संस्कारों की बात कर रहे हैं तो अनेकानेक पुनर्जन्मों की मान्यता को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता है | अत्यन्त आदिम युग में – जिसे हम Primitive Period कहते हैं – संस्कारों का कोई मूल्य सम्भवतः नहीं था | सभ्यता के विकास के साथ ही परिवार तथा समाज को सुचारू रूप से गतिमान रखने के लिए संस्कारों का भी महत्त्व समझ में आने लगा | और इसके प्रमाण वैदिक तथा वैदकोत्तर काल में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं | वैदिक और उत्तर वैदिक काल में ही पुनर्जन्म की मान्यता को भी स्वीकार किया गया है | योग दर्शन की भी मान्यता है कि यद्यपि अविद्या आदि क्लेश जड़ होते हैं किन्तु फिर भी जन्म, जीवन और भोग उन्हीं का परिणाम होते हैं | सांख्य के अनुसार “अथ त्रिविध दुःखात्यन्त निवृति ख्यन्त पुरुषार्थः |” पुनर्जन्म के कारण ही आत्मा का सम्बन्ध शरीर, इन्द्रियों तथा विषयों के साथ बना रहता है | न्याय दर्शन के अनुसार जन्म, जीवन और मरण जीवात्मा की अवस्थाएँ हैं | कहा भी गया है “काममयं एवायं पुरुषः’’ अर्थात जीवात्मा की शरीर छोड़ते समय जैसी कामना होती है वैसा ही उसका प्रयत्न होता है और वर्तमान जन्म में वैसा ही कर्म उसके द्वारा किया जाता है | पिछले कर्मों के अनुरूप वह उसे भोगती है तथा नवीन कर्म के परिणाम को भोगने के लिए वह पुनः जन्म लेती है | और इस प्रकार यह क्रम निरन्तर चलता ही रहता है |
यजुर्वेद के अनुसार : “पुनर्मनः पुनरायुर्मSआगन् पुनः प्राणः पुनरात्मामSआगन् पुनश्चक्षुः पुनः श्रोत्रं मेSआगन्। वैश्वानरोSअदब्धस्तनूपाSअग्निर्नः पातु दुरितादवद्यात् | (यजुर्वेद 4/15) अर्थात, “हे ईश्वर जितनी बार भी भी हमारा जन्म हो हर बार हमें शुद्ध मन, पूर्ण आयु, आरोग्य, प्राण, कुशल आत्मा, उत्तम चक्षु तथा भोग प्राप्त हो और विश्व में व्याप्त ईश्वर (वैश्वानर) प्रत्येक जन्म में हमारे शरीरों का पालन करे | वह अग्नि स्वरूप हमें समस्त निन्दित कर्मों से बचाए | इसी प्रकार के अनेक मन्त्र वेदों उपनिषदों में यत्र तत्र उपलब्ध हो जाते हैं |
वास्तव में तो समस्त चराचर जगत, समस्त प्रकृति एक परमात्मा (Supreme Soul) के ही अत्यन्त सूक्ष्म अणु (Tiny Particles) हैं, जो जैसे संसर्ग में आते हैं वैसा रूप धर्म गुण अपना लेते हैं | और क्योंकि आत्मा कभी मरता नहीं, अजर अमर है, तो भला उसके ये Particles किस प्रकार समाप्त हो सकते हैं ?...
न जायते म्रियते वा कदाचिद, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोSयं पुराणों, न हन्यते हन्यमाने शरीरे ||
और जब ये समाप्त नहीं हो सकते तो जाएँगे कहाँ ? निश्चित रूप से किसी न किसी रूप का आश्रय लेकर वातावरण में – इस असीम ब्रह्माण्ड में - ही व्याप्त रहेंगे | यही तो वास्तव में पुनर्जन्म है |
क्रमशः...