श्री गणपत्यथर्वशीर्ष का हिन्दी पद्य भावानुवाद
हम सभी जानते हैं कि वेद समस्त प्रकार के ज्ञाताज्ञात ज्ञान विज्ञान के स्रोत हैं | मानव मात्र के कल्याण के लिए सूक्त रूप में मन्त्रों के समूह हैं | उन्हीं सूक्तों – अर्थात उत्तम विधि से कही गई उक्तियाँ – में गणपति की प्रार्थना के लिए श्री गणपति सूक्त भी है – जिसे श्री गणपत्यथर्व सूक्त कहा जाता है... वर्तमान समय में मनुष्य की व्यस्तताओं में – उसकी जीवन यापन के संघर्ष की भाग दौड़ में वृद्धि के कारण बहुत सी विघ्न बाधाएँ भी उसके मार्ग में उपस्थित हो जाती हैं | श्री गणपत्यथर्व सूक्त के श्रवण अथवा पठान से समस्त विघ्न बाधाएँ दूर हो जाती हैं | वेदों में इन्हें “ब्रह्मणस्पति” कहा गया है | “ब्रह्मणस्पति” के रूप में वे ही सर्वज्ञाननिधि तथा समस्त वाङ्मय के अधिष्ठाता हैं |
विघ्नेश विधिमार्तण्डचन्द्रेन्द्रोपेन्द्रवन्दित |
नमो गणपते तुभ्यं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पते ||
ब्रह्मा, सूर्य, चन्द्र, इन्द्र तथा विष्णु के द्वारा वन्दित हे विघ्नेश गणपति ! मन्त्रों के स्वामी ब्रह्मणस्पति ! आपको नमस्कार है |
सिद्धिबुद्धिपति वन्दे ब्रह्मणस्पतिसंज्ञितम् |
माङ्गल्येशं सर्वपूज्यं विघ्नानां नायकं परम् ||
समस्त मंगलों के स्वामी, सभी के परम पूज्य, सकल विघ्नों के परम नायक, ‘ब्रह्मणस्पति’ नाम से प्रसिद्ध सिद्धि-बुद्धि के पति गणपति को नमस्कार है |
समस्त मांगलिक कार्यों में गणपति-पूजन के बाद प्रार्थना के रूप में श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ किया जाता है | तो सर्वप्रथम अथर्वशीर्ष के विषय में ही बात करते हैं | अथर्वशीर्ष शब्द अ+थर्व+शीर्ष को मिलाकर बना है | जिनमें अ अक्षर प्रतीक है अभाव का, थर्व का अर्थ है चंचल तथा शीर्ष का अर्थ होता है मस्तिष्क अर्थात मन | अर्थात जिस सूक्त का पाठ करके मन की चंचलता का अभाव हो जाए वह अथर्वशीर्ष है | मन में बहुत शक्ति होती है | वही समस्त जगत का संचालन करता है | वही समस्त के विषय में संकल्प विकल्प करता है – मनन करता है | मन का समाहित हो जाना ही परम योग कहलाता है | श्री गणपत्यथर्वशीर्ष के श्रवण पठान के द्वारा मन की क्रियाओं को शान्त करने का प्रयास किया जाता है |
अथर्वशीर्ष में दस ऋचाओं में मूलाधार चक्र में गणपति का निवास बताया गया है | मूलाधार चक्र ॐकारमय आत्मा का निवास भी माना जाता है | ध्यान केन्द्रित करने के अभ्यास का प्रथम सोपान भी यही है – जहाँ से आरम्भ करके समस्त चक्रों को शान्त करते हुए अन्त में सहस्रार चक्र में प्रविष्ट होना ध्यान का अन्तिम सोपान होता है |
आज श्री गणेश चतुर्थी के अवसर पर प्रस्तुत है इसी श्री गणपत्यथर्वशीर्ष का हिन्दी पद्यभावानुवाद...
ॐ नमस्ते गणपतये | त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि | त्वमेव केवलं कर्तासि | त्वमेव केवलं धर्तासि | त्वमेव केवलं हर्तासि | त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि | त्वं साक्षादात्मासि नित्यम् ||1||
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि ||2||
अव त्वं माम् | अव वक्तारम् | अव श्रोतारम् | अव दातारम् | अव धातारम् | अव अनूचानम् | अव शिष्यम् | अव पश्चातात् | अव पुरस्तात् | अव वोत्तरात्तात् | अव दक्षिणात्तात् | अव चोर्ध्वात्तात् || अवाधरात्तात् | सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ||3|| इत्यादि इत्यादि...
पद्यभावानुवाद...
अष्टाक्षर है मन्त्र तुम्हारा, गं गणपतये नमो नम:
दूर्वांकुर अर्पित करते हैं, नमन गणपति नमो नमः...
तुम ही प्रणवाक्षर हो, तत्व रूप में भी तो तुम ही हो
तुम्हीं जगत के कर्ता धर्ता, संहर्ता भी तुम ही हो
विश्वरूप तुम, नित्य आत्मा, नमन गणपति नमो नमः...
रक्षा करो जगत की भगवन, श्रोता के रक्षक तुम हो
धाता दाता और उपदेशक, शिष्यों के रक्षक तुम हो
हरेक दिशा में अभयदान दो, नमन गणपति नमो नमः...
तुम्हीं वाङ्मय, तुम ही चिन्मय, तुम्हीं ब्रह्म आनन्दधन हो
त्रिगुणातीत तुम्हीं हो, कालत्रयातीत भी तुम ही हो
मूलाधारस्थित शक्ति तुम, नमन गणपति नमो नमः...
तीन देह से ऊपर हो तुम, ध्यान योगियों का तुम हो
तुम्हीं ज्ञान विज्ञान शिरोमणि, हर पुरुषार्थ के दाता हो
ज्ञान ज्योति जग में फैला दो, नमन गणपति नमो नमः...
पञ्चतत्व में रूप तुम्हारा, वाणी चारों तुम ही हो
जागृति स्वप्न सुषुप्ति ये चारों अवस्थाएँ भी तुम ही हो
लक्ष्य ध्यान का भी तुम ही हो, नमन गणपति नमो नमः...
सारे देव समाए तुममें, भूर्भुवः स्वः तुम ही हो
वर्णाक्षर तुम, और सकल ये अलंकार स्वर तुम ही हो
तुम्हीं नाद सन्धान संहिता, नमन गणपति नमो नमः...
एकदन्त तुम, वक्रतुण्ड तुम, लम्बोदर, मूषकध्वज हो
चतुर्हस्त पाशांकुशधारी, शूपकर्ण भी तुम ही हो
भक्तों का परित्राण करो तुम, नमन गणपति नमो नमः...
तुम्हीं व्रातपति, प्रमथपति तुम, विघ्न विनाशक तुम ही हो
साधक योगी को वर देते, वरदमूर्ति भी तुम ही हो
ऋद्धि सिद्धि बुद्धि के दाता, नमन गणपति नमो नमः...