हम अक्सर दूसरों को उपदेश देते हैं कि हमें अपने अहंकार को नष्ट
करना चाहिए, हमें अपने क्रोध पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए | सही बात है, ऐसा होना चाहिए यदि जीवन में सुख और शान्ति
की अभिलाषा है | लेकिन हम इन आदर्शों को स्वयं के जीवन में
कितना उतार पाते हैं सोचने वाली बात यह है | देखा जाए तो
कर्मशील रहने के लिए अहं यानी मैं का भाव तथा अन्याय का विरोध करने के लिए क्रोध
का भाव आवश्यक है, किन्तु मनुष्य को इनके वश में नहीं हो
जाना चाहिए... कुछ इसी प्रकार के उलझे सुलझे से भावों के साथ प्रस्तुत है बचपन में
सुनी एक कहानी... क्रोध और अहंकार... सुनने के लिए कृपया वीडियो देखें...
कात्यायनी...