हिन्दी पञ्चांग
बुधवार, 21 नवम्बर 2018 – नई दिल्ली
विरोधकृत विक्रम सम्वत 2075 / दक्षिणायन
सूर्योदय
: 06:48 पर वृश्चिक में / अनुराधा नक्षत्र
सूर्यास्त
: 17:25 पर
चन्द्र राशि : मेष
चन्द्र नक्षत्र : अश्विनी 18:30 तक, तत्पश्चात भरणी
तिथि : कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी 14:06 तक, तत्पश्चात कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी /
बैकुण्ठ चतुर्दशी का उपवास
करण : तैतिल 14:06 तक,
तत्पश्चात गर 25:34 (अर्द्धरात्र्योत्तर 01:34)
तक,
तत्पश्चात वणिज
योग : व्यातिपत 15:40 तक,
तत्पश्चात वरीयान
राहुकाल : 12:07 से 13:26
यमगंड : 08:11 से 09:30
गुलिका : 10:48 से 12:08
अभिजित मुहूर्त : कोई नहीं
अन्य :
बुध वृश्चिक में वक्री और अस्त 27-21 (अर्द्धरात्र्योत्तर
03:21) पर / गुरु वृश्चिक में अस्त
विशेष : कार्तिक पूर्णिमा से पहले दिन यानी कार्तिक शुक्ल
चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है | इस दिन भगवान विष्णु और
भगवान शंकर दोनों की पूजा अर्चना की जाती है | शिव पुराण के अनुसार इसी दिन गढ़वाल
में स्थित श्रीनगर में कमलेश्वर मन्दिर में भगवान विष्णु भगवान ने शिव की उपासना
की थी | कथा है कि विष्णु भगवान ने 1000 कमल पुष्पों से शिव की आराधना का संकल्प
लिया | शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प छिपा दिया | तब विष्णु ने
सोचा कि उनके नेत्रों की तुलना कमलपुष्प से की जाती है तो क्यों न अपना एक नेत्र
ही शिव को समर्पित कर दिया जाए | जैसे ही विष्णु इस कार्य के लिए उद्यत हुए कि
शंकर भगवान उनके समक्ष प्रकट हो गए और उन्हें अपने आशीर्वादस्वरूप सुदर्शन चक्र
भेंट किया | कुछ लोग काशी का सम्बन्ध इस घटना से मानते हैं और इसी के प्रतीकस्वरूप
बैकुण्ठ चतुर्दशी को काशी विश्वनाथ मन्दिर में महादेव के साथ विष्णु भगवान की
उपासना भी की जाती है |
बैकुण्ठ
चतुर्दशी के विषय में एक कथा और भी आती है कि भगवान् श्री राम ने रावण वध के
उपरान्त ब्रह्म ह्त्या के पाप से मुक्ति प्राप्त करने के लिए इसी दिन भगवान शिव की
आराधना एक सहस्र कमल पुष्पों के साथ की थी |
मान्यताएँ
और कथाएँ जितनी भी हों,
किन्तु इनके माध्यम से इस पर्व के महत्त्व का ज्ञान स्वतः ही हो जाता है |