शनि का मकर में गोचर
माघ मास की अमावस्या को यानी शुक्रवार 24 जनवरी 2020 को दिन में नौ बजकर अट्ठावन मिनट के लगभग अनुशासन और न्याय का कारक माना
जाने वाला ग्रह शनि तीन वर्षों से भी कुछ अधिक समय गुरु की धनु राशि में व्यतीत
करके चतुष्पद करण और वज्र योग में उत्तराषाढ़ नक्षत्र पर रहते हुए ही अपनी स्वयं की
राशि मकर में प्रविष्ट हो जाएगा | यहाँ विचरण करते हुए शनि 22 जनवरी 2021 को श्रवण नक्षत्र तथा 18 फरवरी 2022 को
धनिष्ठा नक्षत्रों पर भ्रमण करते हुए अन्त में 17
जनवरी 2023 को
सायं छह बजकर चार मिनट के लगभग अपनी स्वयं की दूसरी राशि कुम्भ – जो शनि की मूल
त्रिकोण राशि भी है – में प्रस्थान कर जाएगा | उत्तराषाढ़ नक्षत्र के स्वामी सूर्य,
श्रवण नक्षत्र के स्वामी चन्द्र तथा धनिष्ठा के अधिपति मंगल इन तीनों के साथ शनि
की शत्रुता है | इस बीच ग्यारह मई 2020 से 29 सितम्बर
2020 तक शनि वक्री
भी रहेगा | सामान्यतः शनि के वक्री होने पर
व्यापार में मन्दी, राजनीतिक दलों में
मतभेद, जन साधारण में अशान्ति तथा प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़
और आँधी तूफ़ान आदि की सम्भावनाएँ अधिक रहती हैं | 7 जनवरी 2021
से दस फरवरी 2021 तक
शनि अस्त भी रहेगा |
शनि के राशि परिवर्तन के साथ ही कुछ राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैया
का प्रभाव शुरू हो जाता है तो कुछ को इन सब चीजों से राहत मिल जाती है | मकर राशि में भ्रमण करते हुए तीन राशियों पर शनि की साढ़ेसाती चलेगी – धनु
राशि के जातकों के लिए साढ़ेसाती का अन्तिम चरण होगा, मकर राशि के लिए साढ़ेसाती का दूसरा चरण होगा तथा कुम्भ राशि के जातकों के
लिए सात वर्ष की साढ़ेसाती का आरम्भ होगा | साथ ही मिथुन और तुला राशियों के लिए
शनि की ढैया भी आरम्भ हो जाएगी |
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि को कर्म और सेवा का
कारक माना जाता है | यही कारण है कि शनि
के वक्री अथवा मार्गी होने का प्रभाव व्यक्ति के कर्मक्षेत्र पर भी पड़ता है | शनि को अनुशासनकर्ता भी माना जाता है और मकर राशि राशिचक्र की दशम राशि
है | दशम भाव कर्म का भाव माना जाता है | इस प्रकार शनि का मकर राशि में गोचर इस सत्य का भी संकेत कहा जा सकता है
कि आशावादी होना अच्छा है, किन्तु आवश्यकता से अधिक आशावादी
होकर निष्कर्मण्य हो बैठ रहना मूर्खता ही कहा जाएगा | मकर
राशि में शनि का गोचर इस बात का संकेत है कि यदि हमने अच्छी तरह नींव मज़बूत करके
भविष्य के लिए योजनाएँ तैयार करके उन पर कार्य आरम्भ कर दिया और लक्ष्य के प्रति
एकाग्रचित्त रहे तो हमें लक्ष्य प्राप्ति से कोई रोक नहीं सकता |
मकर राशि पर भ्रमण करते हुए शनि की तीसरी दृष्टि
मीन पर, सप्तम दृष्टि कर्क पर तथा दशम दृष्टि तुला पर रहेगी |
इनमें से मीन राशि के लिए शनि एकादशेश और द्वादशेश होता है तथा मकर राशि से मीन
राशि तीसरे भाव में आती है | इसी प्रकार कर्क के लिए शनि सप्तमेश और अष्टमेश होता
है तथा कर्क राशि मकर राशि के लिए सप्तम भाव बन जाती है | तुला राशि के लिए शनि
चतुर्थेश और पंचमेश होकर योगकारक हो जाता हैं तथा मकर राशि के लिए तुला राशि दशम
भाव बन जाती है |
इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अगले लेख में जानने का प्रयास
करेंगे शनि के मकर राशि में गोचर के समस्त बारह राशियों के जातकों पर क्या प्रभाव
सम्भव हैं...
आगे मेष राशि पर शनि
के मकर में गोचर के सम्भावित प्रभावों पर बात करेंगे... किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी
कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता
अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक
प्रश्न है तो “शं करोति शनैश्चरतीति च शनि:”
अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह
शनि... अतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की या भयभीत
होने की आवश्यकता नहीं है... अपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो
कल्याण ही होगा...