प्रगति का सोपान सकारात्मकता
व्यक्ति के लिए हर दिन - हर पल एक चुनौती का समय होता है | और आजकल के
समय में जब सब कुछ बड़ी तेज़ी से बदल रहा है - यहाँ तक कि प्रकृति के परिवर्तन भी
बहुत तेज़ी से ही रहे हैं - इस सारे बदलाव और जीवन की भागम भाग के चलते मनुष्य के
मन में बहुत सी शंकाएँ अपने वर्तमान और भविष्य को लेकर घर करती जा रही हैं | इन्हीं शंकाओं के कारण हम सब अनेक प्रकार की नकारात्मकताओं के शिकार भी
होते जा रहे हैं |
किन्तु इस सबसे घबराकर निष्कर्मण्य होकर बैठ रहना, किसी तनाव
का शिकार होकर बैठ रहना या अपने आप पर से विश्वास उठा लेना - कि नहीं, हमसे ये नहीं होगा - ये सब स्वस्थ मानसिकता के लक्षण नहीं हैं | हमें साहस और समझदारी के साथ हर चुनौती का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहने
का प्रयास करना चाहिए - क्योंकि जीवन गतिशीलता का ही नाम है | और इसका एक ही उपाय है - आशावान बने रहकर हर परिस्थिति में से कुछ
सकारात्मक खोजने का प्रयास किया जाए | सकारात्मकता का एक
सिरा भी यदि हाथ में आ गया तो उसके सहारे आगे बढ़ने का और उस परिस्थिति या व्यक्ति
के अन्य सकारात्मक पक्षों को ढूंढ निकालने का कार्य किया जा सकता है | और यदि अधिक सकारात्मकता नहीं भी दीख पड़ती है - क्योंकि हम स्वयं बहुत सी
शंकाओं से घिरे हुए हैं - तो जो सिरा हाथ आया है उसे ही मजबूत बनाने का प्रयास
करेंगे तो अन्य नकारात्मकताएँ सकारात्मकता में परिणत होती जाएँगी |
इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि परिस्थिति की नकारात्मकताओं के साथ समझौता किया
जाए |
नहीं, बल्कि उन्हें सकारात्मक बनाने का प्रयास करना है | क्योंकि जीवन में कभी भी सब कुछ सकारात्मक या मनोनुकूल नहीं उपलब्ध होता
है | और नकारात्मकताओं के धागे इतने एक दूसरे से बँधे हुए
होते हैं कि एक धागे को खींचेंगे तो सारा का सारा आवरण उधड़ता चला जाएगा और तब सारे
तार ऐसे उलझ जाएँगे कि उन्हें सुलझाना असम्भव हो जाएगा |
इसीलिए हमारे मनीषियों ने कहा है कि सुख और दुःख, सफलता और
असफलता सबमें समभाव रहते हुए कर्तव्य कर्म करते रहना चाहिए |
मन को शान्त करने का अभ्यास करते रहना चाहिए | अच्छा बुरा सब
पानी के बुलबुले के समान है जो नष्ट होना ही है | हम सबका
ध्येय वो बुलबुला नहीं है, उसके पीछे का वो गहरा और अथाह
समुद्र है जिसकी हलचल इस सबका कारण है - जिसकी सतह पर ये बुलबुले दीख पड़ते हैं |
सकारात्मकता और नकारात्मकता के फेर में पड़कर हमारी खोज प्रायः उन वस्तुओं
या परिस्थितियों पर केन्द्रित होकर रह जाती है जो वास्तविक नहीं हैं और इसी कारण
असंतुष्टि का भाव बना रहता है - जो मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है |
वास्तव में जिन्हें हम सकारात्मक और नकारात्मक कहते हैं, सफलता और
असफलता कहते हैं - उनमें से कुछ भी वास्तविक नहीं है | केवल
मात्र हमारे स्वयं के "अहं" - जिसे ईगो कहा जाता है - की सन्तुष्टि और
असन्तुष्टि की उपज होती है | या फिर हमारे परिवार, गुरुजनों, समाज आदि ने हमारे मन में कहीं बहुत गहराई
में इसे आरोपित कर दिया होता है | जिस दिन हम इस यथार्थ को
समझ गए उस दिन न केवल हमारा मन शान्त हो जाएगा, बल्कि हम हर
वस्तु, हर व्यक्ति और हर परिस्थिति में समभाव रहकर केवलमात्र
सकारात्मक विचारों और भावों के साथ जीना सीख जाएँगे | यह
कार्य कठिन हो सकता है, किन्तु अभ्यास करेंगे तो असम्भव भी
नहीं होगा...
हम सभी हर परिस्थिति में सकारात्मकता बनाए रखें यही कामना है...
क्योंकि जीवन में प्रगति का एक सोपान यही है...