वटवृक्ष की उपासना का पर्व वट सावित्री
अमावस्या
आज वट सावित्री अमावस्या का व्रत सौभाग्यवती महिलाओं ने किया है |
सर्वप्रथम सभी को वट सावित्री अमावस्या की हार्दिक शुभकामनाएँ...
वट सावित्री अमावस्या का व्रत सौभाग्य को देने वाला
और सन्तान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है | भारतीय संस्कृति
में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है | इस व्रत की तिथि को लेकर अनेक
मत हैं | जैसे स्कन्द पुराण और भविष्योत्तर पुराण में ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष
की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है | किन्तु कुछ पुराणों में ज्येष्ठ माह की
अमावस्या को यह व्रत किया जाता है | अधिकाँश में अमावस्या वाला मत ही प्रचार में
है | वट सावित्री व्रत चाहे अमावस्या को किया जाए या पूर्णिमा को – उद्देश्य एक ही
है – अखण्ड सौभाग्य की कामना |
वट सावित्री व्रत में 'वट' वृक्ष का विशिष्ट
महत्व है | जिस प्रकार हिन्दू मान्यता में पीपल के वृक्ष का महत्त्व माना जाता है उसी प्रकार वट यानी बरगद के वृक्ष का भी
महत्त्व माना जाता है | वटवृक्ष केवल अपनी विशालता और घनत्व के कारण ही प्रसिद्ध
नहीं है | मान्यता है कि इसके अग्रभाग में भगवान शंकर, मध्य
में विष्णु तथा मूल में ब्रह्मा का वास होता है | इस प्रकार सृष्टि की रचना, पालन और संहार तीनों का क्रम इस वृक्ष में विद्यमान है | साथ ही प्राचीन
काल में जब न तो मार्ग ही इतने अच्छे थे और न ही आवागमन के साधन थे – कहीं आने
जाने के लिए बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी या खच्चर आदि ही प्रयोग में
लाए जाते थे | या फिर पैदल यात्रा की जाती थी | इस स्थिति में ज्येष्ठ की तपती
दोपहरी में वटवृक्ष की घनी छाया में पल भर विश्राम करके जब पथिक आगे अपने गन्तव्य
की ओर प्रस्थान करेगा तब भला क्यों न वह उस वृक्ष को धन्यवाद देगा ? सम्भवतः
इन्हीं समस्त कारणों से वटवृक्ष की पूजा का विधान ज्येष्ठ मास में किया गया होगा |
इसके अतिरिक्त इस वृक्ष के सभी अंग किसी न किसी रूप में मनुष्य के लिए
अत्यन्त उपयोगी होते हैं | कफ, पित्त, ज्वर, मूर्च्छा
इत्यादि में वैद्य लोग इस वृक्ष की छाल, पत्तों इत्यादि का
उपयोग किया करते थे | अर्थात इसका औषधि के रूप में भी महत्त्व है | दार्शनिक
दृष्टि से यदि देखें तो वटवृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी
स्वीकार किया जाता है | ज्ञान तथा निर्वाण का प्रतीक भी वटवृक्ष को माना जाता है |
सर्व विदित है कि भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था |
वटवृक्ष की इन्हीं समस्त विशेषताओं के कारण सम्भवतः इस वृक्ष की सुरक्षा की
बात मनीषियों के मन में आई होगी और इस वृक्ष की पूजा अर्चना आरम्भ हुई होगी | मनुष्य
स्वभाव से धर्मभीरु है, और जब किसी कार्य को धर्म के साथ जोड़ दिया जाता
है तो उस कार्य को साधारण जन पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ सम्पन्न करते हैं |
इसीलिए वटवृक्ष की पूजा अर्चना को भी सत्यवान और सावित्री की कथा के साथ जोड़ा गया
| भारत में तो वैसे भी वृक्षों तथा पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वृक्षों की पूजा
अर्चना का विधान अनादि काल से रहा है | वृक्षों के बीज बोने या पौधा आरोपित करने
से लेकर उनके पूरे जीवनकाल में उसी प्रकार संस्कार किये जाते थे जिस प्रकार किसी
बच्चे के जन्म से लेकर पूरा जीवन किसी व्यक्ति के संस्कार किये जाते हैं | जिस
वृक्ष को व्यक्ति बच्चे के सामान पाल पोस कर बड़ा करता है,
परिवार के मुखिया के समान जिसके समक्ष श्रद्धानत रहता है,
देवताओं के समान जिसकी उपासना करता है उस वृक्ष को किसी प्रकार की हानि पहुँचाने
का विचार किसके मन में आएगा ? इसीलिए वटवृक्ष जैसे विशाल और छायादार तथा मनुष्य के
जीवन के लिए उपयोगी वृक्ष की उपासना को भी सत्यवान सावित्री की अमर कथा के साथ
सम्बद्ध करना वास्तव में समझने योग्य बात है |
कारण चाहें जो भी हों, वट सावित्री अमावस्या जैसे पर्व हमें प्रकृति
का सम्मान करना सिखाते हैं तथा पर्यावरण की सुरक्षा की दिशा में इस प्रकार के
पर्वों का बहुत बड़ा योगदान होता है...
एक बार पुनः सभी को वट सावित्री अमावस्या की हार्दिक शुभकामनाएँ... इस आशा
और विश्वास के साथ कि हम सब संकल्प लें कि केवल आज के ही दिन नहीं, हम सदा पर्यावरण
की सुरक्षा की अपनी संस्कृति को याद रखते हुए इस ओर निरन्तर प्रयासरत रहेंगे...