कल भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत और भगवान् विष्णु के दस अवतारों में से तृतीय अवतार वाराह अवतार की जयन्ती का पावन पर्व है | दोनों पर्वों की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ...
हरतालिका तीज के दिन महिलाएँ अपने पति तथा परिवार की मंगल कामना से दिन भर निर्जल व्रत रखकर शिव पार्वती की उपासना करती हैं | इसके विषय में बहुत सी कथाएँ भी प्रचलित हैं | किन्तु इस पर्व के मर्म में पति तथा परिवार की मंगल कामना ही है | साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि यदि कुमारी कन्याएँ इस व्रत के द्वारा शिव पार्वती को प्रसन्न करती हैं तो उन्हें मनोनुकूल पति प्राप्त होता है |
भगवान् विष्णु के वाराह अवतार के विषय में भी अनेक उपाख्यान उपलब्ध होते हैं | वाराह कल्प के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में तीन चरणों में पृथिवी की खोज तथा पृथिवी को निवास के योग्य बनाने का उपक्रम आरम्भ हुआ | उन तीनों ही चरणों में भगवान् विष्णु के तीन अलग अलग अवतार हुए | ये तीनों काल तथा अवतार वाराह नाम से जाने जाते हैं – नील वाराह काल, आदि वाराह काल और श्वेत वाराह काल | मान्यता है कि इस काल में समस्त देवी देवताओं का निवास पृथिवी पर ही था | भगवान् शंकर का कैलाश पर्वत, भगवान् विष्णु का हिन्द महासागर तथा ब्रह्मा का ईरान से लेकर कश्मीर तक सब कुछ इसी पृथिवी पर था | इसी समय अत्यन्त भयानक कभी न रुकने वाली जल प्रलय हुई और सारी धरती उस एकार्णव में समा गई | तब ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर भगवान् विष्णु ने नील वाराह के रूप में प्रकट होकर धरती के कुछ भाग को जल से बाहर निकाला | कुछ पौराणिक आख्यानों के अनुसार नील वाराह ने अपनी पत्नी तथा वाराही सेना के साथ मिलकर तीखे दरातों, फावड़ों और कुल्हाड़ियों आदि के द्वारा बड़े श्रम से धरती को समतल किया | वैदिक श्रुतियों में यज्ञ पुरुष के रूप में वाराह अवतार का वर्ण उपलब्ध होता है और यज्ञ के समस्त अंग जैसे चारों वेद तथा यागों में प्रयुक्त किये जाने वाले समस्त पदार्थ यथा घृत, कुषा, स्त्रुवा, हविष्य, समिधा इत्यादि को उनके शररे का ही अंग माना गया है |
पौराणिक मान्यता है कि दिति के गर्भ से उत्पन्न हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध करने के लिए भगवान् विष्णु ने वाराह के रूप में अवतार लिया था | हिरण्याक्ष ने अपने अहंकार के वशीभूत होकर पृथिवी को जल में डुबा दिया था जिसे जल से बाहर निकालने के लिए किसी बलवान वस्तु की आवश्यकता थी | तब भगवान् विष्णु ने वाराह के रूप में हिरण्याक्ष का वध करने के पश्चात पृथिवी को अपनी सूँड पर उठाकर जल से बाहर निकाल कर पुनः स्थापित किया था | इस अवतार में शिरोभाग वाराह का है और शेष शरीर मनुष्य का जो अपनी सूँड पर पृथिवी को धारण किये हुए है |
वाराह अवतार के विषय में वाराह पुराण, पद्मपुराण, महाभारत आदि पौराणिक ग्रन्थों में उपाख्यान उपलब्ध होते हैं | किन्तु व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो यह घटना इस तथ्य की भी प्रतीक है कि व्यक्ति के भीतर का अहंकार ही उसके गहन तमस में डूबने का कारण बनता है | जब साधना के द्वारा मनुष्य को आत्मतत्व का ज्ञान हो जाता है तो वह अहंकार से मुक्त हो जाता है और उसका उत्थान हो जाता है |
हम सभी स्वस्थ व सुखी रहते हुए आत्मोत्थान की दिशा में अग्रसर रहें, इसी भावना के साथ सभी को एक बार पुनः हरतालिका तीज और वाराह जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ...
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