मानव सेवा ही वास्तविक माधव सेवा
आज किन्हीं मित्र ने प्रश्न किया कि मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की
जाती है | तो सबसे पहले तो इस शब्द में ही इसका उत्तर निहित है – प्राणों की
प्रतिष्ठा – प्राण फूँकना | कोई भी मूर्ति यदि किसी मन्दिर में रखी जाती है तो उस
समय उसकी विधिवत पूजा की जाती है - जो प्राण प्रतिष्ठा कहलाती है | प्राण
प्रतिष्ठा यानी किसी पत्थर में भी प्राण डाल देना - पत्थर की मूर्ति को भी जीवन्त
बना देना ताकि वह मनुष्यों के द्वारा की गई प्रार्थनाओं को स्वीकार कर सके और उनकी
सम्वेदनाओं और भावों को अनुभव कर सके | अन्यथा तो पत्थर तो
पत्थर ही होता है | लेकिन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के
साथ ही कुछ नियमों का भी पालन करना होता है | मन्दिर में गर्भ गृह - यानी जहाँ
मूर्ति स्थापित है और उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई है - उसके ऊपर कोई भवन या
कमरा आदि नहीं होना चाहिए | इसीलिए आपने देखा होगा गर्भ गृह
के ऊपर गुम्बद बना होता है ताकि उस पर कोई चल न सके | क्योंकि
प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा जिन्हें स्थापित किया गया है वो हमारे लिए पूज्य हो गए
और इस स्थिति में उनके सर पर तो नहीं चढ़ सकता | इसी बात को ध्यान में रखते हुए घर
के मन्दिर में भी यदि प्रतिमा स्थापित की जा रही है प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा तो
उसके ऊपर भी कुछ नहीं बनाया जाना चाहिए और वह स्थान टॉयलेट वग़ैरा से दूर होना
चाहिए | यों, घर में प्राण प्रतिष्ठा
किये बिना मूर्ति कहीं भी रखी जा सकती है और पूजा की जा सकती है...
देखा जाए तो प्राण-प्रतिष्ठा की यह परम्परा हमारी भारतीय दर्शन की उस महान
सांस्कृतिक मान्यता का अनुमोदन करती है कि पूजा मूर्ति की नहीं की जाती - दिव्य
सत्ता की की जाती है – महती चेतना की की जाती है | साथ ही ये भी कि भारतीय
दर्शन जड़ से जड़तर वस्तु में भी प्राण शक्ति - प्राण ऊर्जा - का अनुभव करता है | इसीलिए तो पेड़ पौधों को भी पूजा जाता है | प्राचीन काल में वृक्षारोपण
करते समय और उस पर एक एक पत्ती फूल फल आते समय उसी तरह संस्कार किये जाते थे जैसे
गर्भाधान से लेकर जीवन भर मनुष्यों के संस्कार किये जाते हैं | और ऐसा इसीलिए किया जाता था कि जिन वृक्षों को आरोपित करने से लेकर हर पग
पर अपनी सन्तान के समान उनके साथ व्यवहार किया है उन्हें अकारण ही कोई कष्ट नहीं
पहुँचाया जा सकता | यही बात मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के
सन्दर्भ में भी समझनी चाहिए | जिन प्रस्तर प्रतिमाओं को
पूर्ण विधि विधान के साथ प्रतिष्ठित किया जाएगा उनके प्रति वास्तव में व्यक्ति के मन
में आस्था उत्पन्न होगी, और आस्था जब विश्वास में परिणत हो
जाएगी तो निश्चित रूप से व्यक्ति की संकल्प शक्ति इतनी दृढ़ होती जाएगी कि उसकी
सकारात्मकता में वृद्धि के साथ ही उसके समस्त कार्य सम्पन्न होते जाएँगे |
वो कहते हैं न - मानो तो पत्थर में भी भगवान हैं... लेकिन प्रस्तर प्रतिमाओं में प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही हमें मानव सेवा को विस्मृत नहीं कर देना चाहिए... वास्तविक अर्थों में तो मानव सेवा ही सच्ची माधव सेवा और मनुष्यता का सम्मान ही वास्तविक अर्थों में ईश्वर की पूजा अर्चना है...