देवी के शैलपुत्री और ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना
आज आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से कलश स्थापना तथा यव – जौ – लगाने के साथ ही शारदीय नवरात्रों का आरम्भ हो चुका है... सर्वप्रथम सभी को शारदीय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ...
आज प्रतिपदा और द्वितीया दोनों तिथियाँ हैं | प्रातः 07:25 तक प्रतिपदा थी और उसके बाद से कल सूर्योदय से पूर्व 06:06 पर तृतीया तिथि का आगमन हो जाएगा | इस प्रकार द्वितीया का क्षय हो रहा है | इसीलिए आज प्रथम नवरात्र को देवी के शैलपुत्री रूप की उपासना के साथ ही द्वितीय नवरात्र की ब्रह्मचारिणी रूप्प की उपासना की गई है |
माँ शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमलपुष्प शोभायमान है और वृषभ अर्थात भैंसा इनका वाहन माना जाता है...
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
इस मन्त्र से माँ शैलपुत्री की उपासना का विधान है | इसके अतिरिक्त “ऐं ह्रीं शिवायै नमः” माँ शैलपुत्री के इस बीज मन्त्र के साथ भी भगवती की उपासना की जा सकती है |
माना जाता है कि शिव की पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान देखकर उसी यज्ञ की अग्नि में कूदकर स्वयं को होम कर दिया था और उसके बाद हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से हिमपुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या करके पुनः शिव को पति के रूप में प्राप्त किया | शैल अर्थात पर्वत और पुत्री तो पुत्री होती ही है - यद्यपि ये सबकी अधीश्वरी हैं तथापि पौराणिक मान्यता के अनुसार हिमालय की तपस्या और प्रार्थना से प्रसन्न हो कृपापूर्वक उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं |
नवरात्र में की जाने वाली भगवती दुर्गा के नौ रूपों की उपासना नवग्रहों की उपासना भी है | कथा आती है कि देवासुर संग्राम में समस्त देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियों को एक ही स्थान पर इकट्ठा करके देवी को भेंट कर दिया था | माना जाता है कि वे समस्त देवता और कोई नहीं, नवग्रहों के ही विविध रूप थे, और दुर्गा के नौ रूपों में प्रत्येक रूप एक ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है | इस मान्यता के अनुसार दुर्गा का शैलपुत्री का यह रूप मन के कारक चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करने के कारण साधक के मन को प्रभावित करता है | साथ ही कुण्डली (Horoscope) के चतुर्थ भाव और उत्तर-पश्चिम दिशा पर शैल पुत्री का आधिपत्य माना जाता है | अतः यदि किसी की कुण्डली में चन्द्रमा अथवा चतुर्थ भाव तथा चतुर्थ भाव से सम्बन्धित जितने भी पदार्थ हैं जैसे घर, वाहन, सुख-समृद्धि आदि – से सम्बन्धित कोई दोष है तो उसके निवारण के लिए भी माँ भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना करने का विधान है |
मान्यता जो भी हो, किन्तु भगवती के इस रूप से इतना तो निश्चित है कि शक्ति का यह रूप शिव के साथ संयुक्त है, जो प्रतीक है इस तथ्य का कि शक्ति और शिव के सम्मिलन से ही जगत का कल्याण सम्भव है |
देवी का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है – ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी – अर्थात् ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिसका स्वभाव हो वह ब्रह्मचारिणी | यह देवी समस्त प्राणियों में विद्या के रूप में स्थित है...
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |
इस रूप में भी देवी के दो हाथ हैं और एक हाथ में जपमाला तथा दूसरे में कमण्डल दिखाई देता है | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, ब्रह्मचारिणी का रूप है इसलिये निश्चित रूप से अत्यन्त शान्त और पवित्र स्वरूप है तथा ध्यान में मग्न है | यह रूप देवी के पूर्व जन्मों में सती और पार्वती के रूप में शिव को प्राप्त करने के लिये की गई तपस्या को भी दर्शाता है | पार्वती के रूप में शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए तपस्या करते समय ऐसा समय भी आया जब उन्होंने समस्त प्रकार के भोज्य पदार्थों के साथ ही बिल्व पत्रों तक का भी सेवन बन्द कर दिया और तब उन्हें अपर्णा कहा जाने लगा | इतनी कठोर तपश्चर्या के कारण देवी के इस रूप को तपश्चारिणी भी कहा जाता है...
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलौ, देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
जो लोग भगवती के नौ रूपों को नवग्रह से सम्बद्ध करते हैं उनकी मान्यता है कि यह रूप मंगल का प्रतिनिधित्व करता है तथा मंगल ग्रह की शान्ति के लिए माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करनी चाहिए | किसी व्यक्ति की कुण्डली में प्रथम और अष्टम भाव से सम्बन्धित कोई समस्या हो तो उसके समाधान के लिए भी इनकी उपासना का विधान है | जो लोग ध्यान का अभ्यास करते हैं उनके लिए भी इस रूप की उपासना अत्यन्त फलदायक मानी जाती है | ऐसा भी माना जाता है कि अगर आप प्रतियोगिता तथा परीक्षा में सफलता चाहते हैं – विशेष रूप से छात्रों को – माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना अवश्य करनी चाहिये । इनकी कृपा से बुद्धि का विकास होता है और प्रतियोगिता आदि में सफलता प्राप्त होती है | इसके लिए निम्न मन्त्र के जाप का विधान है:
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदास्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु |
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ||
इसके अतिरिक्त “ऐं ह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः” माँ ब्रह्मचारिणी के इस बीज मन्त्र के साथ भी देवी की उपासना की जा सकती है | कुछ स्थानों पर इस दिन तारा देवी और चामुण्डा देवी की उपासना भी की जाती है |
भगवती के माँ शैलपुत्री और ब्रह्मचारिणी के रूप हम सबकी रक्षा करे…
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2018/10/10/shardiya-navaratra/