जीवन में
अनगिनती पल ऐसे आते हैं जब माता पिता की याद अनायास ही मुस्कुराने को विवश कर देती
है | ऐसा ही कुछ कभी कभी हमारे साथ भी होता है | माँ क्या होती है – इसके लिए तो
वास्तव में शब्द ही नहीं मिल पाते | माँ की जब याद आती है तो बस इतना ही मन करता
है:
माँ तेरी गोदी
में सर रख सो जाऊँ मैं पल भर को, तो
लोरी तू गा देना, दिल
को कुछ तो राहत मिल जाएगी ।
तेरे आँचल की
छाया से है बढ़कर नहीं कोई भी सुख,
जो तेरा
हाथ रहे सर पर मंज़िल मुझको मिल
जाएगी...
कुछ इसी प्रकार
के भावों से युक्त है हमारी आज की रचना... “सर्वदा नमन है माँ तुमको...” कात्यायनी...
सताती है तुम्हारी याद हर पल – प्रतिपल
काश एक बार फिर तुम्हारी गोदी में सर रखकर सो पाती
बालों में फिराती तुम अपनी खुरदुरी अँगुलियों में प्यार की स्निग्धता भर…
न जाने कितने आँसू छिपाए अपने दामन में
पर बना लेती उन्हीं आँसू की बूँदों को अमृत रस धारा…
मेरी हर आवश्यकता पूर्ण होती थी तुम्हीं से
क्योंकि तुम ही थीं मेरे जीवन का सत्य,
मैं तो मात्र तुम्हारी छाया हूँ
बिना तुम्हारे होता क्या अस्तित्व मेरा...
घोर निराशा जो मन को उद्विग्न बनाती
तुम आशा दीप जलाए सदा सम्मुख होतीं...
मेरी हर धड़कन की लय में तुम गीत बनीं घुल मिल जातीं...
मेरे दुःख में, मेरे सुख में, तुम सदा साथ
मेरे रहतीं…
स्नेह त्याग और एकनिष्ठता की साक्षात प्रतिमूर्ति तुम
राह भटक जाने पर स्नेहिल बाँहों में थाम
प्रयासरत रहतीं मुझे सही मार्ग दिखाने को
बन जातीं खुद दीपक / करने को प्रकाशित करतीं मेरी राहें…
मैं कभी अगर बैठ जाती थक कर
तब साथ चलतीं तुम साहस बनी
भर लेतीं मेरे मग के हर कंटक को आँचल में अपने…
तुमने ही तो सौन्दर्य दिया मिट्टी की इस काया को
सींच कर अपनी ममता से…
नहीं चुका सकती क़र्ज़ तुम्हारा / क्योंकि जानती हूँ
अभी भी नहलाती हो तुम अपने आशीषों से
दूर गगन में बैठी / झाँकती हुई तारों के मध्य से…
साथ न होते हुए भी कराती हो अहसास
स्नेहमयी उपस्थिति का अपनी
क्योंकि समाई हुई हो तुम मुझमें ही…
जीवन के मधुर पलों की पुनरावृत्ति तुम
अपरिमित नेह सुगन्ध लिए निज आँचल में
प्रवाहित करती रहती हर पल अपनी ममता की अमृत धरा
लुटाती रहती हो शक्ति और करुणा हर पल
बिना किसी प्रतिदान की अपेक्षा के / बिना माप तौल किये
बस बरसाती जाती हो स्नेह जल
कोटि कोटि नमन है माँ तुमको… सदा सर्वदा नमन तुमको…
_____________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा