पितृविसर्जनी अमावस्या
आज भाद्रपद अमावस्या है – पितृपक्ष की अमावस्या –आज प्रातः 11:32 के लगभग अमावस्या तिथि का आगमन हुआ था और कल प्रातः 09:16 तक अमावस्या तिथि रहेगी - पन्द्रह दिवसीय पितृपक्ष के उत्सव का अन्तिम श्राद्ध | “उत्सव” इसलिए क्योंकि ये पन्द्रह दिन हम सभी पूरी श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं – उनकी पसन्द के भोजन बनाकर ब्रह्मभोज कराते हैं और स्वयं भी प्रसाद रूप में ग्रहण कराते हैं – और अन्तिम दिन उन्हें पुनः आने का निमन्त्रण देकर विदा करके माँ भगवती को आमन्त्रित करते हैं | आज ही के दिन उन पूर्वजों के लिए भी तर्पण किया जाता है जिनके देहावसान की तिथि न ज्ञात हो या तिथि में कोई सन्देह हो या जिनका श्राद्ध करना भूल गए हों | साथ ही उन आत्माओं की शान्ति के लिए भी तर्पण किया जाता है जिनके साथ हमारा कभी कोई सम्बन्ध या कोई परिचय ही नहीं रहा – अर्थात् अनजान लोगों की भी आत्मा को शान्ति प्राप्त हो - ऐसी उदात्त विचारधारा हिन्दू और भारतीय संस्कृति की ही देन है |
गीता में कहा गया है “श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रिय:, ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति | अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति, नायंलोकोsस्ति न पारो न सुखं संशयात्मनः ||” (4/39,40) – अर्थात आरम्भ में तो दूसरों के अनुभव से श्रद्धा प्राप्त करके मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है, परन्तु जब वह जितेन्द्रिय होकर उस ज्ञान को आचरण में लाने में तत्पर हो जाता है तो उसे श्रद्धाजन्य शान्ति से भी बढ़कर साक्षात्कारजन्य शान्ति का अनुभव होता है | किन्तु दूसरी ओर श्रद्धा रहित और संशय से युक्त पुरुष नाश को प्राप्त होता है | उसके लिये न इस लोक में सुख होता है और न परलोक में |
इस प्रकार श्रद्धावान होना चारित्रिक उत्थान का, ज्ञान प्राप्ति का तथा एक सुदृढ़ नींव वाले पारिवारिक और सामाजिक ढाँचे का एक प्रमुख सोपान है | और जिस राष्ट्र के परिवार तथा समाज की नींव सुदृढ़ होगी उस राष्ट्र का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता |
ॐ यान्तु पितृगणाः सर्वे, यतः स्थानादुपागताः |
सर्वे ते हृष्टमनसः, सवार्न् कामान् ददन्तु मे ||
ये लोकाः दानशीलानां, ये लोकाः पुण्यकर्मणां |
सम्पूर्णान् सवर्भोगैस्तु, तान् व्रजध्वं सुपुष्कलान ||
इहास्माकं शिवं शान्तिः, आयुरारोगयसम्पदः |
वृद्धिः सन्तानवगर्स्य, जायतामुत्तरोत्तरा||
आज महालया के अवसर पर - गायत्री मन्त्र के साथ इन मन्त्रों का इस भावना के साथ कि हमारे निमन्त्रण पर हमारे पूर्वज जिस भी लोक से पधारे थे - हमारे स्वागत सत्कार से प्रसन्न होने के उपरान्त अब अपने उन्हीं लोकों को वापस जाएँ और सदा हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रहें – श्रद्धापूर्वक जाप करते हुए हम सभी अपने पूर्वजों को विदा करें और माँ भगवती को श्रद्धा भक्ति पूर्वक आमन्त्रित करते हुए देवी के आगमन के उत्सव का आरम्भ करें...
किन्तु एक बात का ध्यान अवश्य रखें... यदि हम कन्या का – महिला का -सम्मान नहीं कर सकते, कन्याओं की अथवा कन्या भ्रूण की हत्या में किसी भी प्रकार से सहभागी बनते हैं... तो हमें देवी की उपासना का अथवा कन्या पूजन का भी कोई अधिकार नहीं है... क्योंकि हम केवल दिखावा मात्र करते हैं... ऐसा कैसे सम्भव है कि एक ओर तो हम साक्षात त्रिदेवी माता लक्ष्मी-दुर्गा-सरस्वती की प्रतीक कन्याओं को स्वयं पर बोझ समझकर कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित कर्म के साक्षी बनें और दूसरी ओर देवी की उपासना और कन्या पूजन भी करें...? माँ भगवती की कृपादृष्टि चाहिए तो पहले हमें कन्याओं को समाज का आवश्यक अंग समझते हुए उनके प्रति सम्मान की और स्नेह की भावना अपने मन में दृढ़ करनी होगी... तभी हमारे पितृगण भी हम पर प्रसन्न रहेंगे और तभी हमारे द्वरा की गई देवी की उपासना और कन्या पूजन सार्थक होगा...
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