हे पत्रकार ! तुमसे कुछ प्रश्न हैं।
अच्छी चीजें तुम्हें
आल्हादित क्यों नहीं करतीं।
विद्रूप अपवाद भी
तुम्हें बड़ा लुभाते हैं।
तुम बुद्धिमान हो
और सत्यान्वेषी भी ।
तुमने भी मान लिया है ।
सच कड़वा ही होता है ।
और उस कड़वाहट को ,
और गलीज बनाकर
ऐसे समय परोसना है,
की देश और समाज में
जो कुछ मिठास बाकी है ,
मुंह छुपा के बैठे ,
या तिरोहित हो जाये ।