गुस्सा तो समझे ,
था किसबात पे ?
नाराज तो समझे ,
थे किनसे ?
ये आगजनी और हिंसा,
किन लोगों पर ?
कुछ नहीं सूझ रहा था।
तो अपने सर फोड़ लेते।
गुलाम, मालिक के वास्ते ,
इतना तो कर सकते थे ।
-र र
25 अगस्त 2017
गुस्सा तो समझे ,
था किसबात पे ?
नाराज तो समझे ,
थे किनसे ?
ये आगजनी और हिंसा,
किन लोगों पर ?
कुछ नहीं सूझ रहा था।
तो अपने सर फोड़ लेते।
गुलाम, मालिक के वास्ते ,
इतना तो कर सकते थे ।
-र र
21 फ़ॉलोअर्स
विज्ञानं परास्नातक ,भारतीय राजस्व सेवा से सेवा निवृत ,कविता कहानी पढ़ने लिखने का शौक ,कुछ ;प्रकाशित पुस्तकें -संवाद कविता संग्रह , मेरी पाँच कहानियाँ , द गोल्ड सिंडीकेट (उपन्यास ), लुटेरों का टीला चंबल (लघु उपन्यास )।;D