दलालों को दलाली दिखी
झूठों ने मांगा सबूत ।
उनकी माँ शर्मिंदा होगी ,
कैसे जने कपूत ।
इस युग के जयचंद बने
ये दुश्मन की चालों के मोहरे ।
जख्म दे गए जनमानस को गहरे ।
8 अक्टूबर 2016
दलालों को दलाली दिखी
झूठों ने मांगा सबूत ।
उनकी माँ शर्मिंदा होगी ,
कैसे जने कपूत ।
इस युग के जयचंद बने
ये दुश्मन की चालों के मोहरे ।
जख्म दे गए जनमानस को गहरे ।
21 फ़ॉलोअर्स
विज्ञानं परास्नातक ,भारतीय राजस्व सेवा से सेवा निवृत ,कविता कहानी पढ़ने लिखने का शौक ,कुछ ;प्रकाशित पुस्तकें -संवाद कविता संग्रह , मेरी पाँच कहानियाँ , द गोल्ड सिंडीकेट (उपन्यास ), लुटेरों का टीला चंबल (लघु उपन्यास )।;D