मन भी बड़ी अजीब सी चीज़ है न ? कभी उदासी में भी मुस्काता है, और कभी आनन्द के आवेग में भी आँख भर आती है | और तब अनायास ही माँ बाबा की स्मृतियाँ और गहन होती जाती हैं | ऐसे ही कुछ पलों में लिखी गईं कुछ पंक्तियाँ...
मुझको हैं सम्बल दे जातीं
मन में छाता जब अँधियारा, या खुशियों की घटा उमड़ती |
तब मीठी मुस्कानों की वो याद सदा मुझको बहलाती ।।
उन गहरी भूरी आँखों में था एक ऐसा गहन समन्दर,
प्यार भरी जिसकी लहरों से हर पल मन पुलकित होता था ।
माना आज नहीं तुम मेरे साथ, मगर फिर भी जाने क्यों,
उन लहरों के स्नेहिल स्पर्शों की याद मुझे हुलसाती ।।
आज आत्मविश्वास जो मुझको आगे सदा बढ़ाता रहता,
तुमने ही तो दिया मुझे, जो साहस मुझको देता रहता ।
उसी तुम्हारे नेह प्यार की ही तो प्रतिध्वनि हूँ मैं बाबा,
नेहभरी वो वाणी अब भी साहस से मुझको भर जाती ।।
जग की भरी भीड़ में भी जो कभी अकेली मैं पड़ जाती,
बाँह पकड़ तुम साथ मेरे फिर से आगे को बढ़ चलते हो ।
साथ तुम्हारी वत्सलता तो क्यों मैं बेबस ख़ुद को समझूँ,
नेह प्यार की स्मृतियाँ ही मुझको हैं सम्बल दे जातीं ।।