ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्तीयमामृतात् ||
प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष
की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के व्रत का पालन किया जाता है, जिसे शिव पार्वती के विवाह का अवसर माना जाता है – अर्थात मंगल के साथ
शक्ति का मिलन | कुछ पौराणिक मान्यताएँ इस प्रकार की भी हैं
कि इसी दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग से सृष्टि का आरम्भ हुआ था | जो भी मान्यताएँ हों, महाशिवरात्रि का पर्व समस्त
हिन्दू समाज में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | इसी दिन ऋषि
बोधोत्सव भी है, जिस दिन आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी
दयानन्द को सच्चे शिवभक्त का ज्ञान प्राप्त हुआ था और उनके हृदय से उदगार फूटे थे
कि सच्चा शिव किसी मन्दिर या स्थान विशेष में विराजमान मूर्ति में निवास नहीं करता,
अपितु वह इस सृष्टि के प्राणिमात्र में विराजमान है, और इसलिए प्राणिमात्र की सेवा ही सच्ची ईश्वरभक्ति है |
इस वर्ष शुक्रवार 21 फरवरी को सायं पाँच बजकर बाईस मिनट के लगभग विष्टि (भद्रा) करण और वरीयान
योग में चतुर्दशी तिथि का आगमन हो रहा है जो बाईस फरवरी को रात्रि सात बजकर तीन
मिनट तक रहेगी और उसके बाद अमावस्या तिथि आरम्भ हो जाएगी | अतः निशीथ काल की पूजा
इसी दिन मध्य रात्रि में होगी, क्योंकि रात्रि का मध्य भाग निशीथ काल कहलाता है –
अर्थात 21 फरवरी को मध्यरात्रि में बारह बजकर दस मिनट से एक
बजे तक निशीथ काल का अभिषेक होगा | जिन लोगों को रात्रि में अभिषेक नहीं करना है
और दिन में ही व्रत रखकर रात्रि में उसका पारायण करना चाहते हैं वे लोग भी इसी दिन
व्रत रख सकते हैं | लेकिन जो लोग दिन में कुछ ही देर के लिए व्रत रखना चाहते हैं उन्हें
22 फरवरी को दिन में व्रत रखकर उसी दिन अपराह्न तीन बजकर
पच्चीस मिनट तक व्रत का पारायण कर देना चाहिए |
भगवान शिव की पूजा अर्चना जहाँ होगी
वहाँ आनन्द और आशीर्वाद की वर्षा तो निश्चित रूप से होगी ही | शिव को तो कहा ही
“औघड़दानी” जाता है | शिवरात्रि के पर्व के साथ बहुत सी कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं और
उन सभी कथाओं में कुछ न कुछ प्रेरणादायक उपदेश भी निहित हैं | लेकिन हमारे विचार
से :
जन जन को शिव का रूप और कण
कण को शंकर समझेंगे |
तो “शं करोतीति शंकरः” खुद
ही सार्थक हो जाएगा ||
अर्थात - जो शं यानी शान्ति प्रदान
करे वह शंकर – किन्तु शंकर भी तभी जन जन को शान्ति और कल्याण प्रदान करेंगे जब हम
प्रकृति के कण कण में – प्रत्येक जन मानस में – शंकर का अनुभव करेंगे और न ही
प्रकृति को न ही प्रकृति के मध्य निवास कर रहे किसी भी प्राणी को किसी प्रकार की
हानि न पहुँचाने का संकल्प लेंगे – तभी वास्तव में शिवाराधन सार्थक माना जाएगा और तभी
हमें अनुभव होगा कि हमारा रोम रोम प्रसन्नता से प्रफुल्लित होकर ताण्डव कर रहा है
जो कि समस्त प्रकार की दुर्भावनाओं से मोक्ष तथा कल्याण का – शान्ति का प्रतीक
होगा | साथ ही एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य,
शिवरात्रि अमावस्या के साथ आती है – यानी चन्द्रमा की नव प्रस्फुटित शीतल किरणों
को आगे करके आती है – जो एक प्रकार से अन्धकार अर्थात सभी प्रकार के अज्ञान और
कुरीतियों तथा दुर्भावनाओं पर प्रकाश अर्थात ज्ञान और सद्भावनाओं की विजय का भी
प्रतीक है |
हम सभी प्रकृति के कण कण
में शंकर का वास मानकर सभी के प्रति सद्भावना रखें तथा समाज में व्याप्त अनेक
प्रकार की कुरीतियों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करें... इसी कामना के साथ सभी
को महाशिवरात्रि पर्व की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ... भगवान शंकर सभी के जीवन में
शान्ति और कल्याण की पावन गंगा प्रवाहित करें...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2020/02/19/mahashivaraatri-parva/