तू ही मेरी महबूब है
जब बतलाया तो
वो शर्म से गुलाब हो गयी ।
बोली ,’झूठ ‘
पर
जरा और पास हो गयी ।
29 जुलाई 2016
तू ही मेरी महबूब है
जब बतलाया तो
वो शर्म से गुलाब हो गयी ।
बोली ,’झूठ ‘
पर
जरा और पास हो गयी ।
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विज्ञानं परास्नातक ,भारतीय राजस्व सेवा से सेवा निवृत ,कविता कहानी पढ़ने लिखने का शौक ,कुछ ;प्रकाशित पुस्तकें -संवाद कविता संग्रह , मेरी पाँच कहानियाँ , द गोल्ड सिंडीकेट (उपन्यास ), लुटेरों का टीला चंबल (लघु उपन्यास )।;D