ग़ालिबन सिख हिस्ट्री का मुताला नहीं किया।”

“शायद।”

ये कह मैंने गुफ़्तुगू को दिलचस्प न पाते हुए मुँह मोड़ लिया और खिड़की से बाहर की तरफ़ देखना शुरू कर दिया। गाड़ी अब यू पी के वसी मैदानों में दनदनाती हूई चली जा रही थी। लोहे के पहियों की वज़नी झनकार और चोबी शहतीरों की खट खट फ़िज़ा में एक अजीब यक-आहंग शोर बरपा कर रही थी। इस शोर की सदा-ए-बाज़गश्त ने आस पास के दौड़ते हूए खंबों और दरख़्तों से टकरा कर शाम की ख़ुनक हवा में एक इर्तिआश पैदा कर दिया था। मैंने ऐसे ही खिड़की में से अपना बाज़ू बाहर निकाला। मुँह ज़ोर गाड़ी की तेज़ रफ़्तार की वजह से हवा के ज़बरदस्त धक्के ने मेरे बाज़ू को रेला दे कर पीछे दबा दिया......... मैंने ठंडी हवा के इस दबाओ को बहुत प्यारा महसूस किया। चुनांचे में खेल में मसरूफ़ हो गया और अपने हम-सफ़र और उस की गुफ़्तुगू को बिलकुल भूल गया। हवा के दबाओ की दिल-नवाज़ी बहुत मसरूर-कुन थी।

थोड़ी देर के बाद मैं अपने इस खेल से उकता गया। दर-अस्ल बार बार हवा को चीरने से मेरा बाज़ू दुख गया था। अब मैंने मुड़ कर मैदानों की वुसअत का नज़ारा करना शुरू कर दिया। डूबते हुए सूरज की सुर्ख़.... आतिशीं सुर्ख़ किरणें मैदान के गढ़ों में बारिश के जमा शूदा पानियों पर ज़रनिगारी का काम कर रही थीं। ऐसा मालूम होता था कि ख़ाकिस्तरी ज़मीन के सीने पर किसी ने बड़े बड़े आईने आवेज़ां कर दिए हैं। बिजली के तारों और खंबों पर नील कंठ और अबाबीलें फुदक रही थीं। ये मंज़र बहुत सुहाना था।

“क्या मैं पागल हूँ?”

इन अल्फ़ाज़ ने एक बार फ़िर इन रंगों को मुंतशिर कर दिया जो मेरे दिल-ओ-दिमाग़ पर एक निहायत ही प्यारी तस्वीर खींच रहे थे। मैं चौंक पड़ा। मेरे इसी हम-सफ़र ने मुझ से ये सवाल दरयाफ़्त किया था। मैं मुड़ा। वो मेरी तरफ़ मुसतफ़्सिराना निगाहों से देख रहा था। ये ख़याल करते हुए कि शायद मेरे कानों को धोका हुआ है मैंने उस से कहा।

क्या इरशाद फ़रमाया आप ने?”

वो एक लम्हा ख़ामोश रहा और फिर अपने सर को झकटते हुए कहा......... “कुछ भी नहीं, शायद आप न बता सकेंगे!”

अब मैंने ग़ौर से उस की तरफ़ देखा। उस की उम्र ग़ालिबन बीस बाईस बरस के क़रीब होगी। दाढ़ी कमाल सफ़ाई से मूंडी हुई थी। उस के गाल गोश्त से भरे हुए थे, उन की मोटाई में बहुत ख़फ़ीफ़ सा फ़र्क़ था, जो सिर्फ़ मुझ ऐसा बारीक-बीं ही देख सकता है। बाल जिन में से किसी अच्छे और बढ़िया तेल की ख़ुशबू आ रही थी, पीछे की तरफ़ कंघी किए गए थे जिस से उस की पेशानी बहुत कुशादा होगई थी। वो मामूली क़िस्म के कश्मीरे का कोट पहने हुए था। कलफ़ शुदा कालर क़मीज़ के साथ लगा हुआ था मगर टाई मौजूद ना थी......... ये मुझे अच्छी तरह याद है।

मैं अभी कुछ कहने ही वाला था कि वो फिर बोला:

“मैं आप से कुछ दरयाफ़्त करना चाहता हूँ।”

मैं उस के राज़-दाराना लहजा से बहुत मुतहय्यर हुआ। आख़िर वो मुझ से किया दरयाफ़्त करना चाहता है? ये ख़याल करते हुए मैंने झुक कर गोया इस के सवाल का जवाब देने के लिए तैय्यार हो कर कहा। “बसद शौक़......... फ़रमाईए।”

“क्या मैं पागल हूँ।”

मेरी हैरत और भी बढ़ गई। मैं समझ न सका कि जवाब क्या दूं। आप ही फ़रमाईए मैं उस शख़्स को क्या जवाब दे सकता था जो बज़ाहिर निहायत ही होशमंद इंसान मालूम होता था......... बिलकुल मेरी और आपकी तरह।

“आप आप?......... ” मैंने तुतलाते हुए कहा।

“हाँ, हाँ मैं। आप फ़रमाईए ना” उस ने बड़ी संजीदगी से मुझ से दरयाफ़्त किया।

“मगर क्यों? आप बड़े होशमंद इंसान हैं....!”

“आप अपनी राय मुरत्तब करने में जल्दी से काम ना लीजिए, फिर ग़ौर फ़र्मा कर जवाब दीजिए, क्या मैं वाक़ई पागल हूँ।”

इस में ग़ौर करने की बात ही कोई न थी। लेकिन फिर भी मैंने अपने हम-सफ़र के चेहरे की तरफ़ ग़ौर से देखना शुरू किया। दर-अस्ल मैं दो चीज़ें मालूम करना चाहता था। अव्वलन ये कि कहीं वो मुझ से मज़ाक़ तो नहीं कर रहा। सानियन ये कि शायद उस के चेहरे का उतार चढ़ाओ ज़ाहिर कर दे कि वो सचमुच पागल ही है। मैंने अपने एक दोस्त से सुना था कि आम तौर पर पागलों की आँखों में सुर्ख़ डोरे उभरे होते हैं। मगर वो आँखें जो मेरी तरफ़ देख रही थीं, ग़ैर-मामूली तौर पर सफ़ेद थीं। ऐसा मालूम होता था कि वो सफ़ेद चीनी की बनी हुई हैं। मैं कुछ मालूम न कर सका।

“आप को किसी ने बहुत ग़लत तौर पर शक में डाल दिया है।” ये कहते हुए मैंने ख़याल किया कि शायद किसी डाक्टर ने उस को वह्म में डाल दिया है। क्योंकि मुझे अच्छी तरह मालूम था कि आजकल के सस्ते और जाहिल डाक्टर बग़ैर सोचे समझे नब्ज़ पर हाथ रख कर किसी को दीवाना किसी को मदक़ूक़ और किसी को ज़ाफ़-ए-आसाब का मरीज़ ठहरा देते हैं।

“मेरा भी यही ख़याल है......... मगर आप को क़तई तौर पर यक़ीन है कि मैं वाक़ई पागल नहीं हूँ।” उस ने कहा।

क़तई तौर पर......... जिस शख़्स ने आप को इस वह्म में मुब्तला किया है। मेरे ख़याल में वो ख़ुद पागल है।”

“ख़ैर वो तो पागल नहीं, अच्छा भला है।”

“वो कौन बुज़ुर्ग हैं?”

“मेरा अपना बाप।”

“आप का बाप।”

“जी हाँ......... वो कहता है कि मैं पागल हूँ, हालाँकि मैं ख़ुद इस क़िस्म की कोई अलामत नहीं पाता। आज से एक साल क़ब्ल उस की नज़रों में मैं पागल ना था। लेकिन जूंही मेरी शादी हुई मेरे बाप ने ये कहना शुरू कर दिया कि मोहन दीवाना है। चुनांचे उस का ये नतीजा हुआ कि ससुराल वालों ने डर के मारे अपनी लड़की को घर बुलवा लिया। अब वो उस को मेरे हवाले नहीं करते। ये किस क़दर रंज-अफ़्ज़ा बात है कि मुझे अपनी बीवी के साथ दस पंद्रह दिन भी बसर करने मयस्सर नहीं हूए।”

ये कहते हूए उस के चेहरे से मालूम होता था कि वाक़िअतन वो बहुत मग़्मूम है। मैं भी बहुत मुतअस्सिर हुआ। लेकिन मुझे ये मालूम न हो सका कि उस के बाप ने उसे ख़्वाह-मख़्वाह पागल बना कर उस की ज़िंदगी क्यों तल्ख़ कर दी है।

“मगर आप के वालिद साहब ने ये हरकत क्यों की?” मैंने उस की दास्तान में गहरी दिलचस्पी लेते हुए कहा।

“मिस्टर, वो यहूदी है......... पक्का यहूदी। उस को सिर्फ़ अपने तलाई सिक्कों से ग़र्ज़ है और बस। मैं उस के ख़ून का एक हिस्सा हूँ मगर ये चीज़ उस के दिल पर असर नहीं कर सकती है। अगर उस ने मुझे पागल बनाया है तो इस में भी कोई बड़ा राज़ मुज़मिर है। वो इस क़दर नफ़्स परस्त है कि मरने के बाद भी वो ये नहीं चाहता कि उस की जायदाद इस के अपने लड़के के हाथों में चली जाये। दीखईए, मैंने तीन साल हुए बी.ए पास किया है, ये अलाहिदा बात है कि मैं कोई नौकरी हासिल नहीं कर सका हूँ मगर मेरे बाप को ये तो चाहिए कि वो मुझे अच्छा ख़र्च दे।”

“यक़ीनन।” मैंने पुर-ज़ोर ताईद की।

“लेकिन वो मुझे सिर्फ़ पाँच रुपय माहवार देता है......... हक़ीक़त तो ये है कि इस ने मेरे शबाब की तमाम रंगीनियों पर अपनी हवस-परस्तियों की स्याही उलट दी है। मैं आगरा में पड़ा हूँ, मेरी बीवी दिल्ली में है। मेरे इस यहूदी बाप ने मेरे और इस के दरमयान एक ख़लीज हाइल कर दी है। मैं उस से बेहद मोहब्बत करता हूँ। वो ख़ूबसूरत और पढ़ी लिखी है, मगर वो मजबूर है......... हो सकता है कि वो भी मुझे पागल समझती हो। अब मैं इस का फ़ैसला कर देना चाहता हूँ, मैंने अपनी तीन पतलूनें और तीन कोट बेच दिए हैं। अब मैं दिल्ली जा रहा हूँ। देखा जाएगा जो होगा।”

“आप अपनी बीवी के पास जा रहे हैं।” मैंने उस से दरयाफ़्त किया।

“जी हाँ। मैं घर में बग़ैर इजाज़त लिए दाख़िल हो जाऊंगा और वहां से अपनी बीवी को लिए बग़ैर हर्गिज़ हर्गिज़ ना टलूंगा। अगर मैं पागल हूँ, तो हूँ......... मगर मुझे यक़ीन है कि सूशीला (ये कहते हुए ज़रा सा झेंप गया) मेरे साथ चलने को तैय्यार होगी। मैंने इस के लिए नुमाइश में से एक ऊनी सोइटर ख़रीदा है। वो उस को यक़ीनन पसंद करेगी। क्या आप इसे देखना पसंद फ़रमाएंगे?”

“अगर आप को ट्रंक वग़ैरा खोलने की ज़हमत न उठाना पड़े।” मैंने जवाब दिया।

“नहीं साहब, ये तो मैंने क़मीज़ के अंदर ख़ुद पहन रखा है।” ये कह कर वो उठा और कोट उतार दिया। फिर क़मीज़ को पतलून की गिरिफ़्त से आज़ाद कर के उस ने उसे भी उतार दिया.... वो वाक़ई एक रंग बिरंगी फ़ीतों वाला ज़नाना सोइटर पहने हुए था।

“क्या आप को पसंद है?......... ये मैंने इस लिए पहन रखा है कि अगर सूशीला ने इस को लेने से इनकार कर दिया तो मैं इसे पहने ही रहूँगा।”

इस ज़नाना सोइटर में वो किस क़दर अजीब मालूम होता था।

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए