जीवन की रामकहानी
कितने ही दिन मास वर्ष युग कल्प थक गए कहते कहते
पर जीवन की रामकहानी कहते कहते अभी शेष है ||
हर क्षण देखो घटता जाता साँसों का यह कोष मनुज का
और उधर बढ़ता जाता है वह देखो व्यापार मरण का ||
सागर सरिता सूखे जाते, चाँद सितारे टूटे जाते
पर पथराई आँखों में कुछ बहता पानी अभी शेष है ||
एक ईंट पर खड़ा महल है, तो दूजी पर कड़ी कब्र है
एक बार है लाश जी रही, एक बार मर रहा जीव है ||
एक लहर जो चली कूल से, नाव तलक आ पार खो गया
जन्म मरण की इस द्विविधा में जीत हार तो अभी शेष है ||
एक दिये से सुबह जल उठी, एक दिये से रात ढल गई
एक हवा से चमन खिल उठा, एक हवा से कली बिखर गई ||
किसी डाल पर पुष्प खिल गए, कोई सुमन संग धूल बन गई
संहारों और निर्माणों में जीवन का सच अभी शेष है ||
आज, आज का वर्तमान, पर कल का है अतीत कहलाता
और भविष्यत, सिर्फ़ भूत का मूक गीत ही तो है गाता ||
जीवन की चुटकी भर हलचल में हर एक पल मरण घुला है
पर हर बुझी हुई धड़कन में पीर पुरानी अभी शेष है ||