नक्षत्रों के वश्य और तत्व
विवाह के लिए कुण्डली मिलान करते समय पारम्परिक रूप से अष्टकूट गुणों का
मिलान करने की प्रक्रिया में नाड़ी, योनि और गणों के साथ ही नक्षत्रों के वश्य का
मिलान भी किया जाता है |
नक्षत्रों के वश्य : प्रत्येक नक्षत्र किसी मनुष्य अथवा किसी अन्य जीव को Dominate करता है –
अर्थात उस पर अपना प्रभाव रखता है – इसी को वश्य कहा जाता है | इन वश्यों के
माध्यम से जातक की कुछ मित्रता अथवा वैर आदि चारित्रिक विशेषताओं का भी ज्ञान हो जाता
है | एक वश्य की दूसरे वश्य के साथ मित्रता भी हो सकती है और परस्पर वैर भी हो
सकता है | एक वश्य दूसरे वश्य का भोजन भी हो सकता है और भक्षक भी | Astrologers के
अनुसार अपने वश्य से Strong वश्य के साथ किसी प्रकार की भी Partnership नहीं करनी
चाहिए अन्यथा वह व्यक्ति सदा उस दुर्बल वश्य वाले व्यक्ति को दबाता रहेगा | किन्तु
अपने इतने वर्षों के अनुभवों के कारण हमारी मान्यता है कि अपने से Strong व्यक्ति
के साथ Partnership करके आवश्यक नहीं कि दोनों के मध्य शत्रुता का ही व्यवहार रहे, ऐसा भी तो सम्भव
है कि उस व्यक्ति से जीवन में सहायता भी प्राप्त हो | इसीलिए कुण्डली मिलान करते
समय अष्टकूट गुणों का मिलान करते समय सभी सूत्रों के आधार पर अत्यन्त सावधानीपूर्वक
दोनों कुण्डलियों का एक साथ अध्ययन आवश्यक है – अन्यथा अर्थ का अनर्थ होते देर
नहीं लगेगी | वश्य पाँच होते हैं – मानव (अर्थ स्पष्ट है), चतुष्पद (चार पैरों
वाला पशु), जलचर (जल के भीतर रहने वाला अथवा तैरने वाला जीव), वनचर (वनों में
भ्रमण करने वाला व्यक्ति अथवा जीव) तथा कीट (कीड़ा) |
नक्षत्रों के तत्व : सभी 27 नक्षत्रों का चार तत्त्वों के आधार पर भी विभाजन किया जाता है |
ये चार तत्व हैं – वायु (the air), अग्नि (the fire), इन्द्र (the cloud and the
mud), और वरुण (the water) | इन तत्त्वों के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव और प्रकृति
के विषय में बहुत कुछ जानकारी प्राप्त हो सकती है तथा उसकी बीमारी आदि के समय उसके
उपचार में सहायता प्राप्त हो सकती है | जैसे यदि किसी व्यक्ति का जन्म वायु तत्व
के नक्षत्र में हुआ है तो सम्भव है उसे वायु तत्व से समबन्धित कोई समस्या हो | और
इस प्रकार उसके रोग के उपचार को अनुकूल दिशा प्राप्त हो सकती है | अतः इन तत्वों
की प्रकृति का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है |
वायु तत्व – वायु अर्थात हवा | सभी पदार्थों में वायु एक प्रमुख तथा दु:साध्य तत्व है
| यह अग्नि की लपटों को और अधिक भड़का सकती है | उड़ाने की सामर्थ्य इसमें होती है |
यह भारहीन भी हो सकती है तथा भाररहित भी हो सकती है | वातावरण में अस्थिरता
उत्पन्न करने वाले हर प्रकार के आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि का कारण भी यह वायु ही
होता है | इसका मुख्य अस्त्र है आँधी – Windstorm – पौराणिक आख्यानों के
अनुसार जो दानवों को दण्ड देने के लिए प्रयुक्त होता है | यह तूफ़ान खड़े करता है
तथा बड़े बड़े मज़बूत क़िलों को भी ढहाने में समर्थ होता है | यह फ़सलों को उपजाऊ बनाने
वाली वर्षा पृथिवी पर बरसाने में इन्द्र की सहायता भी करता है | पाँच प्रकार की
वायु मनुष्य की आन्तरिक शारीरिक व्यवस्था को सन्तुलित बनाए रखने में सहायता करता
है | ये पाँच वायु हैं – पान, अपान, व्यान, उदान और समान |
इनमें से पान वायु जीवन का प्रमुख कारण है | इसे ही स्वास्थ्य
विज्ञान की भाषा में Distilled Breathing कहा जाता है | यह शरीर की श्वास प्रणाली
को भी सन्तुलित तथा नियन्त्रित करता है | शरीर के फेफड़ों में इसका निवास होता है |
अपान वायु शरीर में निचले भाग की ओर प्रवाहित होता है तथा शरीर
के निचले गुदा मार्ग यानी Anus से बाहर निकलता है |
तीसरा वायु यानी व्यान वायु पूरे शरीर में फैला रहता है – व्यानः सर्वशरीरग:, और इस प्रकार मन मस्तिष्क, माँसपेशियों, जोड़ों इत्यादि शरीर के प्रत्येक अंग
को प्रभावित कर सकता है |
वायु का चतुर्थ प्रकार है उदान वायु | जिसे ऊपर की ओर साँस लेने का कारण भी माना जाता है | यह कंठ से ऊपर की ओर
उठकर सर की ओर प्रस्थान करता है |
अन्तिम तथा पञ्चम प्रकार वायु का है समान वायु | यह नाभि के भीतर निवास करता है तथा पाचन प्रक्रिया को स्वस्थ बनाए रखने के
लिए यह वायु अत्यन्त आवश्यक भूमिका का निर्वाह करता है |
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/06/04/constellation-nakshatras-44/