सुबह टी वी पर न्यूज़ में दिखा
रहे थे किसी स्कूल के कुछ छात्र एक अध्यापक को पीट रहे थे । अध्यापक से वे छात्र
इस बात से खफा हो गये थे कि उसने उनके नकल करने पर आपत्ति जतायी थी और उसमें
व्यवधान डाला था। मन खिन्न हो गया । किन्तु अगले ही पलों में खुलासा हुआ मामला
मात्र नकल का नहीं था अपितु पैसे लेकर नकल कराने का था । अध्यापक महोदय उन्हीं
छात्रों को नकल करने दे रहे थे जिन्होंने उन्हें अग्रिम किश्त दे रखी थी।
दुर्भाग्य से कुछ दादा किस्म के छात्र भी उस कक्ष में थे जो मुफ्त में नकल की सुविधा लेना चाहते थे ।
उनसे विवाद हो गया और गुरु चेलों का भेद मिट गया । मन दुविधा में पड़ गया । अफसोस
करें तो किस बात का करें । लेकिन घटना कुल मिला कर अफसोस जनक तो थी । आजकल की कोई
घटना या समस्या ऐसी नहीं होती जिसमें पेंच न हों । अगर नहीं हों तो ड़ाल दिये जाते
हैं । बाकी कमी न्यूज चैनल वाले शाम को ऐसे किसी मुद्दे पर राजनीतिक बहस करा के
पूरी करते हैं । इसमें तयशुदा नीति के तहत विपक्ष का प्रवक्ता सरकार को दोषी
ठहराता है , सरकार का प्रवक्ता विपक्ष
का षड्यंत्र बताता है । कोई शरीफ विद्वान उपस्थित होता है तो बेचारे को ज्यादा
बोलने नहीं दिया जाता । और कोई तथा कथित बुद्धिजीवी भी बहस में शामिल हुआ तो वो
उपद्रव कारियों को क्रांतिकारियों से कम श्रेणी में स्वीकार नहीं करता । आपको
अफसोस करना है तो करते रहिये ।