यह अवांछित और दुर्भाग्य पूर्ण सच है कि समाज में सब तरह के अपराध अब भी घटित होते हैं किन्तु सभी सुर्ख़ियों में नहीं आते। हत्या और बलात्कार जघन्य अपराध हैं। एक तो ये अपराध निंदनीय हैं और शर्मसार करने वाले है। उस पर मीडिया ,सरकारों और विभिन्न पार्टियों के नेताओं की प्रतिक्रिया और व्यवहार अपने आप में शर्मनाक और व्यथित करने वाला होता है। विपक्ष के नेता विशेषकर इनमें सत्ता पक्ष को परेशान करने और अपनी राजनीति चमकाने का अवसर देखते हैं। वे एक जैसी दो घटनायें दो राज्यों में होने पर अपराधियों और पीड़ित व्यक्तियों की जाति, धर्म, समुदाय, और स्थान के हिसाब से तय करते हैं कि संवेदना व्यक्त करने और न्याय दिलाने किधर जाना है। वे इतने उत्साहित होकर दलबल सहित पीड़ित के परिवार से मिलने जाते हैं लगता है शक्ति प्रदर्शन रैली में जा रहे हों। अफ़सोस के स्थान पर मेले तमाशे जैसा माहौल बन जाता है। कभी कभी कानून और व्यवस्था बिगड़ जाती है और असामाजिक तत्व दंगा भड़काने में लग जाते हैं। कभी कहीं वे सफल भी हो जाते हैं। हर कोई जानता है कि इन राजनैतिक लोगों का असली उद्देश्य राजनीतिक लाभ लेना होता है। वे कानून और व्यवस्था , पीड़ित परिवार की निजता के अधिकार, या उनकी मानसिक पीड़ा किसी का ध्यान नहीं करते। यह एक परंपरा सी बन गयी है। मैं सोचता हूँ कि क्या आप किसी पर जबरदस्ती अपनी संवेदनाएं लाद सकते हैं।
उपरोक्त विषय में अफ़सोस जाहिर करने आने वालों के लिये एवं मिडिया के लिए मेरे तीन छोटे सुझाव इस प्रकार हैं :-
ऐसे मामलों में
1 बाहरी राजनीतिक नेताओं या सामाजिक कार्यकर्ताओं को राज्य की सरकार के अलावा पीड़ित परिवार की भी अनुमति होनी चाहिए।
2 मीडिया को केवल तथ्यात्मक समाचार की रिपोर्ट करनी चाहिए और मीडिया ट्रायल नहीं करना चाहिए।
3 जो नेता उचित अनुमति के बिना पीड़ित से मिलने जाते हैं, उन पर ट्रेस पासिंग और निजता के अधिकार के उल्लंघन की कार्यवाही होनी चाहिए।