८ नवंबर २०१६ के बाद से देश में एक ही समस्या है –‘नोट बंदी’। समाचार माध्यमों की सुर्खियां । टीवी समाचार और बहसें ऐसा ही बता रहे हैं । और किसी हद तक है भी क्योंकि सारा देश इससे प्रभावित है । साधारण जन की रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कठनाइयाँ बढ़ गयीं किन्तु वे बहुतायत में इस निर्णय का समर्थन कर रहे हैं । विभिन्न राजनेता राजनैतिक और कुछ संभवतः निजी कारणों से इसका विरोध कर रहे हैं । बहुत से समाचार माध्यम आदतबस नोट बंदी के नकारात्मक बिदु खोजने और दर्शाने को ही अपना कर्तव्य माने हुए हैं । नोट बंदी के साथ कैशलेस आदान प्रदान की बात भी जुड़ गयी और लोग इसकी समस्याएं गिनाना शुरू कर दिये । किन किन कठनाइयों की वजह से ये व्यवहारिक नहीं हैं या नहीं हो सकता ।
कोई कार्य कठिन हैं तो क्या उसे किया ही न जाये ?
चोर चोरी करते रहेंगे तो क्या उन्हें पकड़ा ही न जाये ?
कालाधान पूरी तरह न मिटेगा सोचकर इसके खिलाफ कदम ही न उठाया जाय ।
ये नकारात्मक सोच क्यों ?
काले कारनामे करने वालों की दुनिया में हलचल स्पष्ट दिख रही है । हमे नोटबंदी से अच्छे परिणाम की उम्मीद रखनी चाहिये और इसकी सफलता में यथा संभव सहयोग करना चाहिये ।
विज्ञानं परास्नातक ,भारतीय राजस्व सेवा से सेवा निवृत ,कविता कहानी पढ़ने लिखने का शौक ,कुछ ;प्रकाशित पुस्तकें -संवाद कविता संग्रह , मेरी पाँच कहानियाँ , द गोल्ड सिंडीकेट (उपन्यास ), लुटेरों का टीला चंबल (लघु उपन्यास )।;D