मैं आदिहीन, मैं अन्त हीन, मैं जन्म मरण से
रहित सदा |
मुझमें
ना बन्धन माया का, मैं तो हूँ शाश्वत सत्य सदा ||
जिस
दिवस मृत्यु के घर में यह आत्मा थक कर सो जाएगी
तन लपटों का भोजन होगा, बन राख़ धरा पर बिखरेगा |
उस दिन तन के पिंजरे को तज स्वच्छन्द विचरने जाऊँगी
मेरी आत्मा मानव स्वरूप, फिर भी मैं शाश्वत सत्य सदा ||
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https://youtu.be/yvNZ0czaO1E