शरद पूर्णिमा
आश्विन मास की पूर्णिमा, जिसे शरद
पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है और जिसके साथ ही आरम्भ हो जाती है पन्द्रह दिनों
बाद आने वाले दीपोत्सव की चहल पहल | इसके अतिरिक्त देश के अलग अलग भागों में कोजागरी
पूर्णिमा, नवान्न पूर्णिमा, कुमुद्वती तथा कुमार पूर्णिमा के नाम से भी इस पर्व को
जाना जाता है | आज ही के दिन महर्षि वाल्मीकि का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है | सभी
को शरद पूर्णिमा तथा वाल्मीकि जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ इस आशा के साथ कि हम
सभी का जीवन शरद पूर्णिमा के चाँद जैसा प्रफुल्लित रहे...
यों हिन्दू मान्यता के अनुसार हर माह की पूर्णिमा
महत्त्वपूर्ण होती हैं | लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्त्व इस मान्यता के कारण और अधिक
बढ़ जाता है कि आज के दिन चन्द्रमा पृथिवी के इतने अधिक निकट होता है कि उसकी किरणों
के सारे जीवन रक्षक पौष्टिक तत्व पृथिवीवासियों को उपलब्ध हो जाते हैं | एक ओर तो
वर्षा ऋतु बीत जाती है | मेघराज भी अपनी टोली के साथ इन्द्रलोक को वापस लौट जाते
हैं | उनके साथ ही उनकी प्रेयसि नृत्यांगना दामिनी भी अपने बरखा की बूँदों के
वाद्ययन्त्रों तथा घुँघरूओं को झनकाती फिर से वापस लौटने का वादा कर अपने महल की
ओर प्रस्थान कर जाती हैं | शरद ऋतु के स्वागत में धवल चन्द्रिका की शीतल प्रकाश गंगा
में डुबकी लगाकर चन्द्रकिरणों की अठखेलियों से रोमांचित हुआ आकाश पूर्ण रूप से
स्वच्छ और विशाल दिखाई देने लगता है | निश्चित रूप से आज की रात चन्द्रदेव अपनी
समस्त पौष्टिकता अपनी किरणों के माध्यम से समस्त जड़ चेतन पर लुटाने को तत्पर रहते
हैं | इसीलिए आज की रात अधिकाँश लोग घरों के आँगन में या कहीं भी खुले स्थान में
रात बिताना अधिक पसन्द करते हैं – ताकि चन्द्रमा की उन पौष्टिक किरणों में अच्छी
तरह स्नान करके स्वयं को पुनः ऊर्जावान अनुभव कर सकें |
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