… और बल्लू ने पर्चा भर दिया। (व्यंग)
शहर में चुनावों की सरगरमियां
शुरू हो गयीं थीं। पार्टियों के दफ्तरों में टिकट के लिये अभ्यर्थियों की पहले लाइन
लगी जो शीघ्र ही भीड़ में बदल गयी जब नेतागण समर्थकों के साथ जुटने लगे।
कहीं ले देके काम हो रहा था।
कहीं लाठी डंडों से निबटारा हो रहा था।
नेताओं ने ये सब काम कार्यकर्ताओं
और समर्थकों के ऊपर छोड़ा हुआ था। जिनमें बहुत से किराये के थे।
शायद रिकॉर्ड दर्ज करने वालों
का ध्यान नहीं गया वरना सर्वाधिक संख्या और प्रकार के रोजगार पैदा करने वाली संस्थाओं
में चुनाव आयोग का भी उच्चतर स्थान होता।
बल्लू खास पार्टी के दफ्तर
के सामने पान की दुकान चलाता था। खास पार्टी के अधिकांश नेताओं के खादी के कुर्तों
पर उसी की दुकान के पान के छींटे हुआ करते थे। दुकान के आसपास राजनैतिक माहौल रहने
से बल्लू की भी राजनीति में रुचि हो गयी थी। उसकी इच्छा होती थी कि वह भी चुनाव लड़े।
लेकिन फिर सोचता था कहीं हार गया तो? हार से वो बड़ा डरता
था और समझता था उसकी बड़ी बदनामी होगी। मोहल्ले वाले मज़ाक उड़ायेंगे। और वह मन मसोस कर
रह जाता था।
खास पार्टी की स्थिति अजीब
थी। कभी लोग खरीद के टिकट लेते थे अबकी बार मुफ़त में कोई टिकट लेने को तैयार नहीं।
चुनाव में उतारने के लिये प्रत्याशियों का अकाल सा पड़ गया। पार्टी प्रभारी भंवर लाल
को एक छोटे कार्यकर्ता लटटू ने स्थानीय चुनाव
क्षेत्र से चुनाव लड़वाने के लिये बल्लू का नाम सुझाया। बल्लू की उस कार्यकर्ता से दोस्ती
थी और कभी उसने उसे अपनी चुनाव लड़ने की ख़्वाहिश के बारे में बताया था।
भंवर लाल की बांछे खिल गयी।
हाईकमान को कुछ तो बताने को रहेगा।
वह तुरंत खुद ही लट्टू के साथ
बल्लू की दुकान पर पहुँच गये।
भंवर लाल सीधा बल्लू से बोले, “बल्लूजी आप व एक अरसे से पार्टी की सेवा कर रहे है अतः पार्टी ने तय किया
है। इस चुनाव क्षेत्र से आप को टिकट दिया जाये और आप यहाँ से चुनाव लड़ेंगे।”
बल्लू ने कहा, “हमने तो पार्टी का कोई काम किया नहीं और अनुभव भी नहीं है।”
भंवर लाल ने कहा, “अरे भाई आप इतने सालों से हम सब के बीच हैं। पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता
आपको जानता है। किसी अजनबी को पार्टी के दफ्तर का पता समझाने में बताना पड़ता है कि
बल्लू पानवाले की दुकान के सामने है।”
बल्लू ने अब अपना सबसे बड़ा
डर बताया, “साब चुनाव हार गये तो बड़ी बेइज्जती सी लगेगी।”
भंवर लाल बोले, “ऐसे तो बड़े बड़े नेता हार जाते है।”
“सो तो है। पर हमारी बीरादरी
वाले पता नहीं क्या सोचें।” बल्लू ने अपनी झिझक व्यक्त की।
लट्टू बीच में बोल पड़ा, “बल्लू इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं। हार भी गये तुम्हें दोष थोड़ी न मिलेगा।”
बल्लू ने पूछा, “कैसे?”
लट्टू ने कहा, “सब हारने वाले नेताओं की तरह तुम भी कह देना कि ई वी एम खराब थे।”
बल्लू ने इस बार चुनाव का पर्चा
भर दिया।