शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्
आज
श्रावण माह का प्रथम सोमवार है | श्रावण माह समर्पित होता है भगवान शिव की आराधना के
लिए | ऐसी कथा है कि सती
ने जब अपने पिता महाराज दक्ष के द्वारा अपने पति शिव का अपमान देखकर दक्ष के यज्ञ
का विध्वंस करने के लिए उस यज्ञाग्नि में आत्मदाह कर लिया तब क्रुद्ध शिव ने दक्ष
के यज्ञ का पूर्ण संहार कर दिया फिर विरक्त होकर घोर तपस्या में लीन हो गए | इसी
बीच तारकासुर ने समस्त ब्रह्माण्ड को आतंकित कर दिया | ब्रह्मा जी की कृपा से उसे
वरदान मिला हुआ था कि भगवान शिव और उनकी पत्नी के गर्भ से उत्पन्न पुत्र ही
तारकासुर का विनाश कर सकता है और किसी में ये सामर्थ्य नहीं होगी, जिसके कारण वो
और भी अधिक अत्याचारी हो गया था | इधर देवताओं को ज्ञात हुआ कि सती ने पर्वतराज
हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से पार्वती के रूप में जन्म लिया है और अब विवाह
योग्य वय उनकी हो गई है | तब देवों के कहने पर नारद मुनि ने पार्वती को जाकर उनके
पूर्वजन्म का सारा वृत्तान्त उन्हें कह सुनाया | पार्वती ने शिव को पति रूप में
प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की और ऐसी मान्यता है कि श्रावण माह में ही शिव
पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था जिसके बाद भगवान कार्तिकेय के रूप में उन्हें
पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिन्होंने तारकासुर का वध करके ब्रह्माण्ड को उसके
आतंक से मुक्ति दिलाई |
यदि
व्यावहारिक रूप से भी देखें तो श्रावण माह का प्रकृति से भी गहन सम्बन्ध है | माना
जाता है कि भगवान शंकर के विवाहोत्सव में समस्त देवगण जब भगवान शिव को स्नान कराते
हैं तो वही जल वर्षा के रूप में नीचे पृथिवी पर आता है जिससे भीषण गर्मी से तप्त
वसुन्धरा हरी भरी हो जाती है | इन्हीं समस्त कारणों से भगवान शंकर की पूजा आराधना
इस माह में की जाती है |
कथाएँ
और मान्यताएँ कितनी भी हों, देवाधिदेव भगवान शंकर सबका कल्याण करने वाले हैं और श्रावण माह में लगभग
समस्त हिन्दू समाज में शिव पूजा की धूम रहती है |
आदि
शंकराचार्य द्वारा रचित शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र भगवान शिव का सबसे प्रिय स्तोत्र
माना जाता है | इस स्तोत्र में भगवान शिव के पञ्चाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” के
प्रत्येक अक्षर द्वारा भगवान शिव के गुणों का वर्णन किया गया है, क्योंकि ये पाँच
अक्षर पञ्चतत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं और इन्हीं पाँचों तत्वों से समस्त
सदसदात्मक प्रकृति की रचना हुई है | “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र के आधार पर ये पाँच तत्व
इस प्रकार हैं...
न
अर्थात पृथिवी तत्व
म
अर्थात जल तत्व
शि
अर्थात अग्नि तत्व
व
अर्थात वायु तत्व
य
अर्थात आकाश तत्व
प्रस्तुत
है शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित...
ॐ नागेंद्रहाराय
त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय |
नित्याय
शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवाय ||
जिनके
कंठ में नागों का हार सुशोभित होता है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है, दिगम्बर अर्थात समस्त दिशाएँ और आकाश जिनके वस्त्र हैं उन नित्य अर्थात
अविनाशी शुद्ध न कार अर्थात पृथिवी स्वरूप भगवान शिव को नमस्कार है |
मंदाकिनीसलिलचंदनचर्चिताय
नंदीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय |
मंदारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै म काराय नमः शिवाय ||
गंगाजल
और चन्दन से जिनकी पूजा अर्चना की जाती है, मन्दार पुष्प सहित अनेकों पुष्पों से जिनका श्रृंगार किया जाता है, नंदी तथा प्रमथगणों के स्वामी म कार अर्थात जल स्वरूप भगवान माहेश्वर को
नमस्कार है |
शिवाय
गौरीवदनाब्जवृंदसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय |
श्री
नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवाय ||
शिव
अर्थात कल्याण स्वरूप, पार्वती के मुख कमल को
प्रसन्न करने के लिए सूर्य स्वरूप, दक्ष के यज्ञ का विनाश
करने वाले, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न विराजमान है ऐसे
शोभाशाली नीलकंठ शि कार अर्थात अग्नि रूप भगवान शिव को नमस्कार है |
वसिष्ठकुंभोद्भव
गौतमार्यमुनींद्रदेवार्चित शेखराय |
चंद्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै व काराय नमः शिवाय ||
वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने तथा इन्द्र
आदि समस्त देवताओं ने जिनके शिखर अर्थात मस्तक की पूजा की है, चन्द्र सूर्य और वैश्वानर अर्थात अग्नि जिनके तीन नेत्र हैं ऐसे व कार
स्वरूप भगवान शिव को नमस्कार है |
यक्षस्वरूपाय
जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय |
दिव्याय
देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवाय ||
यक्ष
स्वरूप, जटाधारी, पिनाक
नाम के धनुष को धारण करने वाले, दिव्य सनातन दिगम्बर देव य
कार अर्थात आकाश तत्व स्वरूप भगवान शिव को नमस्कार है |
औघड़दानी
देवाधिदेव भगवान शंकर माता पार्वती और पुत्र कार्तिकेय तथा भगवान गणेश सहित समस्त
संसार पर कृपादृष्टि बनाए रहें इसी प्रार्थना के साथ सभी को श्रावण माह की हार्दिक
शुभकामनाएँ...