सूर्योपासना का पर्व छठ पूजा
आदिदेव
नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर, दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर
नमोस्तुते |
सप्ताश्वरथमारूढ़ं
प्रचण्डं कश्यपात्मजम्, श्वेतपद्यधरं देव तं सूर्यप्रणाम्यहम् ||
कोरोना के आतंक के बीच दीपावली के पाँचों पर्व हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न
हो चुके हैं और आज कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से छठ पूजा का आरम्भ हो रहा है... आज से सारा
वातावरण हमहूँ अरघिया देबई हे छठी मैया, केलवा के पात पर, जल्दी उगी आज आदित
गोसाईं, आदित लिहो मोर अरगिया,
दरस दिखाव ए दीनानाथ, उगी है सुरुजदेव,
हे छठी मैया तोहर महिमा अपार, कांच ही बाँस के बहंगिया बहंगी
चालकत जाए जैसे अनेकों मधुर लोकगीतों से गुंजायमान हो उठेगा... अस्तु, सर्वप्रथम सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ...
सन्तान तथा परिवार के सुख की
कामना से किया जाने वाला सूर्यदेव की आराधना का पर्व छठ पूजा चार दिवसीय पर्व होता
है | प्रथम दिवस यानी चतुर्थी तिथि को नहाय खाय होता है | जैसा कि नाम से जी विदित
होता है – इस दिन स्नानादि का विशेष महत्त्व होता है | इस दूँ व्रत करने वाला
व्यक्ति स्नानादि से निवृत्त होकर सात्विक भोजन करता है तथा चार दिनों तक पृथिवी
पर शयन करता है | इस दिन विशेष रूप से लौकी की सब्ज़ी बनाई जाती है क्योंकि लौकी को
बहुत पवित्र माना जाता है तथा इसमें पर्याप्त मात्रा में जल होने के कारण इसके
सेवन से आने वाले दिनों में व्रती को बल प्राप्त होता है |
दूसरे दिन पञ्चमी तिथि को खरना
होता है जिसमें गुड़ तथा साठी के चावल से खीर बनाई जाती है | साथ ही मूली, केला तथा पूरियाँ आदि रखकर छठी मैया की पूजा की जाती है |
व्रती भी सारा दिन उपवास रखकर रात्रि को यही भोजन ग्रहण करता है |
तीसरे दिन षष्ठी तिथि को छठ
पूजा होती है | दिन भर व्रत रखकर सायंकाल नदीतट पर जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य
समर्पित किया जाता है | फिर अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में
स्नान करके उदित होते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करके व्रत का पारायण किया जाता है | भगवान
भास्कर को जल देते समय “ॐ सूर्याय नमः” अथवा “ॐ घृणि: सूर्याय नम:” या “ॐ घृणि: सूर्य: आदित्य:” अथवा “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि” इत्यादि मन्त्रों का जाप किया जाता
है | या फिर गायत्री मन्त्र का जाप किया जाता है | इस प्रकार छठ पर्व केवल व्रत मात्र न होकर व्रती के लिए कठिन तपस्या भी है
|
इस वर्ष चार दिनों तक चलने वाला
यह पर्व आज नहाय खाय से आरम्भ हुआ है तथा 21 नवम्बर को प्रातः सूर्योदय का अर्घ्य प्रदान करने के बाद
इसका पारायण किया जाएगा | 17 नवम्बर को अर्द्धरात्र्योत्तर
एक बजकर अठारह मिनट के लगभग चतुर्थी तिथि का आगमन हुआ था | आज 6:46 पर सूर्योदय के समय भोर के स्नान के साथ पर्व का आरम्भ हो चुका है | छठ
पूजा के दिन यानी बीस नवम्बर को सूर्योदय का समय है 6:47 तथा
सूर्यास्त सायं पाँच बजकर छब्बीस मिनट पर होगा | उन्नीस नवम्बर को रात्रि दस बजे
के लगभग षष्ठी तिथि आरम्भ होगी | 21 नवम्बर शनिवार को सूर्योदय
6:48 पर है | इस दिन शनिवार को चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र में
तथा सप्तमी तिथि होने के कारण द्विपुष्कर योग भी पड़ रहा है जो अत्यन्त शुभ योग
माना जाता है |
जैसा कि सभी जानते हैं, छठ
पर्व हिन्दू समुदाय के लिए मूलतः भगवान सूर्य की
आराधना का पर्व है | वास्तव में देखा जाए तो हिन्दू धर्म के
देवताओं में केवल सूर्य और चन्द्रमा ही ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा
तथा अनुभव किया जा सकता है | सम्भवतः इसीलिए विभिन्न पर्वों
पर इन्हीं की उपासना का विधान है | साथ ही इन पर्वों के द्वारा
इस वास्तविकता का भी भान होता है कि प्राचीन काल में प्रकृति के प्रति कितना अधिक
सम्मान का भाव न केवल समाज के एक विशिष्ट वर्ग अपितु जन साधारण के मन में भी था | दक्षिण
भारत में इस पर्व को स्कन्द षष्ठी के रूप में भी मनाया जाता है | इस दिन भगवान शिव
और पार्वती के पुत्र स्कन्द यानी कार्तिकेय की पूजा अर्चना का विधान है |
सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत हैं उनकी दो पत्नियाँ – उषा (भोर की
प्रथम किरण) तथा प्रत्यूषा (सूर्यास्त के समय की अन्तिम किरण) अथवा सन्ध्या | छठ पर्व के अवसर पर सूर्य के साथ उनकी इन दोनों शक्तियों
की भी आराधना की जाती है | प्रातःकाल में उषा की प्रथम किरण
के साथ आरम्भ होकर प्रत्यूषा काल में सूर्य की अन्तिम किरण तक पूजा अर्चना चलती
रहती है | ऐसा सम्भवतः इसलिए किया जाता रहा हो कि सूर्य को
ऊर्जा तथा जीवनी शक्ति का स्रोत माना जाता है | यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया
जाता है – चैत्र शुक्ल षष्ठी को और कार्तिक शुक्ल षष्ठी को | जिनमें कार्तिक शुक्ल षष्ठी के छठ पर्व को विशेष धूम धाम के साथ मनाया
जाता है | यह पर्व दीपावली के लगभग एक सप्ताह बाद पवित्र
नदियों के तटों पर मनाया जाता है |
छठ पूजा के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं | माना जाता है कि भगवान राम और माता सीता जब चौदह वर्षों के
वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे तो उन्होंने दीपावली के छः दिन बाद कार्तिक
शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर छठ पूजा की थी | सूर्यवंशी होने
के कारण भगवान राम के लिए भगवान सूर्य की प्रार्थना आवश्यक ही थी |
एक अन्य मान्यता के अनुसार सूर्यदेव और कुन्ती के पुत्र कर्ण ने षष्ठी पूजा
के रूप में अपने पिता और समस्त चराचर के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाले सूर्यदेव की
उपासना आरम्भ की थी | उसने
घण्टों जल के मध्य खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान किया था जिसके फलस्वरूप
वह महान योद्धा बना | आज भी कमर तक जल के मध्य खड़े होकर
भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान किया जाता है |
एक अन्य मान्यता के अनुसार पाण्डवों के वनवास की अवधि में द्रौपदी ने कार्तिक
शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर सूर्यदेव की उपासना की थी जिसके परिणामस्वरूप समस्त
कुरुवंश का संहार करने में पाण्डव समर्थ हुए थे |
कुछ लोग इसे भगवती के कात्यायनी रूप के साथ भी जोड़ते हैं | षष्ठी तिथि माता कात्यायनी की पूजा के लिए मानी जाती है,
क्योंकि नवदुर्गा में माता कात्यायनी का स्थान छठी देवी के रूप में
माना जाता है |
एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक शुक्ल पञ्चमी के सूर्यास्त तथा षष्ठी के सूर्योदय
के मध्य किसी समय महर्षि वशिष्ठ की प्रेरणा से भगवान सूर्य की आराधना करते समय
राजर्षि विश्वामित्र के मुख से अनायास ही गायत्री मन्त्र फूट पड़ा था |
मान्यताएँ अनेक हैं – पौराणिक भी और लोकमान्यताएँ भी – किन्तु मूल तथ्य यह
है छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और
नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला भगवान भास्कर की आराधना का चार
दिवसीय लोक पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को आरम्भ होकर
कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सम्पन्न होता है |
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
सृष्टिकर्ता प्रकाशमान भगवान आदित्यदेव हम सबके
हृदयों से जड़ता का अन्धकार दूर कर चेतना, ज्ञान तथा सद्गुणों का प्रकाश प्रसारित करें, इसी
कामना के साथ सभी को छठ पूजा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ…