बचपन
में हमने भी नगर पालिका वार्ड्स इत्यादि चुनाव में बिना किसी भेद भाव या राजनीति के
आयाराम के जुलूस में शामिल होकर नारे लगाए थे “गली गली में शोर है गयाराम चोर है” और
गयाराम के जुलूस में शामिल होकर नारे लगाए थे “ गली गली में शोर है आयाराम चोर है।”
मज़ा आता था।
आज लोकसभा
जैसे बड़े चुनाव में इस तरह के नारों का उपयोग हो रहा है। साथ ही प्रतिद्वंदीयों के
लिए छांट छांट के अभद्र अपशब्दों का प्रयोग हो रहा है जिनकी कोई हद नहीं। विचार धाराएँ
और मुद्दे सब गौड़ हो गये हैं।
बिना
किसी सबूत के किसी पर भी कोई भी बेसिर पैर के आरोप लगा दिये जाते है। कुछ लोगों को
शायद लगता है चुनाव चरित्र हनन और गालियों की प्रतियोगिता है। जो जितनी अधिक गालियां
देगा उसकी जीत की संभावना अधिक होगी। ये धारणा तो बदलनी ही चाहिये। आशा है जनमत इस
पर भी गौर करेगा।