विकिपेडिया के अनुसार “नारा, राजनीतिक, आर्थिक र्और अन्य संदर्भों में, किसी विचार या
उद्देश्य को बारंबार अभिव्यक्त करने के लिए प्रयुक्त एक आदर्श वाक्य या सूक्ति है।”
भारत के स्वतत्रता सग्राम में नारों ने जनमानस में
जान फूकने का काम किया था। उस समय के कुछ नारे थे –इंकलाब जिंदाबाद,स्वराज
हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, करो या मरो, वंदे मातरम।
उपरोक्त परिभाषा और नारों से तुलना करने पर आजकल
प्रयुक्त हो रहे नारे उदाहरण के लिये आजकल के बहुचर्चित नारे ‘चौकीदार
चोर है’ और उसके बदले में प्रयुक्त हो रहा ‘मैं भी चौकीदार’ बेमतलब बेढव तुकबंदी से और बचकाने से
लगते हैं। कमाल ये भी है कि पी एम बनने का ख्वाब देखने वाले मुद्दो से हटकर इन सस्ते
नारों पर ही चुनाव निबटा देना चाहते हैं। फिलहाल तो ऐसा ही लगता है।