विज्ञान और तकनीकि विकास के लिये उपयोगी एवं आवश्यक हैं लेकिन असली विकास तभी संभव है जब इनका संयमित और समुचित सदुपयोग हो । विज्ञान और तकनीकी भौतिक सुखसाधन और संपन्नता तो बढ़ा सकतीं है लेकिन मानसिक शांति ,आत्मिक विकास, सामाजिक समरसता लाने में उतनी कामगार नहीं हैं । विज्ञान के समक्ष साहित्य एवं अन्य ऐसे विषयों को भी समान महत्व देना आवश्यक है जो मानवीय मूल्यों को उजागर करें और उनका संरक्षण और प्रसार करें । बहुत से छात्रों पर विज्ञान की पढ़ाई थोप दी जाती है ताकि वो डॉक्टर और इंजीनीयर बनें । कुछ अच्छे विद्यार्थी इस प्रभाव में जबरन विज्ञान पढ़ते भी देखे गए हैं कि उन्हें विज्ञान एक तरह का स्टेटस सिंबल लगता है वे समझते हैं दूसरे विषय कम होशियार लोग पढ़ते हैं ।
जबरन
डॉक्टरी और इंजीनियरिंग की ओर बच्चों को धकेलने
का दुष्परिणाम हाल ही में कोटा के कोचिंग संस्थानों
के छात्रों द्वारा और कुछ आई आई टी के छात्रों
द्वारा की गयी आत्महत्याओं के रूप में सामने है जो बेहद दुखद है । इस विषय पर लोगों
को विचार करना होगा ।