मानवता है
चिन्तातुर बनी बैठी यहाँ
आज जीवन से सरल है मृत्यु बन बैठी यहाँ
और मानवता है चिन्तातुर बनी बैठी यहाँ ||
भय के अनगिन बाज उसके पास हैं मंडरा रहे
और दुःख के व्याघ्र उसके पास गर्जन कर रहे ||
इनसे बचने को नहीं कोई राह मिलती है यहाँ |
और मानवता है चिन्तातुर बनी बैठी यहाँ ||
श्वास
और प्रश्वास पर है आज पहरा कष्ट का
ईश
दे शक्ति हमें, हो
पार बेड़ा मनुज का
आज
मुरझाए हैं सारे सुमन आशा के यहाँ
और कातर भाव सबही के नयन में है यहाँ ||
क्या
लिखें, कैसे लिखें, किस पर लिखें, मन व्यथित है
पास
रहकर भी है दूरी, और मन अब थकित है
पर
न टूटे प्रेम और सद्भाव की डोरी यहाँ
साथ
देंगे एक दूजे का, यही लें प्रण यहाँ ||
है
हमें विश्वास,
दुःख के मेघ भी छँट जाएँगे
पुष्प
सुख के हर भवन में एक दिन खिल जाएँगे
बस
ज़रा सी सावधानी है हमें रखनी यहाँ
आज
संभले, तो विजय निश्चित मनुज की है यहाँ
||
हम सब कोविड
में बताए गए नियमों का पालन करते रहें... घबराएँ नहीं... आशावान रहें... निश्चित
रूप से हर आने वाली भोर में बादलों के मध्य से उदित होते सूर्य की लालिमा सुख का
संदेसा लेकर आएगी... कोरोना हारेगा और मनुष्यता विजयी होगी... कात्यायनी...