“कम्मो...
अरी क्या हुआ...? कुछ बोल तो सही... कम्मो... देख हमारे
पिरान निकले जा रहे हैं... बोल कुछ... का कहत रहे साम...? महेस
कब लौं आ जावेगा...? कुछ बता ना...” कम्मो का हाल देख घुटनों
के दर्द की मारी बूढ़ी सास ने पास में रखा चश्मा चढ़ाया, लट्ठी
उठाई और चारपाई से उतरकर लट्ठी टेकती कम्मो तक पहुँच उसे झकझोरने लगी | लेकिन कम्मो तो जड़ बनी थी |
बहू का ये हाल देख सास के सब्र का बाँध टूटता जा रहा था और उसने और अधिक
जोर से बहू को झकझोरना शुरू कर दिया था | फिर बहू के हाथ से मोबाइल
लेकर देखा - बत्ती जल रही थी - मतलब मोबाइल ऑन था । कान के पास लगाया और “हेलो
साम... साम...” लेकिन बत्ती अचानक बुझ गई थी - बूढ़ी की आवाज़ सुन जैसे कॉल काट दी
थी |
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