टी वी पर आज पीके पिक्चर आ रही थी । पहले एक
बार पूरी पिक्चर देखी थी। आज जब टी वी खोला तो शंकर भगवान के वेश में एक नाटक के कलाकार
की हीरो आमिर खान द्वारा छीछालेदार हो रही थी। हमने बहुत लिबरल होने की कोशिश की लेकिन
इस पिक्चर को पूरी पचा नहीं पाया। हर धर्म
में बहुत सी अच्छी बातें बताई जातीं कई । कुछ रूढ़ियाँ भी होतीं हैं।
लीकिन भारत में अहिन्दु और हिन्दू सभी लिबरल
लोगों ने हिन्दू समाज को सुधारने का ठेका ले रखा है और वो भी आस्थाओं पर कभी खुली और
कभी मुंदी चोट करके। इस बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है । लेकिन वो कहते हैं कि
हँगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं हैं । आस्था
, परम्पराएँ ,रस्मों, रिवाज की मनुष्य और समाज के लिए एक विशेष महत्व और उपयोगिता
है । और सभी धर्मो में और धर्म से इतर भी कुछ प्रतीकात्मक चीजें होती है जो हमारे लिए
संबल होती है
कुछ उदाहरणों से अपनी बात संक्षेप में समझाने
की कोशिश करूंगा ।
कुछ चिन्ह राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े होते
है जैसे राष्ट्रीय ध्वज। राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान के लिए लोग कुर्बान हो जाते
है। राष्ट्रीय ध्वज महज कपड़े का टुकड़ा नहीं है।
ये हम सभी जानते हैं नगरों और गांवों में कुछ
बहूरूपिये होते है जो कभी किसी नेता का ,कभी भगवान का या देवी देवता का रूप बना कर बाज़ारों
में घूमते हैं और दान स्वरूप कुछ पैसा पा जाते हैं और शायद उस पैसे से उनकी जिंदगी
चलती हो। उनके उस रूप को देखकर लोगों में कौतूहल होता है । थोड़ा मनोरंजन भी हो सकता
है किन्तु उनके उस रूप का कोई अपमान नहीं करता । राम लीला के समय जो पात्र राम सीता
,हनुमान आदि बनते हैं उनके उस दैवीय रूप का इतना अधिक सम्मान
किया जाता है की दिल्ली की रामलीला में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक उन पात्रों का
तिलक करके सम्मान करते हैं । ये उनके उस दैवीय रूप का सम्मान होता जो उन्होंने धारण
किया होता है :उन दैवीय पात्रों का सम्मान होता है जो वे रामलीला में निभा रहे होते
हैं ।
पी के जैसी फिल्म बनाने वालों से मेरा कहना
है ऐसी ही दो चार फिल्मे अहिन्दुओं पर बना कर उनका भी थोड़ा सुधार करने का प्रयास करें
।