किसी स्थान पर एक लेख पढ़ा था ‘गुलमहर और विचार धाराओं के संघर्ष में छात्रों के इस्तेमाल के बारे में । उस लेखक ने जे एन यू और डी यू में पिछले कुछ अंतराल में घटी घटनाओं को वाम पंथ और दक्षिण पंथ की विचार धाराओं के बीच संघर्ष के रूप मे समझाने की कोशिश की ।
उन्होने स्वीकार किया ये दोनों शिक्षण संस्थाएँ वाम पंथियों के गढ़ रहे हैं और अब उनकी बची खुची शरण स्थलियों में से एक हैं ।
यहाँ तक तो ठीक है लेकिन इसके आगे वो पूर्ण निष्पक्ष नहीं दिखे । दक्षिण पंथियों द्वारा वाम पंथी विचार धारा को दवाने के प्रयास में सत्ता के दुरुपयोग की बात कही ।
मेरे कुछ प्रश्न है –
1-कोई भी विचार धारा राष्ट्र से बढ़कर है ?
2-देश के अंदर ऐसी विचार धारा को पोसना जो देश विरोधी बातें /काम करे ,उचित है ?
3-कानून सम्मत कार्यवाही सत्ता का दुरुपयोग है ?
विभिन विचार धरायेँ आपस में सहयोग करें या विरोध उनका मकसद देशहित होना चाहिये ।
लोग सरकार के खिलाफ हो सकते । विभिन्न राजनैतिक दल एक दूसरे से असहमत हो सकते हैं । किन्तु देश के खिलाफ बोलने और काम करने वाले किसी भी आधार पर क्षम्य नहीं माने जा सकते ।
कुछ नेता और दल अपने तत्काल हित साधने के लिए ऐसे तत्वों से सुहानुभूति दर्शाते हैं और किसी भी रूप में साथ देते हैं तो देश और समाज को खतरे में डालने का काम करते हैं । परिणाम स्वरूप कश्मीर के अलावा देश की राजधानी में देश विरोधी नारे सुनने को मिलते हैं और कोई आतंकी लखनऊ में आतंकी साजिश रचता है और एनकाउंटर में मारा जाता है और उसपर भी सियासत खेल ी जाती है ।
विज्ञानं परास्नातक ,भारतीय राजस्व सेवा से सेवा निवृत ,कविता कहानी पढ़ने लिखने का शौक ,कुछ ;प्रकाशित पुस्तकें -संवाद कविता संग्रह , मेरी पाँच कहानियाँ , द गोल्ड सिंडीकेट (उपन्यास ), लुटेरों का टीला चंबल (लघु उपन्यास )।;D